उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल के कोटद्वार में स्थित सिद्धबली मंदिर न सिर्फ एक प्रमुख धार्मिक स्थल बल्कि, इस स्थान से जुड़ी ऐतिहासिक और पौराणिक मान्यताएं भी इस धार्मिक स्थल को लोगों के बीच प्रसिद्ध बनाती है। यह मंदिर दिल्ली से लगभग 230 किलोमीटर और हरिद्वार से 76 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, जिससे यह देश के विभिन्न हिस्सों से आने वाले भक्तों के लिए आसानी से सुलभ हो जाता है। कोटद्वार को 'गढ़वाल के प्रवेश द्वार' के रूप में भी जाना जाता है और सिद्धबली मंदिर इस क्षेत्र की पहचान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
इस मंदिर की सबसे अनूठी विशेषता यहां हनुमान जी और सिद्ध योगी गोरखनाथ की एक साथ पूजा होना है। यही कारण है कि इसे 'सिद्धबली' कहा जाता है, जिसका अर्थ है ऐसा स्थान जहां 'सिद्ध शक्तियां' विद्यमान हैं । यह अनूठी पूजा वैष्णव और नाथ परंपराओं के बीच एक दुर्लभ सामंजस्य को दर्शाती है।
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सिद्धबली मंदिर से जुड़ी पौराणिक मान्यताएं
सिद्धबली मंदिर की प्राचीनता का प्रमाण कई लोककथाओं में मिलता है, जो इसे केवल एक आधुनिक तीर्थस्थल नहीं, बल्कि भारत की सदियों पुरानी धार्मिक धरोहर का हिस्सा बनाता है । इस मंदिर से जुड़ी एक प्रमुख लोककथा कत्युर वंश के राजा कुंवर और रानी विमला के पुत्र हरपाल की है । संतानहीन राजा ने अपने ईष्ट गुरु गोरखनाथ से संतान की मन्नत मांगी। उनकी प्रार्थना के फलस्वरूप, उन्हें वीर युवती विमला मिली, जिनसे विवाह के बाद पुत्र हरपाल का जन्म हुआ। यह कथा उत्तराखंड की परंपराओं में पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है, जो मंदिर के प्राचीन आधार को मजबूत करती है।
भक्तों के बीच इस मंदिर से जुड़ी एक मान्यता यह है कि जो भी सच्चे मन से यहां प्रार्थना करता है, उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं । इस विश्वास का सबसे बड़ा प्रमाण यहां चौबीसों घंटे चलने वाला 'भंडारा' है, जिसकी बुकिंग साल 2025 तक हो चुकी है। यहां मनोकामना पूरी होने के बाद भक्त भंडारे का आयोजन करते हैं। स्थानीय लोग इस मंदिर को 'भूमाल देवता' के रूप में भी पूजते हैं, जहां नई फसल चढ़ाई जाती है और नवविवाहित जोड़े आशीर्वाद लेने आते हैं ।
गुरु गोरखनाथ और हनुमान जी का दिव्य संबंध
'सिद्धबली' नाम का रहस्य गुरु गोरखनाथ और हनुमान जी के दिव्य मिलन से संबंधित है। 'सिद्ध' शब्द गुरु गोरखनाथ को और 'बली' शब्द हनुमान जी को दर्शाता है। यह माना जाता है कि इसी स्थान पर गुरु गोरखनाथ को हनुमान जी के साक्षात दर्शन हुए थे। यह घटना तब घटी जब गुरु गोरखनाथ अपने गुरु मछिंद्रनाथ को 'त्रिया राज्य' (जो वर्तमान में चीन के समीप माना जाता है) की रानी मैनाकनी के साथ गृहस्थ आश्रम से मुक्त कराने जा रहे थे, क्योंकि मछिंद्रनाथ हनुमान जी की आज्ञा से वहां रह रहे थे।
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हनुमान जी ने एक मनुष्य का रूप धारण कर गुरु गोरखनाथ का मार्ग रोका, जिसके बाद दोनों के बीच विवाद हुआ। जब हनुमान जी गोरखनाथ को पराजित नहीं कर पाए, तो उन्हें आश्चर्य हुआ। उन्हें यह ज्ञात हुआ कि यह कोई साधारण साधु नहीं, बल्कि एक दिव्य पुरुष हैं। तब हनुमान जी अपने वास्तविक रूप में प्रकट हुए और गोरखनाथ से वरदान मांगने को कहा।
गुरु गोरखनाथ ने हनुमान जी से इसी स्थान पर हमेशा के लिए निवास करने की प्रार्थना की, जिसे हनुमान जी ने स्वीकार कर लिया। इसी दिव्य मिलन और हनुमान जी के यहीं रहने के वरदान के कारण इस पवित्र स्थान का नाम 'सिद्धबली' पड़ा। मंदिर में दो पिंडियां हैं, एक सिद्ध के रूप में और दूसरी बलि के रूप में, जिनकी पूजा की जाती है।
Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।