logo

ट्रेंडिंग:

भस्म आरती से पौराणिक कथा तक, जानें महाकाल मंदिर से जुड़ी सभी बातें

भगवान शिव के प्रसिद्ध मंदिरों में उज्जैन के महाकाल मंदिर का नाम शीर्ष पर लिया जाता है। जानिए क्या है इस स्थान की कथा और पौराणिक मान्यताएं।

Image of Mahakal Mandir

महाकाल मंदिर, उज्जैन(Photo Credit: Wikimedia Commons)

उज्जैन में स्थित महाकालेश्वर मंदिर सिर्फ एक मंदिर नहीं, बल्कि सनातन संस्कृति, आस्था और शक्ति का प्रतीक है। यह भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है और एकमात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है जिसे 'दक्षिणमुखी' यानी दक्षिण की ओर मुख वाला माना जाता है। भगवान शिव के इस रूप को 'महाकाल' कहा गया है, जो समय, मृत्यु और संहार के अधिपति हैं।

 

सावन के पवित्र महीने में भगवान महाकाल के दरबार में लाखों की संख्या में भक्त उमड़ते हैं। मान्यता है कि भगवान महाकाल के दर्शन करने से व्यक्ति के सभी दुःख और कष्ट दूर हो जाते हैं और उन्हें जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिल जाती है।

महाकाल की पौराणिक कथा

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति से जुड़ी एक अत्यंत रोचक कथा है। प्राचीन काल में उज्जैन नगरी (तब 'अवंतिका') में एक बालक शृक नामक ब्राह्मण तपस्या में लीन था। उसी समय वहां दूषण और शंभर नामक राक्षसों का आतंक बढ़ गया था, जो धर्म और वेद विरोधी थे।

 

यह भी पढ़ें: चार धाम: केदारनाथ से कल्पेश्वर मंदिर तक, ये हैं भगवान शिव के पंच केदार

 

जब राक्षसों ने मंदिरों को नष्ट करना शुरू किया और ब्राह्मणों को मारना चाहा, तब भक्त शृक ने शिव से प्रार्थना की। उनकी प्रार्थना सुन भगवान शिव स्वयं 'महाकाल' रूप में प्रकट हुए और राक्षसों का संहार किया। भक्त की रक्षा की और इस स्थान पर सदा के लिए वास करने का वरदान दिया। तभी से इस स्थान को 'महाकालेश्वर' कहा गया।

महाकाल मंदिर का इतिहास

महाकाल मंदिर का उल्लेख स्कंद पुराण, शिव पुराण और अन्य प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। इसका मूल स्वरूप 6वीं शताब्दी का माना जाता है, लेकिन समय-समय पर इस मंदिर को पुनर्निर्मित किया गया।

 

राजा भोज (11वीं शताब्दी) को भी इस मंदिर के पुनर्निर्माण का श्रेय दिया जाता है। उन्होंने मंदिर को भव्य रूप दिया और इसे कला, धर्म और विद्या का केंद्र बनाया।

मुगल काल में मंदिर पर संकट

मध्यकाल में जब मुगल आक्रमणकारियों का भारत में वर्चस्व बढ़ा, तब कई हिंदू तीर्थस्थलों को नष्ट किया गया। महाकाल मंदिर भी इससे अछूता नहीं रहा। मुगल शासक औरंगजेब ने मंदिर को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की थी। कई मंदिर पुजारियों और श्रद्धालुओं ने भगवान महाकाल की मूर्ति को गुप्त स्थानों में छिपा दिया था।

 

बाद में मराठा शासन के समय में इस मंदिर का पुनर्निर्माण हुआ। विशेष रूप से राजा रणोजी शिंदे और उनके दीवान बाजीराव पेशवा ने 18वीं सदी में इस मंदिर को फिर से बनवाया और इसके वैभव को लौटाया।

क्या वास्तव में भस्म आरती में चिता की राख लगती है?

महाकाल मंदिर की सबसे अनोखी और प्रसिद्ध परंपरा है – भस्म आरती। यह आरती रोज सुबह 4 बजे ब्रह्म मुहूर्त में की जाती है। इसमें भगवान महाकाल के शिवलिंग को भस्म (राख) से अभिषेक किया जाता है। यह प्रक्रिया बहुत ही विशेष होती है और भक्तों के लिए आध्यात्मिक ऊर्जा से भर देने वाली मानी जाती है। अब यह प्रश्न उठता है – क्या यह भस्म वास्तव में चिता की राख होती है?

 

ऐतिहासिक मान्यता यही है कि प्राचीन काल में यह चिता की भस्म होती थी। चूंकि शिव मृत्यु और चिता के देवता माने जाते हैं, इसलिए उनकी आरती में चिता की भस्म का उपयोग प्रतीकात्मक था। हालांकि वर्तमान में, कानूनी और व्यावहारिक कारणों से श्मशान की असली चिता भस्म का उपयोग नहीं किया जाता है।

 

अब यह भस्म गोबर के कंडों, तुलसी, बेलपत्र और गोधन से निर्मित पवित्र भस्म होती है। यह भस्म धार्मिक रीति से तैयार की जाती है और शुद्धता बनाए रखी जाती है। भले ही यह आज असली चिता भस्म न हो, पर उसकी प्रतीकात्मकता और शक्ति अब भी बनी हुई है। यह आरती पुरुष श्रद्धालुओं के लिए खुली होती है लेकिन केवल पारंपरिक वस्त्रों में (धोती और शरीर खुला) ही प्रवेश की अनुमति होती है। भक्त रात्रि से ही मंदिर में लाइन लगाते हैं।

 

यह भी पढ़ें: ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग: ‘ॐ’ आकार के द्वीप पर है महादेव का दिव्य मंदिर

भगवान महाकाल का नगर भ्रमण (श्रावण और भाद्रपद में)

सावन और भाद्रपद के सोमवारों में भगवान महाकाल पालकी में सवार होकर नगर भ्रमण के लिए निकलते हैं। यह परंपरा ‘शाही सवारी’ कहलाती है। इसे लेकर उज्जैन शहर में विशेष उत्साह होता है।

 

भगवान महाकाल को गाजे-बाजे, ढोल-नगाड़ों के साथ रजत पालकी में बैठाकर शहर के विभिन्न प्रमुख मार्गों से ले जाया जाता है। इस भ्रमण के दौरान लाखों भक्त दर्शन के लिए उमड़ते हैं। जगह-जगह पुष्प वर्षा होती है और जय-जयकार गूंजती है।

 

यह परंपरा बताती है कि शिवजी केवल मंदिर के भीतर नहीं, पूरे नगर के रक्षक और स्वामी हैं। भक्तों का मानना है कि इस दिन भगवान स्वयं अपने नगर के लोगों का हाल जानने निकलते हैं। महाकाल मंदिर की महिमा केवल उज्जैन तक सीमित नहीं है, बल्कि देश-विदेश से श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए आते हैं। यह स्थान मोक्ष का द्वार माना गया है। ऐसा विश्वास है कि जो यहां मृत्यु के समय भगवान शिव नाम का स्मरण करता है, उसे पुनर्जन्म नहीं होता।

शेयर करें

संबंधित खबरें

Reporter

और पढ़ें

हमारे बारे में

श्रेणियाँ

Copyright ©️ TIF MULTIMEDIA PRIVATE LIMITED | All Rights Reserved | Developed By TIF Technologies

CONTACT US | PRIVACY POLICY | TERMS OF USE | Sitemap