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कितनी तरह से लगा सकते हैं तिलक, मान्यताएं क्या हैं?

भारतीय संस्कृति और सनातन परंपरा में माथे पर लगाया जाने वाला तिलक हिंदू धर्म के अलग-अलग समुदायों को दर्शाता है। आइए जानते हैं ये कितने प्रकार के होते हैं और इनका महत्व क्या है।

Symbolic picture of Tilak applied on forehead

माथे पर लगाने वाले तिलक की प्रतीकात्मक तस्वीर: Photo Credit: AI

भारतीय संस्कृति और सनातन परंपरा में माथे पर लगाया जाने वाला तिलक केवल एक धार्मिक चिह्न नहीं बल्कि आस्था, पहचान और आध्यात्मिक ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। बचपन से लेकर वृद्धावस्था तक हर हिंदू के जीवन में तिलक का महत्व किसी न किसी रूप में जुड़ा हुआ है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, तिलक लगाने से न केवल मन और मस्तिष्क को शांति मिलती है, बल्कि यह व्यक्ति की धार्मिक पहचान और उसके समुदाय की आस्था को भी दर्शाता है।

 

हिंदू धर्म में तिलक कई प्रकार के होते हैं और हर तिलक के पीछे एक विशेष आध्यात्मिक और दार्शनिक मान्यता जुड़ी होती है। उदाहरण के लिए, शैव समुदाय के लोग अपने माथे पर त्रिपुंड्र लगाते हैं, जिसमें भस्म की तीन क्षैतिज रेखाएं और बीच में लाल बिंदु होता है, जो भगवान शिव की उपासना का प्रतीक है। वहीं, वैष्णव समुदाय के अनुयायी माथे पर ऊर्ध्वपुंड्र तिलक लगाते हैं, जिसमें चंदन से बनी दो ऊर्ध्वाधर रेखाएं और बीच में लाल या पीली रेखा होती है, जो भगवान विष्णु और उनके अवतारों की भक्ति को दर्शाता है।

 

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त्रिपुंड (तीन क्षैतिज रेखाएं)

यह तिलक भस्म (राख) से बनाया जाता है और इसे मुख्य रूप से शैव समुदाय के लोग लगाते हैं। यह शिवजी की आराधना का प्रतीक है। इसके बीच में कभी-कभी चंदन का बिंदु भी लगाया जाता है। यह तिलक विरक्ति और वैराग्य का संकेत देता है।

 

ऊर्ध्वपुंड (U आकार का तिलक)

यह तिलक वैष्णव समुदाय से जुड़ा है। इसे चंदन, गेरू या मिट्टी से बनाया जाता है और यह भगवान विष्णु के चरणों का प्रतीक है। इसके बीच में अक्सर लाल रंग की एक रेखा भी होती है जो लक्ष्मी जी का संकेत मानी जाती है।

 

कुमकुम या चंदन का गोल बिंदु (बिंदी/तिलक)

यह तिलक आमतौर पर शाक्त समुदाय से जुड़ा होता है और देवी शक्ति की आराधना का प्रतीक माना जाता है। महिलाएं इसे कुमकुम से लगाती हैं। इसे शुभता और सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है।

 

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रामानंदी तिलक (ऊर्ध्व रेखा और बीच में लाल पट्टी)

यह तिलक रामानंदी संप्रदाय के लोग लगाते हैं। इसे 'राम नाम का तिलक' भी कहा जाता है। रामानंदी तिलक मुख्य रूप से रामानंदी संप्रदाय के साधु-संत लगाते हैं, जिन्हें रामानंदी वैष्णव भी कहा जाता है। उत्तर भारत के कई अखाड़ों और मठों में यह परंपरा आज भी बहुत प्रचलित है। रामानंदी तिलक का संबंध भगवान श्रीराम और हनुमान जी की उपासना से है। सफेद रेखा भगवान विष्णु/राम का प्रतीक मानी जाती है, जबकि बीच की लाल रेखा माता सीता और भक्त हनुमान जी की भक्ति का संकेत देती है।

 

गोल चंदन का तिलक और बीच में लाल बिंदु

यह तिलक पूजा-पाठ या मंदिर में जाते समय लगाया जाता है। चंदन से ठंडक और मन की शांति मिलती है, जबकि कुमकुम से ऊर्जा और शक्ति का भाव जुड़ता है।

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