हिंदू धर्म में सूर्य देव प्रत्यक्ष देवता के रूप में पूजे जाते हैं। बता दें कि शास्त्रों में सूर्य देव को हनुमान जी के गुरु के रूप में वर्णित किया गया है। किंवदंतियों के अनुसार, बचपन से ही हनुमान जी अपार शक्ति और अद्भुत क्षमताओं से संपन्न थे। उनकी बाल-लीलाओं में से एक कथा में उनके सूर्य देव को गुरु बनाने की कथा भी शामिल है। आइए जानते हैं-
जब सूर्य को समझ लिया था फल
पौराणिक कथा के अनुसार, हनुमान जी का जन्म वानर राज केसरी के घर हुआ था। उन्हें भगवान शिव का 11वां रूद्र अवतार माना जाता हैं। एक दिन, उन्होंने आकाश में चमकते हुए सूर्य को देखा। उन्होंने सूर्य को एक बड़ा लाल फल समझ लिया और अद्वितीय शक्ति के कारण तुरंत आकाश में उड़ गए और सूर्य को पकड़ने की कोशिश करने लगे।
इस दौरान उनकी गति इतनी तीव्र थी कि वे सूर्य के पास तक पहुंच गए। इंद्रदेव ने यह देखकर अपने वज्र से उन पर प्रहार किया, जिससे हनुमान जी मूर्छित हो गए। बाद में, पवनदेव (हनुमान जी के पिता) के क्रोध और ब्रह्मा जी के हस्तक्षेप के कारण हनुमान जी को पुनर्जीवित किया गया। ब्रह्मा जी ने उन्हें आशीर्वाद दिया और उनकी असीम शक्तियों को जागृत किया।
ज्ञान की खोज में सूर्य देव को गुरु बनाना
बाल्यकाल से ही हनुमान जी की जिज्ञासा और ज्ञान के प्रति रुचि बहुत अधिक थी। उन्होंने सभी विद्याओं में निपुण होने की ठानी। उनकी माता अंजना ने उन्हें बताया कि सूर्य देव सभी विद्याओं के भंडार हैं और उनसे शिक्षा प्राप्त करना सबसे उचित होगा।
हनुमान जी ने सूर्य देव के पास जाकर उन्हें अपना गुरु बनाने की प्रार्थना की। सूर्य देव ने यह कहकर मना कर दिया कि वे हमेशा गति में रहते हैं और उनके लिए एक स्थान पर रुकना संभव नहीं है, जिस वजह से उनके पास शिक्षा देने के लिए समय नहीं है। हनुमान जी ने अपनी भक्ति और समर्पण से कहा कि वे सूर्य के समान गति से चलते हुए शिक्षा ग्रहण करेंगे।
सूर्य के साथ समान गति से चलना
हनुमान जी ने अपनी अद्भुत शक्ति का उपयोग करते हुए सूर्य के समान गति से चलना आरंभ कर दिया। वे सूर्य के रथ के समक्ष उड़ते हुए उनके हर शब्द और शिक्षा को ध्यानपूर्वक सुनते। उन्होंने वेद, उपनिषद, व्याकरण, ज्योतिष और अन्य सभी विद्याएं पूर्ण निष्ठा से सीखी।
सूर्य देव की परीक्षा और गुरु दक्षिणा
सूर्य देव हनुमान जी की समर्पण भावना और ज्ञान की प्यास से अत्यंत प्रभावित हुए। शिक्षा पूरी होने के बाद हनुमान जी ने गुरु दक्षिणा के लिए कहा। सूर्य देव ने कहा कि वे कोई दक्षिणा नहीं चाहते, क्योंकि हनुमान जी का समर्पण ही उनके लिए पर्याप्त है।
हनुमान जी ने अपनी जिद पर सूर्य देव से कुछ मांगने का आग्रह किया। तब सूर्य देव ने कहा कि वे अपने पुत्र सुग्रीव की मदद करने का वचन दें। हनुमान जी ने इसे सहर्ष स्वीकार किया और बाद में सुग्रीव की सहायता कर अपने गुरु को दी हुई वचन का पालन किया।
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