logo

ट्रेंडिंग:

सीता नवमी पर जानें जानकी जी के प्रसिद्ध स्तोत्र का अर्थ और इसका फल

सीता नवमी पर देवी सीता की उपासना करने से विशेष लाभ प्राप्त होता है। आइए जानते हैं सीता स्तोत्र का अर्थ और महत्व।

Image of Devi Sita

देवी सीता(Photo Credit: AI Image)

सीता नवमी, जिसे जानकी नवमी भी कहते हैं, यह माता सीता के प्रकट होने का पावन पर्व है। यह पर्व वैषाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन माता सीता के जीवन, त्याग, पवित्रता और आदर्शों को स्मरण करते हुए उनके स्तोत्रों और विशेष रूप से सीता स्तोत्र का पाठ अत्यंत फलदायी माना जाता है। ऐसे में आइए जानते हैं सीता स्तोत्र का मूल अर्थ।

सीता स्तोत्र

श्लोक 1:

 

'जानकि त्वां नमस्यामि सर्वपापप्रणाशिनीम्।'

 

अर्थ:

 

हे जानकी माता! मैं आपको नमन करता हूं, आप सभी पापों का नाश करने वाली हैं।

 

यह भी पढ़ें: जब भगवान विष्णु ने अधर्म के नाश के लिए लिया था नृसिंह रूप, पढ़ें कथा

 

श्लोक 2:

 

'दारिद्र्यरणसंहर्त्रीं भक्तानाभिष्टदायिनीम्।
विदेहराजतनयां राघवानन्दकारिणीम्।'

 

अर्थ:

 

आप दरिद्रता का नाश करने वाली, भक्तों की इच्छाएं पूर्ण करने वाली, राजा जनक की पुत्री और श्रीराम को आनंद देने वाली हैं।

 

श्लोक 3:

 

'भूमेर्दुहितरं विद्यां नमामि प्रकृतिं शिवाम्।
पौलस्त्यैश्वर्यसंहत्रीं भक्ताभीष्टां सरस्वतीम्।'

 

अर्थ:

 

मैं आपको प्रणाम करता हूं जो पृथ्वी की पुत्री, ज्ञानस्वरूपा, प्रकृति और शुभता की प्रतीक हैं। आप रावण जैसे अत्याचारी के अहंकार का विनाश करने वाली हैं।

 

श्लोक 4:

 

'पतिव्रताधुरीणां त्वां नमामि जनकात्मजाम्।
अनुग्रहपरामृद्धिमनघां हरिवल्लभाम्।'

 

अर्थ:

 

हे जनक की पुत्री! आप श्रेष्ठ पतिव्रता, पवित्र, लक्ष्मी स्वरूपा और भगवान विष्णु (राम) की प्रिय हैं।

 

श्लोक 5:

 

'आत्मविद्यां त्रयीरूपामुमारूपां नमाम्यहम्।
प्रसादाभिमुखीं लक्ष्मीं क्षीराब्धितनयां शुभाम्।'

 

अर्थ:

 

आप आत्मज्ञान स्वरूपा, वेदत्रयी की रूपवाली, उमा की समान, कृपा देने वाली और समुद्र की पुत्री लक्ष्मी स्वरूपा हैं।

 

श्लोक 6:

 

'नमामि चन्द्रभगिनीं सीतां सर्वाङ्गसुन्दरीम्।
नमामि धर्मनिलयां करुणां वेदमातरम्।'

 

अर्थ:

 

मैं चंद्रमा की बहन स्वरूपा, अत्यंत सुंदर, धर्म की आधारशिला, करुणामयी और वेदों की जननी सीता माता को प्रणाम करता हूं।

 

श्लोक 7:

 

'पद्मालयां पद्महस्तां विष्णुवक्ष:स्थलालयाम्।
नमामि चन्द्रनिलयां सीतां चन्द्रनिभाननाम्।'

 

अर्थ:

 

कमल में वास करने वाली, कमलधारी, विष्णु के हृदय में निवास करने वाली, चंद्रमा के समान उज्ज्वल स्वरूप वाली सीता माता को प्रणाम।

 

यह भी पढ़ें: भारत चार धाम और उत्तराखंड चार धाम यात्रा में क्या अंतर है? जानें

 

श्लोक 8:

 

'आह्लादरूपिणीं सिद्धिं शिवां शिवकरीं सतीम्।
नमामि विश्वजननीं रामचन्द्रेष्टवल्लभाम्।
सीतां सर्वानवद्याङ्गीं भजामि सततं हृदा।'

 

अर्थ:

 

जो आनंद, सिद्धि, कल्याण, सतीत्व और विश्व की माता हैं; श्रीराम की प्रिया सीता को मैं हृदय से सदा भजता हूं।

सीता नवमी पर इस स्तोत्र का महत्व

सीता नवमी के दिन इस स्तोत्र का श्रद्धा और प्रेम से पाठ करने से पापों का नाश होता है, सुख-शांति और समृद्धि आती है। विशेष रूप से महिलाएं पतिव्रता धर्म की रक्षा और परिवार में सौहार्द हेतु इसका पाठ करती हैं। यह स्तोत्र आत्मा की शुद्धि और ईश्वर के प्रति समर्पण की भावना को जागृत करता है।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।

शेयर करें

संबंधित खबरें

Reporter

और पढ़ें

हमारे बारे में

श्रेणियाँ

Copyright ©️ TIF MULTIMEDIA PRIVATE LIMITED | All Rights Reserved | Developed By TIF Technologies

CONTACT US | PRIVACY POLICY | TERMS OF USE | Sitemap