शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने से पूरी होंगी सारी मनोकामनाएं
धर्म-कर्म
• NEW DELHI 25 Jul 2025, (अपडेटेड 25 Jul 2025, 5:27 PM IST)
भगवान शिव के विभिन्न स्तोत्र का उल्लेख किया गया है, इन्हीं में से एक प्रभावशाली स्तोत्र शिव तांडव स्तोत्र भी है। आइए जानते हैं, इसका अर्थ और महत्व।

प्रतीकात्मक तस्वीर| Photo Credit: AI
भगवान शिव को समर्पित 'शिव तांडव स्तोत्र' एक प्रभावशाली और प्राचीन स्तुति है, जिसे रावण ने लिखा था। यह स्तोत्र शिवजी की सुंदरता, शक्ति, तांडव नृत्य आदि का वर्णन करता है। इसमें भगवान शिव के रूप, गुण, आभूषण, शस्त्र के साथ- साथ उनके एक ऐसे नृत्य का पूरा वर्णन है, जिससे पूरी दुनिया की गति जुड़ी हुई है। इस स्तोत्र में 17 श्लोक हैं और हर श्लोक में शिव की महिमा का गहराई से वर्णन मिलता है।
शिव तांडव की सुंदरता और शक्ति के पूरे स्तोत्र में शिवजी की जटाओं से लेकर उनके त्रिनेत्र, विशाल शरीर, भस्म से लिप्त शरीर, उनके नृत्य, डमरू की आवाज, नागों की सजावट, गले में नरमुंडो की माला, उनकी प्रसन्नता और उग्र रूप सभी का वर्णन किया गया है। शास्त्रों के अनुसार, यह न केवल उनकी महिमा बताता है, बल्कि यह भी बताता है कि शिव सृष्टि के संहारक भी हैं और पालनकर्ता भी हैं।
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श्लोक
जटाटवी गलज्जल प्रवाह पावितस्थले
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम्।
डमड्डमड्डमड्डमन् निनादवड्डमर्वयं
चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम्॥
अर्थ:
भगवान शिव की जटाओं से गंगाजल बह रहा है जो उनके शरीर को पवित्र कर रहा है। उनके गले में फन फैलाए हुए नाग की माला लटक रही है। जब वे तांडव करते हैं और डमरू की ध्वनि गूंजती है, तब वह दृश्य अद्भुत होता है। ऐसे शिव हमें कल्याण दें।
श्लोक
जटाकटाह सम्भ्रम भ्रमन्निलिम्प निर्झरी
विलोलवीचिवल्लरी विराजमान मूर्धनि।
धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाट पट्टपावके
किशोरचन्द्रशेखरे रतिर्ममेतु शम्भवे॥
अर्थ:
शिव की जटाओं में गंगा की धारा नृत्य करती है, उनके सिर पर वह लहरें उछलती हुई सुंदरता से बह रही हैं। उनके मस्तक पर अग्नि जल रही है और चंद्रमा भी शोभा बढ़ा रहा है। ऐसे भगवान शंभु में मेरी भक्ति बनी रहे।
श्लोक
धराधरेन्द्र नंदिनी विलास बन्धु बन्धुर
स्फुरद्दिगन्त सन्तति प्रमोद मानमानसे।
कृपाकटाक्ष धोरणी निरुद्ध दुर्धरापदि
क्वचिद्दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि॥
अर्थ:
जो पर्वतराज की पुत्री पार्वती के प्रिय हैं, जिनकी कृपा दृष्टि से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और जो दिगंबर स्वरूप में घूमते हैं। उन शिवजी की भक्ति में मेरा मन सदा लगा रहे।
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श्लोक
जटाभुजङ्गपिङ्गलस्फुरत्फणामणिप्रभा
कदम्बकुङ्कुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे।
मदान्धसिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे
मणिव्राटोत्पलोत्पलभ्यराजमालया विभो॥
अर्थ:
भगवान शिव की जटाओं में सांप की फुंकार है जिनके फन पर रत्न चमकते हैं। उनके शरीर पर चंदन, कुंकुम और भस्म का लेप है। वे हाथी की खाल को वस्त्र के रूप में पहनते हैं और आभूषणों से सजे हैं। ऐसे प्रभु की महिमा अपार है।
श्लोक
सहस्रलोचन प्रभृत्य शेषलेखशेखर
प्रसूनधूलिधोरणी विधूसरांघ्रिपीठभूः।
भुजङ्गराजमालया निबद्धजाटजूटकः
श्रियै चिराय जायतां चकोरबन्धुशेखरः॥
अर्थ:
इंद्र जैसे देवता भी जब उनके चरणों में फूल चढ़ाते हैं, तो उनके चरणों की धूल आकाश में फैल जाती है। शिव के बालों में सर्पों की माला बंधी है और उनके सिर पर चंद्रमा विराजमान है। ऐसे शिव सदा हमारी रक्षा करें।
श्लोक
ललाटचत्वरज्वलद्धनञ्जयस्फुलिङ्गभा
निपीतपञ्चसायकं नमन्निलिंपनायकम्।
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं
महाकपालिसम्पदेशिरोजटालमस्तु नः॥
अर्थ:
भगवान शिव के ललाट से अग्नि की चमक निकलती है, जिससे कामदेव भस्म हो गया। देवता भी उन्हें प्रणाम करते हैं। उनके सिर पर चंद्रमा की शीतल किरणें फैली हैं। वे महाकाल हैं और उनका रूप अत्यंत तेजस्वी है।
श्लोक
करालभालपट्टिका धगद्धगद्धगज्ज्वल
द्धनञ्जयाधरीकृतप्रचण्डपञ्चसायके।
धराधरेन्द्रनन्दिनी कुचाग्रचित्रपत्रक
प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम॥
अर्थ:
शिव के माथे से आग की लपट निकल रही है, जिससे कामदेव (पञ्चसायक) का अंत हो गया। पार्वती जी के वक्षस्थल पर चित्रकारी करने वाले महान कलाकार, तीन नेत्रों वाले भगवान शिव में मेरी भक्ति सदा बनी रहे।
श्लोक
नवीनमेघमण्डली निरुद्धदुर्धरस्फुरत्
कुहूनिशीथिनीतमः प्रबन्धबद्धकन्धरः।
निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरेषु घुम्भिक
निपीतपञ्चसायकं नमन्निलिम्पनायकम्॥
अर्थ:
जिनकी गर्दन पर बादलों की तरह अंधकार मंडरा रहा है और जो रात की गहराई में भी तेजस्वी हैं, जिन्होंने कामदेव को समाप्त कर दिया और जिनको देवता भी प्रणाम करते हैं,ऐसे भगवान शिव को मैं नमस्कार करता हूँ।
श्लोक
सुदर्शनप्रमाथिनं प्रचण्डपञ्चसायकं
नमन्निलिम्पनाय कृतसुब्रहमण्यवर्चसम्।
धनञ्जयाधरीकृतप्रचण्डरक्तसायकं
भजे कपालमालिकां त्रिलोचनं शिवार्चितम्॥
अर्थ:
जो शिव बहुत शक्तिशाली हैं, जिन्होंने कामदेव को भस्म किया, जिनके गले में नरमुंड की माला है, तीन नेत्रों वाले हैं और जिन्हें देवता पूजते हैं, ऐसे शिवजी की मैं भक्ति करता हूँ।
श्लोक
प्रचण्डताण्डवोर्जित प्रचण्डपञ्चसायके
धराधरेन्द्रनन्दिनी कुचाग्रचित्रपत्रकः।
सुधांशुसेखरः प्रभुं त्रिलोचनं भजे सदा
कृपाकटाक्षधोरणी निरुद्धदुर्दिनापदि॥
अर्थ:
जो शिव उग्र तांडव नृत्य करते हैं, कामदेव को जीत चुके हैं, पार्वती के प्रिय हैं, सिर पर चंद्रमा धारण करते हैं, तीन नेत्रों वाले हैं और जिनकी कृपा से सारे संकट दूर हो जाते हैं, ऐसे प्रभु की मैं सदा भक्ति करता हूँ।
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श्लोक
स्मरप्रलापकाण्डनं वृषध्वजस्य भूतये
भवांबुधिप्लवाय नः शिवार्चनं समर्पयेत्।
सदैव भक्तिमञ्जलिं विभोः समर्पयाम्यहम्
नवीनचन्द्रशेखरं नमामि देवमद्भुतम्॥
अर्थ:
जो भक्तों के लिए भवसागर से पार करने का साधन हैं, जो शिवरूप में वृषभध्वज (नंदी के स्वामी) हैं, जो प्रेम का संहार करने वाले हैं, ऐसे भगवान को मैं अपनी भक्ति सदा अर्पण करता हूँ।
श्लोक
हरं हरन्तमम्भसां परं परम्त्परं प्रभुं
निरन्तरं परायणं जगत्प्रसिद्धमव्ययम्।
नमामि देवमद्वयं जगद्विलक्षणं विभुं
विचित्रताण्डवं शिवं भजे भयंकरं विभुम्॥
अर्थ:
जो भगवान शिव संसार के समस्त दुखों को हर लेते हैं, जो सबसे श्रेष्ठ और निरंतर ध्यान करने योग्य हैं, जो पूरे संसार में प्रसिद्ध हैं और जिनका तांडव विचित्र और भव्य होता है, उन शिवजी को मैं नमस्कार करता हूँ।
श्लोक
शिवाय नक्तमन्धिनं प्रपन्नलोकपालकं
विलोललीललोलुपं विपश्चितं विभावसम्।
विपंचिवादनप्रियं समस्तलोकनायकं
प्रणम्य नन्दितं सदा भजामि देवमव्ययम्॥
अर्थ:
जो रात्रि और दिन के स्वामी हैं, सभी की रक्षा करते हैं, संगीत और नृत्य में रुचि रखते हैं, पूरी दुनिया के मालिक हैं, ऐसे भगवान शिव को मैं प्रणाम करता हूँ और भक्ति करता हूँ।
श्लोक
विषादिनोऽपि यः सदा शिवं नमामि भूतये
जगद्विनाशहेतवे भजे सदा हरेशिवम्।
हरं त्रिलोचनं विभुं भजेऽहमेकमक्षरं
नमस्त्रिलोचनाय मे श्रियं ददातु मे शिवः॥
अर्थ:
जो सदा शिव हैं, जिनका काम सृष्टि का विनाश करना है, जो त्रिनेत्रधारी हैं, एकमात्र अक्षर (ॐ) के समान शाश्वत हैं ,ऐसे शिवजी मुझे सुख, समृद्धि और शांति प्रदान करें।
श्लोक
श्रुतिं समुद्रसंकुलां समस्तलोकसंश्रितां
नमामि शंकरं विभुं नमः शिवाय शाश्वतम्।
जटामयूखलेखया ललाटपट्टपावकम्
महेश्वरं महादेवं भजेऽहमेकमव्ययम्॥
अर्थ:
जो भगवान शंकर सबके शरणदाता हैं, जिनकी महिमा वेदों में गाई गई है, जिनकी जटाओं से चंद्रमा की किरणें निकलती हैं और ललाट पर अग्नि जलती है,ऐसे महादेव की मैं भक्ति करता हूँ।
श्लोक
इमं हि नित्यं प्रवदन्ति योगिनो
महेश्वरं वाच्यमानं सत्कथया।
श्रुतिं समग्रां प्रवणं च यः पठेत्
शिवं सदा तं नमसामि भावतः॥
अर्थ:
अध्यात्म से जुड़े लोग जब इस स्तोत्र का रोज पाठ करते हैं और इसे महादेव की सच्ची स्तुति मानते हैं। जो व्यक्ति इसे श्रद्धा से पढ़ता है, वह सदा शिवजी की कृपा का पात्र बनता है।
श्लोक (अंतिम)
शिवं शशांकशेखरं महेश्वरं महाकपाळिनं
प्रणम्य सर्वदुःखदं विनाशकं नमो नमः॥
अर्थ:
जो भगवान शिव चंद्रमा को सिर पर धारण करते हैं, महाकाल हैं, सभी दुखों को हरने वाले हैं। उन भगवान को मैं बार-बार नमस्कार करता हूँ।
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शिव तांडव स्तोत्र का आध्यात्मिक महत्व
- यह स्तोत्र शिवभक्ति का प्रभावशाली उदाहरण है।
- इसे पढ़ने या सुनने से मानसिक शांति मिलती है।
- कहा जाता है कि यह आपको अहंकार छोड़कर सच्ची भक्ति का रास्ता दिखाता है।
- शिव के तांडव को ब्रह्मांड की गति, ऊर्जा और परिवर्तन का प्रतीक माना गया है।
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