श्रावण पुत्रदा एकादशी हिंदू धर्म में एक बहुत ही पुण्यदायी और महत्वपूर्ण व्रत माना जाता है। यह व्रत श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को रखा जाता है। साल 2025 में श्रावण पुत्रदा एकादशी का व्रत 5 अगस्त के दिन रखा जाएगा। इस एकादशी का विशेष महत्व उन शादीशुदा लोगों के लिए होता है जो संतान की प्राप्ति की इच्छा रखते हैं। ‘पुत्रदा’ का अर्थ है संतान देने वाली। यह एकादशी विशेष रूप से भगवान विष्णु को समर्पित होती है। मान्यता है कि श्रद्धा से किया गया यह व्रत संतान प्राप्ति का वरदान देता है।
श्रावण पुत्रदा एकादशी एक बहुत ही पुण्यदायक व्रत है जो न सिर्फ संतान प्राप्ति में सहायक होता है, बल्कि व्यक्ति को मानसिक शांति, पापों से मुक्ति और भगवान विष्णु की कृपा भी प्रदान करता है। यह व्रत श्रद्धा, संयम और भक्ति के साथ किया जाए तो जीवन में सुख और सौभाग्य प्राप्त होता है।
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श्रावण पुत्रदा एकादशी की कथा
मान्यताओं के अनुसार, इस व्रत से जुड़ी एक प्राचीन कथा बहुत प्रसिद्ध है। प्राचीन समय में महिष्मति नगरी में महाजित नामक राजा राज्य करता था। वह बहुत ही धार्मिक और प्रजा के कल्याण के लिए समर्पित था लेकिन वह संतानहीन था। राजा और रानी ने अनेक धार्मिक कार्य, दान-पुण्य और यज्ञ किए, फिर भी उन्हें संतान सुख प्राप्त नहीं हुआ।
राजा इस दुख से अत्यंत चिंतित रहने लगा। एक दिन उन्होंने अपने राज्य के संतों और ऋषियों से इस समस्या का समाधान पूछा। ऋषियों ने ध्यान और तपस्या करने के बाद बताया कि राजा ने अपने पिछले जन्म में एक पुजारी को भोजन न देकर उसका अपमान किया था, जिससे वह शापित हो गया था। इसी वजह उसे इस जन्म में संतान सुख से वंचित रहना पड़ रहा है।
ऋषियों ने राजा को श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को व्रत रखने और भगवान विष्णु की पूजा करने की सलाह दी। राजा ने पूरे विधि-विधान से पुत्रदा एकादशी का व्रत रखा था। कुछ समय बाद रानी ने एक तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया था। इस प्रकार इस व्रत की महिमा सिद्ध हुई था।
व्रत रखने की विधि
- व्रत की तैयारी एक दिन पहले (दशमी तिथि को) ही शुरू हो जाती है। इस दिन सात्विक भोजन किया जाता है और रात्रि को संयम व्रत के साथ सोया जाता है।
- एकादशी के दिन सुबह ब्रह्मं मुहूर्त में उठकर स्नान किया जाता है। शुद्ध वस्त्र पहनकर भगवान विष्णु की मूर्ति के सामने दिया जलाया जाता है।
- व्रत निर्जला (बिना पानी पिए) रखना सर्वश्रेष्ठ माना गया है, अगर स्वास्थ्य ठीक न हो तो फलाहार या फिर केवल पानी पीकर भी व्रत रखा जा सकता है।
- भगवान विष्णु की पूजा पीले फूल, तुलसी दल, फल, धूप, दीप और पंचामृत से की जाती है।
- व्रत के दिन विष्णु सहस्रनाम या विष्णु स्तोत्र का पाठ किया जाता है।
- दिन भर भगवान का स्मरण और भजन-कीर्तन करते हुए व्रती रात्रि जागरण करता है। अगले दिन द्वादशी तिथि को स्नान करके संतों या जरूरतमंदों को भोजन, वस्त्र दान देकर व्रत का पारण किया जाता है।

पूजा करने की विधि
- भगवान विष्णु को स्नान कराएं (या जल छिड़कें) और पीले वस्त्र (कपड़े) पहनाएं (अगर मूर्ति है तो)।
- उन्हें तुलसी के पत्ते, पीले फूल, चंदन, अक्षत (चावल), धूप और दीप (दीया) अर्पित करें।
- भोग में फल, मिठाई या पंचामृत (दूध, दही, शहद, घी, शक्कर) चढ़ाएं।
- विष्णु सहस्रनाम, "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र या श्री विष्णु चालीसा का पाठ करें।
- अंत में आरती करें और भगवान से संतान सुख, परिवार की समृद्धि और शांति की प्रार्थना करें।
श्रावण पुत्रदा एकादशी की धार्मिक मान्यता
हिंदू धर्म में एकादशी तिथि को बहुत शुभ माना गया है। विशेष रूप से श्रावण माह में भगवान विष्णु की पूजा करने से कई गुना अधिक फल मिलता है। पुत्रदा एकादशी का व्रत भगवान विष्णु के ‘नारायण’ रूप की पूजा के लिए रखा जाता है।
ऐसी मान्यता है कि जो दंपत्ति सच्चे मन से इस व्रत को करते हैं और भगवान विष्णु की आराधना करते हैं, उन्हें संतान सुख प्राप्त होता है। साथ ही, इस व्रत से मनुष्य के पाप नष्ट होते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह व्रत न सिर्फ संतान की कामना करने वालों के लिए, बल्कि सभी भक्तों के लिए पुण्यदायी और कल्याणकारी होता है।