तमिलनाडु के कन्याकुमारी जिले में स्थित सुचिंद्रम मंदिर एक प्राचीन और अत्यंत पवित्र धार्मिक स्थल है। यह मंदिर कन्याकुमारी से लगभग 13 किलोमीटर और तिरुवनंतपुरम से करीब 75 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह न सिर्फ अपनी वास्तुकला और धार्मिक महत्त्व के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इससे जुड़ी देवी सती की कथा और पौराणिक मान्यताओं ने इसे एक शक्ति पीठ के रूप में विशेष स्थान प्रदान किया है।
पौराणिक कथा
हिंदू धर्म के अनुसार, जब माता सती ने अपने पिता दक्ष के यज्ञ में अपमानित होकर योगाग्नि में आत्मदाह किया, तो भगवान शिव अत्यंत क्रोधित और दुखी हो उठे। वह देवी सती के शरीर को लेकर ब्रह्मांड में भ्रमण करने लगे। तब भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को खंड-खंड कर पृथ्वी पर गिराया ताकि शिव का क्रोध शांत हो सके। माना जाता है कि सती का ऊपरी दांत सुचिंद्रम में गिरा था। इस कारण यह स्थान एक शक्ति पीठ बन गया और अत्यंत श्रद्धा के साथ पूजा जाने लगा।
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मंदिर का इतिहास और स्थापत्य
सुचिंद्रम मंदिर का निर्माण प्राचीन काल में पांड्य वंश के शासकों द्वारा शुरू हुआ था और आगे चलकर चोल और नायक वंश के राजाओं ने इसका विस्तार किया। मंदिर का स्थापत्य द्रविड़ शैली का अद्भुत उदाहरण है। इसका मुख्य गोपुरम (प्रवेश द्वार) लगभग 134 फीट ऊंचा है और इसमें सुंदर नक्काशी की गई है।
इस मंदिर की सबसे विशेष बात यह है कि यहां पूजा तीनों प्रमुख देवता- ब्रह्मा, विष्णु और महेश की एक साथ की जाती है। इसे 'स्थानुमलायन मंदिर' भी कहा जाता है, जिसमें स्थानीय भाषा में 'स्थानु' का अर्थ है शिव, 'मल' का अर्थ है विष्णु और 'आयन' का अर्थ है ब्रह्मा यह मंदिर इन तीनों की शक्ति को एक साथ समर्पित है, जो भारत में दुर्लभ है।
सुचिंद्रम मंदिर को 51 शक्ति पीठों में से एक माना जाता है। यहां देवी सती के ऊपरी दांत के गिरने की मान्यता है। इस वजह से यह स्थान विशेष रूप से शक्ति उपासकों के लिए पावन तीर्थ बन गया है। संस्कृत में 'सुचि' का अर्थ होता है पवित्र या शुद्ध। कहा जाता है कि भगवान इंद्र ने यहां आकर अपने पापों से मुक्ति पाई थी। इसलिए इस स्थान को सुचिंद्रम (जहां शुद्धता प्राप्त हो) कहा जाता है।
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इसके साथ में इस मंदिर में भगवान हनुमान की एक बहुत ही दुर्लभ और विशाल प्रतिमा है, जिसमें उन्हें हजार भुजाओं के साथ दिखाया गया है। यह दक्षिण भारत की सबसे बड़ी हनुमान मूर्तियों में से एक है। मंदिर के अंदर 4 संगीत स्तंभ हैं, जिन्हें जब थपथपाया जाता है तो अलग-अलग स्वरों की ध्वनि निकलती है। साथ ही, स्तंभों और दीवारों पर नक्काशियां बनी हुई है। यहां शिवलिंग के साथ विष्णु और ब्रह्मा की मूर्तियां भी पूजी जाती हैं, जो इसे धार्मिक समरसता का प्रतीक बनाती हैं।
धार्मिक महत्व और उत्सव
हर साल मंदिर में कई प्रमुख त्योहार मनाए जाते हैं, जिनमें सबसे प्रसिद्ध है कार्तिगई दीपम, जब मंदिर और इसके परिसर को दीपों से सजाया जाता है। मार्गशीर्ष महीने में (दिसंबर-जनवरी) विशेष पूजा होती है। श्रद्धालु यहां आकर पवित्र स्नान कर पापों से मुक्ति की कामना करते हैं। साथ ही नवरात्रि के दौरान भी इस मंदिर का अपना एक विशेष महत्व होता है।
Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।