हिंदू धर्म में सूर्य देव को विशेष स्थान प्राप्त है। उन्हें नौ ग्रहों के राजा माना जाता है और वे संपूर्ण ब्रह्मांड को ऊर्जा प्रदान करने वाले देवता हैं। सूर्य देव को ऊर्जा और शक्ति का स्रोत माना जाता है। पौराणिक धर्म-ग्रंथों में बताया गया है कि सूर्य देव को यह उपाधि कई कारणों से मिली, जिनमें उनका तेज, उनकी शक्ति और उनके द्वारा संपूर्ण सृष्टि को दी जाने वाली ऊर्जा प्रमुख है।
सृष्टि में सूर्य देव की महत्ता
पुराणों के अनुसार, जब ब्रह्मांड का निर्माण हुआ, तब सभी ग्रहों की उत्पत्ति भी हुई। परंतु इनमें से किसी भी ग्रह में स्वयं की ऊर्जा नहीं थी। सभी ग्रह सूर्य देव के चारों ओर घूमते थे और उनकी रोशनी से प्रकाशित होते थे। सूर्य देव ही एकमात्र ऐसे ग्रह थे जिनमें स्वयं प्रकाश उत्पन्न करने की शक्ति थी। इस कारण सभी ग्रह सूर्य देव पर निर्भर हो गए।
सृष्टि के पालनकर्ता भगवान विष्णु पालनकर्ता हैं। उन्होंने सभी देवताओं और ऋषियों के अनुरोध पर सूर्य को ग्रहों का स्वामी बना दिया गया। वेदों में भी सूर्य देव को ‘सर्वश्रेष्ठ देवता’ माना गया है, क्योंकि वे संपूर्ण ब्रह्मांड को प्रकाश और ऊर्जा प्रदान करते हैं।
यह भी पढ़ें: रामायण से महाभारत तक, इनसे जानें कैसे इस्तेमाल होना चाहिए Tax?
पौराणिक कथा और मान्यता
एक पौराणिक कथा के अनुसार, जब देवताओं और असुरों के बीच संघर्ष हो रहा था, तब देवताओं को शक्ति की आवश्यकता थी। सभी देवता भगवान ब्रह्मा के पास गए और उनसे इस समस्या का समाधान मांगा। तब ब्रह्मा जी ने बताया कि केवल सूर्य देव ही ऐसे देवता हैं जो सभी को जीवन देने वाले हैं और उनकी शक्ति अद्वितीय है। इस कारण सूर्य देव को सभी ग्रहों का राजा बनाया गया, ताकि वे सभी ग्रहों को संतुलित कर सकें और उनके माध्यम से सृष्टि का संचालन कर सकें।
इसके अलावा, सूर्य देव को भगवान विष्णु का स्वरूप भी माना जाता है। श्रीमद्भगवद्गीता में भी श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया कि उन्होंने सबसे पहले सूर्य देव को ही दिव्य ज्ञान दिया था। इससे यह सिद्ध होता है कि सूर्य देव को न केवल शक्ति और ऊर्जा के कारण बल्कि ज्ञान और धर्म के कारण भी उच्च स्थान प्राप्त हुआ।
Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं। Khabargaon इसकी पुष्टि नहीं करता।