भारतीय भूभाग में विभिन्न देवी-देवताओं के प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिर स्थापित हैं, जिनसे कई मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। ऐसा ही एक मंदिर राजस्थान में भी स्थित है, जो भगवान श्री कृष्ण को समर्पित है। यह मंदिर विश्वभर में श्रीनाथ जी मंदिर के नाम से विख्यात है। इस मंदिर के दर्शन के लिए देश-विदेश से लाखों की संख्या में भक्त हर साल यहां आते हैं।
राजस्थान के नाथद्वारा में स्थित श्रीनाथ जी का मंदिर वैष्णव परंपरा का एक प्रमुख तीर्थ स्थल है। यह मंदिर भगवान श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप को समर्पित है और देशभर के भक्तों के लिए आस्था का केंद्र है। इसकी पवित्रता, भव्यता और धार्मिक महत्व इसे विशेष बनाते हैं।
श्रीनाथ जी की नाथद्वारा आने कथा
लोक कथाओं के अनुसार, श्रीनाथ जी भगवान श्रीकृष्ण के उस स्वरूप को दर्शाते हैं जब उन्होंने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठाया था। ब्रजभूमि (वृंदावन) में गोवर्धन के पास श्रीकृष्ण के इस स्वरूप की पूजा होती थी। कहते हैं कि 14वीं शताब्दी में वल्लभ संप्रदाय के प्रवर्तक महाप्रभु वल्लभाचार्य ने श्रीनाथ जी की मूर्ति को ब्रज से बाहर ले जाने का फैसला किया।
कहा जाता है कि जब भगवान की प्रतिमा को लाया जा रहा था, तब एक स्थान पर आकर प्रतिमा का वजन बहुत भारी हो गया और रथ एक कदम भी आगे नहीं बढ़ा। इस घटना को भगवान की इच्छा मानते हुए उस स्थान पर ही मंदिर की स्थापना की गई। यही स्थान नाथद्वारा कहलाया।
इतिहास क्या कहता है
इतिहासकार बताते हैं कि इस मंदिर को 17वीं शताब्दी में महाराणा राज सिंह द्वारा बनवाया गया था। इसे मुगलों के आक्रमण से मूर्ति को बचाने के उद्देश्य से बनाया गया था। इतिहास में उल्लेख मिलता है कि औरंगजेब के शासनकाल में मूर्ति को वृंदावन से राजस्थान लाया गया था।
मंदिर की वास्तुकला राजस्थानी शैली में बनाई गई है, जो अपनी सादगी और भव्यता के लिए प्रसिद्ध है। इसमें मुख्य गर्भगृह है, जहां श्रीनाथ जी की मूर्ति स्थापित है। मूर्ति को संगमरमर के चबूतरे पर रखा गया है और इसे सोने और चांदी के आभूषणों से सजाया गया है।
श्रीनाथ जी मंदिर से जुड़ी कुछ रोचक बातें
श्रीनाथ जी मंदिर वैष्णव संप्रदाय का मुख्य तीर्थस्थल है। यहां सालभर कई उत्सव मनाए जाते हैं, जिनमें मुख्य रूप से जन्माष्टमी, गोवर्धन पूजा और अन्नकूट महोत्सव प्रमुख हैं। भक्त इन दिनों बड़ी संख्या में मंदिर आते हैं। श्रीनाथ जी की आरती और भोग के समय का भी विशेष महत्व है, जिसमें भगवान को तरह-तरह के पकवान अर्पित किए जाते हैं। केवल यही एक मंदिर है सूर्य ग्रहण के दौरान भी खुला रहता है, हालांकि इस दौरान पूजा-पाठ को रोक दिया जाता है।
श्रीनाथ जी मंदिर एकलौता ऐसा मंदिर है जहां, जन्माष्टमी के दिन श्री कृष्ण के जन्म के समय 21 तोपों की सलामी दी जाती है। एक और अनोखी परंपता अन्नकूट महोत्सव के दौरान भी दिखाई देती है, जिसमें श्रीनाथ जी को अर्पित किए गए अन्नकूट को दर्शन करने आए भक्त लूटकर ले जाते हैं। इस परंपरा में केवल आदिवासी समाज के लोग ही हिस्सा ले सकते हैं। आम लोगों को इसमें भाग लेने की मनाही है। कहा जाता है कि यह परंपरा करीब 350 साल पुरानी है।
Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं। Khabargaon इसकी पुष्टि नहीं करता।