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क्यों विष्णु जी ने लिया था भू-वराह अवतार; कहां होती है इस रूप की पूजा?

तमिलनाडु के कड्डलोर में स्थित श्रीमुष्णम स्वामी मंदिर भगवान विष्णु के तीसरे अवतार वराह को समर्पित है। आइए जानते हैं विष्णु जी ने वराह अवतार क्यों धारण किया था।

 Sri Bhuvaraha Swamy Temple

श्रीमुष्णम भू-वराह स्वामी मंदिर: Photo credit: Wikipedia

तमिलनाडु के कड्डलोर जिले में स्थित श्रीमुष्णम भू-वराह स्वामी मंदिर भगवान विष्णु के वराह अवतार को समर्पित एक प्राचीन और पवित्र तीर्थस्थल है। मान्यता है कि जब असुर हिरण्याक्ष ने पृथ्वी देवी को समुद्र की गहराई में छिपा दिया था, तब भगवान विष्णु ने वराह (सुअर) रूप धारण कर उन्हें बचाया था और दोबारा सृष्टि में स्थापित किया था। यही स्थान आज भू वराह स्वामी मंदिर के रूप में श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बना हुआ है।

 

दक्षिण भारत के आठ स्वयंभू विष्णु मंदिरों में शामिल यह मंदिर अपनी भव्यता और दिव्यता के लिए प्रसिद्ध है। यहां वराह स्वामी और देवी लक्ष्मी की एक साथ पूजा होती है, जिसे पृथ्वी की रक्षा और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। मंदिर परिसर का पवित्र यज्ञवती तीर्थम धार्मिक दृष्टि से विशेष महत्व रखता है।

 

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क्यों विष्णु जी ने लिया था भू वराह अवतार?

भगवान विष्णु के भू वराह अवतर की पौराणिक कथा इस मंदिर से जोड़कर बताई जाती है। कथा के अनुसार, भू वराह मंदिर भगवान विष्णु के वराह अवतार को समर्पित है और इसकी कथा बेहद रोचक है। मान्यता है कि असुर हिरण्याक्ष ने पृथ्वी देवी को समुद्र की गहराई में छिपा दिया था। तब देवताओं और ऋषियों की प्रार्थना सुनकर भगवान विष्णु ने वराह अर्थात सूअर का रूप धारण किया था और समुद्र में प्रवेश कर देवी पृथ्वी को अपने दांतों पर उठाकर दोबारा सृष्टि में स्थापित किया था। इसी स्थान पर उन्होंने असुर हिरण्याक्ष का वध किया था और यही स्थल श्रीमुष्णम मंदिर के रूप में पूजनीय बना है। कहा जाता है कि यहां स्थापित भू-वराह स्वामी की मूर्ति स्वयं प्रकट हुई है और इसे भगवान विष्णु की दिव्य उपस्थिति माना जाता है।

 

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मंदिर की विशेषताएं

  • यह दक्षिण भारत के आठ स्वयंभू विष्णु मंदिरों में से एक है।
  • मंदिर में वराह स्वामी और देवी लक्ष्मी (अम्मावर) की संयुक्त पूजा होती है।
  • मंदिर की प्रतिमा भूमि से स्वयं प्रकट हुई मानी जाती है।
  • यहां का यज्ञ कुंड और पवित्र तालाब (यज्ञवती तीर्थम) अत्यंत धार्मिक महत्व रखते हैं।
  • मंदिर वैष्णव और शैव दोनों परंपराओं के अनुयायियों के लिए पवित्र स्थल है।

मंदिर तक पहुंचने का रास्ता

  • नजदीकी रेलवे स्टेशन: नजदीकी रेलवे स्टेशन वृद्धाचलम है, जो लगभग 20 किमी दूर है।
  • सड़क मार्ग से: मंदिर कड्डलोर और वृद्धाचलम के बीच स्थित है। चेन्नई (लगभग 250 किमी) से सीधी बस/टैक्सी उपलब्ध है।
  • नजदीकी एयरपोर्ट: सबसे नजदीकी एयरपोर्ट पुडुचेरी (90 किमी) और चेन्नई इंटरनेशनल एयरपोर्ट हैं।

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