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महाबोधि मंदिर: श्रीलंका के जिस मंदिर में गए पीएम, वहीं है कल्पवृक्ष

श्रीलंका के अनुराधापुर शहर में स्थित जय श्री महाबोधि मंदिर का बौद्ध धर्म में खास स्थान है। आइए जानते हैं इस स्थान से जुड़ी खास बातें।

Image of Jaya Sri Maha Bodhi Temple

श्रीलंका में स्थित जय श्री महाबोधि मंदिर।(Photo Credit: Wikimedia Commons)

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने श्रीलंका दौरे के आखिरी दिन जय श्री महाबोधि मंदिर में दर्शन किए। यह मंदिर श्रीलंका के बौद्ध धर्म के सबसे पवित्र स्थलों में से एक है और ऐतिहासिक, धार्मिक तथा सांस्कृतिक रूप से बहुत महत्त्वपूर्ण माना जाता है। बता दें कि इस मंदिर में मौजूद वृक्ष की उम्र करीब 2300 साल बताई जाती है, जिसका भारत से गहरा संबंध है। आइए जानते हैं जय श्री महाबोधि मंदिर के बारे में।

जय श्री महाबोधि मंदिर का इतिहास

जय श्री महाबोधि मंदिर श्रीलंका के अनुराधापुर शहर में स्थित है। कहा जाता है कि इसका निर्माण लगभग 3वीं शताब्दी ईसा पूर्व में हुआ था। यह मंदिर बौद्ध धर्म के सबसे पुराने पूजास्थलों में से एक है, जिसे राजा देवानांपिय तिस्स ने बनवाया था। इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां भारत के बोधगया से लाई गई बोधिवृक्ष (पीपल का पेड़) की एक शाखा को स्थापित किया गया था।

 

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यह पेड़ उसी पवित्र बोधिवृक्ष का हिस्सा है जिसके नीचे भगवान गौतम बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त किया था। श्रीलंका में इस वृक्ष की शाखा को भगिनी संघमित्रा (सम्राट अशोक की पुत्री) भारत से लेकर आई थीं। तभी से यह स्थान सदियों से बौद्ध श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बना हुआ है।

महाबोधि वृक्ष और स्थान से जुड़ी मान्यताएं

यह स्थान सिर्फ बोधिवृक्ष के लिए ही नहीं, बल्कि बौद्ध साधना और बोधि (ज्ञान) का भी प्रतीक है। माना जाता है कि इस वृक्ष की परिक्रमा करने से मन की शांति मिलती है और पुण्य फल की प्राप्ति होती है। यह वृक्ष आज भी जीवित है और इसे दुनिया का सबसे पुराना ऐतिहासिक रूप से संरक्षित वृक्ष माना जाता है।

 

जय श्री महाबोधि मंदिर बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए उतना ही पवित्र है जितना हिंदुओं के लिए काशी या मथुरा है। हर साल लाखों बौद्ध श्रद्धालु इस स्थान पर आकर प्रार्थना, ध्यान और पूजा करते हैं। इसके साथ यह मंदिर भारत-श्रीलंका के ऐतिहासिक और धार्मिक संबंधों की एक निशानी भी है।

 

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प्राचीन काल में सम्राट अशोक द्वारा भेजे गए संघमित्रा और महेन्द्र ने बौद्ध धर्म के प्रचार में श्रीलंका में बड़ा योगदान दिया था। वर्तमान समय मने यूनेस्को ने इस स्थान को वर्ल्ड हेरिटेज साइट घोषित किया है। इस जगह से जुड़ी एक मान्यता यह भी है कि जो लोग संतान प्राप्ति इच्छा रखते हैं या अच्छी फसल की कामना करते हैं, उनके लिए यह स्थान खास महत्व रखता है।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।

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