हिंदू धर्म में नववर्ष का आरंभ दो प्रकार से माना जाता है, एक चंद्र नववर्ष और दूसरा सौर नववर्ष। बता दें कि चंद्र नववर्ष चैत्र महीने मे आता है और सौर नववर्ष संक्रांति के आधार पर मनाया जाता है। यह तब शुरू होता है जब सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है, जिसे 'मेष संक्रांति' कहा जाता है। वैदिक पंचांग के अनुसार, इस वर्ष सौर नववर्ष 14 अप्रैल 2025, सोमवार दिन मनाया जाएगा और इसे भारत के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग नामों और परंपराओं के साथ मनाया जाता है।
सौर नववर्ष का धार्मिक महत्व
सौर नववर्ष हिंदू पंचांग के अनुसार विशेष महत्व रखता है क्योंकि यह प्रकृति में नए चक्र की शुरुआत का प्रतीक है। यह वह समय होता है जब दिन लंबा होने लगता है, खेतों में नई फसलें पक जाती हैं और मौसम में गर्माहट आने लगती है।
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इस परिवर्तन को सूर्य देव की कृपा माना जाता है, इसलिए इस दिन सूर्य की विशेष पूजा की जाती है। साथ ही, यह दिन नई शुरुआत का संकेत देता है- घर की सफाई, नए वस्त्र पहनना, पवित्र नदियों में स्नान, दान-पुण्य करना और शुभ कार्यों की शुरुआत इसी दिन की जाती है।
भारत में सौर नववर्ष अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है, जैसे तमिलनाडु में 'पुथांडु', केरल में 'विषु', पंजाब में 'बैसाखी', ओडिशा में 'महाविषुवा संक्रांति', बंगाल में 'पोइला बोइशाख', असम में 'रोंगाली बिहू', यह सभी उत्सव सौर नववर्ष की शुरुआत को ही दर्शाते हैं।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, सूर्य देव प्रत्यक्ष देवता हैं और उनकी उपासना से व्यक्ति को आरोग्यता और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। सूर्य देव की उपासना के साथ पवित्र स्नान का भी विशेष महत्व है।
सौर नववर्ष पर क्या करें
इस दिन लोग सुबह जल्दी उठकर पवित्र नदियों या घर पर स्नान करते हैं। इसके बाद सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है और मंदिरों में विशेष पूजा होती है। साथ ही सूर्य देव को जीवन का आधार माना गया है, इसलिए मान्यता है कि इस दिन उनकी पूजा से आरोग्य, समृद्धि और शक्ति की प्राप्ति का विश्वास किया जाता है। बता दें सौर नववर्ष को अत्यंत शुभ माना जाता है, इसलिए लोग इस दिन व्यापार, पढ़ाई, नई योजनाओं या कार्यों की शुरुआत करते हैं।
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देश के विभिन्न हिस्सों में उत्सव मनाए जाते हैं और लोग नए कपड़े पहनते हैं, पारंपरिक व्यंजन बनाए जाते हैं। मंदिरों में दान, गौसेवा, अन्नदान आदि किया जाता है। गरीबों को वस्त्र, अन्न या धन देने से पुण्य फल की प्राप्ति मानी जाती है। साथ ही कई जगहों पर लोकनृत्य, संगीत, मेले और पारंपरिक खेलों का आयोजन भी होता है।