हिंदू धर्म में सूर्य देव को शक्ति, प्रकाश, ऊर्जा और जीवन के प्रतीक के रूप में पूजा जाता है। उनका स्थान नवग्रहों में प्रमुख माना गया है और वह न केवल प्रकृति बल्कि धरती के सभी प्राणियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। हिंदू संस्कृति के अनुसार, सूर्य देव की उपासना रविवार के दिन विशेष रूप से कि जाती है और सूर्य देव को जल अर्पित किया जाता है। कई लोग यह भी जानने के इच्छुक होते हैं कि रविवार के दिन ऐसा क्यों किया जाता है।
सूर्य को जल चढ़ाने का अर्थ
सूर्य देव को जल चढ़ाने का अर्थ प्रकृति और जीवन के प्रति आभार व्यक्त करना है। कहा जाता है कि सुबह-सुबह सूर्य की किरणें सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती हैं। जल चढ़ाने से सूर्य की किरणें जब जल से परावर्तित होकर व्यक्ति तक पहुंचती हैं, तो यह शरीर और मन को शीतलता और सकारात्मकता प्रदान करती हैं। जल चढ़ाते समय व्यक्ति का मन एकाग्र होता है, जो ध्यान और साधना में सहायक होता है।
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पौराणिक कथा
सूर्य देव को जल चढ़ाने की परंपरा से जुड़ी एक प्राचीन कथा महाभारत काल से संबंधित है। यह कथा कर्ण के जीवन से जुड़ी हुई है। कर्ण को सूर्य पुत्र के रूप में जाना जाता है और वह प्रतिदिन उगते सूर्य को जल अर्पित करते थे। कर्ण का यह नियम था कि वह अपनी श्रद्धा और कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए सूर्य देव की उपासना में कभी कमी नहीं आने देते थे।
कहते हैं कि जब कर्ण को उनकी दानशीलता के लिए जाना गया, तब एक बार इंद्र देव ने ब्राह्मण का वेश धारण कर उनसे उनका कवच-कुंडल मांगा। कर्ण ने बिना सोचे-समझे अपना कवच-कुंडल दान कर दिया। यह उनकी श्रद्धा और सूर्य देव के प्रति विश्वास का प्रतीक था। इसी घटना से कर्ण को दानवीर कर्ण नाम मिला।
क्या है धार्मिक महत्व?
हिंदू धर्म में सूर्य को जल चढ़ाने का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इससे न केवल ग्रहों के अशुभता कम हो जाते हैं, बल्कि यह भगवान सूर्य के आशीर्वाद को प्राप्त करने का माध्यम भी है। ऐसा माना जाता है कि सूर्य देव की कृपा से व्यक्ति के जीवन में सुख, समृद्धि और शांति का संचार होता है। साथ ही सूर्य देव को गुरु की उपाधि भी प्राप्त है। पौराणिक काथा के अनुसार, उन्होंने हनुमान जी शिक्षा दी थी। इसलिए ऐसा करने से हनुमान जी का भी आशीर्वाद प्राप्त होता है।
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