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पार्थसारथी स्वामी मंदिर: जहां मूंछों वाले कृष्ण भगवान की होती है पूजा

तमिलनाडु के चेन्नई में स्थित अरुलमिगु श्री पार्थसारथी स्वामी मंदिर भगवान कृष्ण के सारथी रूप को समर्पित है, इस मंदिर की मूर्ति से जुड़ी पौराणिक कथाएं बहुत प्रसिद्ध हैं।

 Sri Partha sarathy swamy mandir

श्री पार्थ सारथी स्वामी मंदिर की तस्वीर: Photo credit: X handle/ Taarak Mehta Jr.

अरुलमिगु श्री पार्थसारथी स्वामी मंदिर तमिलनाडु के चेन्नई शहर में स्थित है। यह मंदिर दक्षिण भारत के प्राचीनतम और प्रसिद्ध मंदिरों में से एक माना जाता है। यह मंदिर भगवान कृष्ण के पार्थसारथी रूप को समर्पित है। अरुलमिगु श्री पार्थसारथी स्वामी मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल ही नहीं, बल्कि आस्था, पौराणिक इतिहास और द्रविड़ कला का अद्भुत संगम है। यह स्थान उन सभी के लिए खास है जो भगवान कृष्ण के जीवन दर्शन और भक्ति मार्ग को करीब से महसूस करना चाहते हैं। 

 

तिरुवल्लिकेनी के निकट स्थित, इस मंदिर का उल्लेख नालयिर दिव्य प्रबंधम् में किया गया है। इस दिव्य प्रबंधन की रचना छठी से नौवीं शताब्दी के बीच अलवर संतों नें की थी। यह प्रारंभिक मध्यकालीन तमिल साहित्य का संग्रह है और इसे भगवान विष्णु को समर्पित 108  दिव्य देशमों में से एक माना जाता है। 'पार्थसारथी' नाम का अर्थ है 'अर्जुन का सारथी' से है, जो महाभारत में श्रीकृष्ण के जरिए अर्जुन के सारथी की भूमिका को दर्शाता है  ।

पौराणिक मान्यता

पौराणिक कथाओं के अनुसार, महाभारत के युद्ध के समय अर्जुन ने भगवान कृष्ण से अपने सारथी बनने की प्रार्थना की। भगवान ने बिना हथियार उठाए अर्जुन के रथ का संचालन किया और उन्हें युद्ध में मार्गदर्शन दिया। इसी रूप में भगवान को 'पार्थसारथी' नाम से पूजा जाता है। माना जाता है कि इसी स्वरूप की मूर्ति इस मंदिर में स्थापित है, जिसमें भगवान को मूंछों के साथ और युद्ध में लगी चोटों के निशानों सहित दिखाया गया है। यह दर्शाता है कि भगवान ने अपने भक्त के लिए युद्ध की कठिनाइयों को भी स्वीकार किया। इस जगह को अल्लिकेनी भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है लिली का एक तालाब क्योंकि यह माना जाता है कि ऐतिहासिक रूप से यह स्थान लिली के तालाबों से भरा था।

 

मान्यताओं के अनुसार,  यह मंदिर 8वीं शताब्दी में पल्लव वंश के राजा नरसिंह वर्मन द्वितीय ने बनवाया था। बाद में चोल और विजयनगर साम्राज्य के शासकों ने इसका विस्तार किया और इसकी सुंदरता बढ़ाई। मंदिर की वास्तुकला द्रविड़ शैली में बनी है, जिसमें विशाल गोपुरम (मुख्य द्वार टावर) और सुंदर पत्थर की नक्काशी देखने को मिलती है।

 

मंदिर की विशेषताएं

  • मुख्य देवता – मंदिर में भगवान कृष्ण पार्थसारथी रूप में विराजमान हैं।
  • अन्य विग्रह – यहां श्रीदेवी, भूदेवी, विष्वक्सेन और अन्य रूपों में विष्णु जी की मूर्तियां भी हैं।
  • वास्तुकला – मंदिर में सात प्राकार (परिक्रमा मार्ग) हैं, दीवारों और स्तंभों पर महाभारत और रामायण की कथाओं की नक्काशी की गई है।
  • अनूठा स्वरूप – यह एकमात्र मंदिर है जिसमें भगवान कृष्ण को मूंछों और युद्ध के निशानों के साथ दर्शाया गया है।

मंदिर में होने वाले प्रमुख उत्सव

  • ब्रहमोत्सव –  यह उत्सव साल में एक बार भव्य रूप से मनाया जाता है, जिसमें भगवान की शोभायात्रा होती है।
  • वैष्णव उत्सव – विशेषकर वैकुंठ एकादशी पर हजारों भक्त यहां दर्शन करने के लिए आते हैं, जिसे वैष्णव उत्सव के नाम से जानते हैं। 
  • रथ यात्रा – इसमें भगवान को सुंदर सजाए गए रथ पर बैठाकर पूरे क्षेत्र में घुमाया जाता है।

कैसे पहुंचें

  • नजदीकी एयरपोर्ट  – चेन्नई इंटरनेशनल एयरपोर्ट मंदिर से लगभग 20 किमी दूर है।
  • नजदीकी रेलवे स्टेशन – चेन्नई सेंट्रल रेलवे स्टेशन मंदिर से करीब 4 किमी दूरी पर है।
  • सड़क मार्ग – चेन्नई के किसी भी हिस्से से ऑटो, बस या टैक्सी के जरिए आसानी से पहुंचा जा सकता है।
  • स्थानीय स्टेशन – तिरुवल्लिकेनी स्टेशन मंदिर के पास ही है, पैदल कुछ ही मिनट में पहुंचा जा सकता है।

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