उमा महेश्वर स्तोत्र: अर्थ और लाभ, सब सरल भाषा में जानें
धर्म-कर्म
• NEW DELHI 07 Jul 2025, (अपडेटेड 16 Jul 2025, 6:09 PM IST)
भगवान शिव और माता पार्वती के संयुक्त उपासना के लिए उमा महेश्वर स्तोत्र को बहुत ही प्रभावशाली माना जाता है। अर्थ के साथ जानिए महत्व।

भगवान शिव और माता पार्वती के लिए समर्पित है उमा महेश्वर स्तोत्र।(Photo Credit: AI Image)
‘उमा महेश्वर स्तोत्र’ आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा रचित एक अद्भुत स्तुति है, जिसमें भगवान शिव और देवी पार्वती की संयुक्त महिमा, सौंदर्य, करुणा, शक्ति और दिव्यता का सुंदर वर्णन किया गया है। यह स्तोत्र न केवल भक्ति का एक माध्यम है, बल्कि आत्मिक शांति और कल्याण की अनुभूति भी कराता है।
इस स्तोत्र में 12 मुख्य श्लोक और एक फलश्रुति है, जिसमें इस स्तोत्र के पाठ से प्राप्त होने वाले पुण्य और लाभों का वर्णन है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, श्रावण मास में भगवान शिव और माता पार्वती के इस संयुक्त स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद।
उमा महेश्वर स्तोत्र अर्थ सहित
नमः शिवाभ्यां नवयौवनाभ्यां परस्पराश्लिष्टवपुर्धराभ्याम् ।
नगेन्द्रकन्यावृषकेतनाभ्यां नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम् ॥ 1 ॥
इस स्तोत्र की शुरुआत भगवान शिव और माता पार्वती को बार-बार प्रणाम करने से होती है। वे दोनों नित्य युवा, प्रेम से आलिंगनबद्ध, एक-दूसरे में लीन और संपूर्ण सृष्टि के कल्याण में लगे हुए दिव्य रूप हैं। माता पार्वती पर्वतराज हिमवान की पुत्री हैं और भगवान शिव वृषभध्वज (बैल ध्वज वाले) हैं। यह युगल सृष्टि में संतुलन और सौंदर्य का प्रतीक है।
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नमः शिवाभ्यां सरसोत्सवाभ्यां नमस्कृताभीष्टवरप्रदाभ्याम् ।
नारायणेनार्चितपादुकाभ्यां नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम् ॥ 2 ॥
नमः शिवाभ्यां वृषवाहनाभ्यां विरिञ्चिविष्ण्विन्द्रसुपूजिताभ्याम् ।
विभूतिपाटीरविलेपनाभ्यां नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम् ॥ 3 ॥
दूसरे श्लोक में बताया गया है कि इन दोनों की पूजा केवल मानव ही नहीं, बल्कि स्वयं नारायण भी करते हैं। वे हर्ष और आनंद का उत्सव हैं, जिनकी पूजा से हर इच्छा पूर्ण होती है। तीसरे श्लोक में कहा गया है कि ब्रह्मा, विष्णु और इंद्र जैसे देवता भी इनकी भक्ति करते हैं। उनका वाहन वृषभ (बैल) है और वे अपने शरीर पर विभूति (राख) और चंदन का लेप करते हैं। इससे यह संदेश मिलता है कि यह जोड़ा भोग से परे, वैराग्य और तप का आदर्श है।
नमः शिवाभ्यां जगदीश्वराभ्यां जगत्पतिभ्यां जयविग्रहाभ्याम् ।
जम्भारिमुख्यैरभिवन्दिताभ्यां नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम् ॥ 4 ॥
नमः शिवाभ्यां परमौषधाभ्यां पञ्चाक्षरीपञ्जररञ्जिताभ्याम् ।
प्रपञ्चसृष्टिस्थितिसंहृताभ्यां नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम् ॥ 5 ॥
चौथे श्लोक में शिव-पार्वती को सृष्टि के स्वामी, विजय के प्रतीक और सभी देवताओं द्वारा पूजित बताया गया है। वे जगद्गुरु हैं – जो संपूर्ण ब्रह्मांड को नियंत्रित करते हैं। पांचवें श्लोक में कहा गया है कि वे परम औषधि के समान हैं – जिनके स्मरण से दुख, रोग और भय दूर हो जाते हैं। उनका संबंध पंचाक्षरी मंत्र ‘नमः शिवाय’ से है, जो ब्रह्मांड का सार है।
नमः शिवाभ्यामतिसुन्दराभ्यां अत्यन्तमासक्तहृदम्बुजाभ्याम् ।
अशेषलोकैकहितङ्कराभ्यां नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम् ॥ 6 ॥
छठे श्लोक में देवी पार्वती और शिव की सुंदरता और सौम्यता की स्तुति की गई है। वे सच्चे प्रेमी हैं – जिनका एक-दूसरे के प्रति अगाध प्रेम उनके भक्तों को प्रेरणा देता है। उनका मन हृदय कमल जैसा कोमल और निर्मल है। वे हमेशा अपने भक्तों और सभी लोकों के प्राणियों का भला चाहते हैं।
नमः शिवाभ्यां कलिनाशनाभ्यां कङ्कालकल्याणवपुर्धराभ्याम् ।
कैलासशैलस्थितदेवताभ्यां नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम् ॥ 7 ॥
सातवें श्लोक में उन्हें कलियुग के दोषों का नाश करने वाला बताया गया है। शिव के रूप को कहीं-कहीं खोपड़ीधारी और पार्वती को सुसज्जित रूप में दिखाया गया है। यह रूप उनका वैराग्य और सौंदर्य – दोनों को प्रकट करता है। वे कैलाश पर्वत पर निवास करते हैं, जो भक्ति और शांति का सर्वोच्च स्थान माना जाता है।
नमः शिवाभ्यामशुभापहाभ्यां अशेषलोकैकविशेषिताभ्याम् ।
अकुण्ठिताभ्यां स्मृतिसम्भृताभ्यां नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम् ॥ 8 ॥
आठवें श्लोक में कहा गया है कि वे अशुभता का नाश करते हैं, और सभी लोकों में श्रेष्ठता रखते हैं। उनकी स्मृति से मनुष्य हर स्थिति में धैर्य और शक्ति प्राप्त करता है। उनकी कृपा अनंत है और वे कभी बाधित नहीं होते।
नमः शिवाभ्यां रथवाहनाभ्यां रवीन्दुवैश्वानरलोचनाभ्याम् ।
राकाशशाङ्काभमुखाम्बुजाभ्यां नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम् ॥ 9 ॥
नौवें श्लोक में भगवान शिव की आंखों को सूर्य, चंद्रमा और अग्नि बताया गया है – जो ज्ञान, प्रकाश और ऊर्जा के प्रतीक हैं। माता पार्वती का मुख पूर्णिमा के चंद्रमा जैसा बताया गया है, जो शांति और सौंदर्य की प्रतीक हैं। उनका स्वरूप भक्त के मन को सुकून देता है।
नमः शिवाभ्यां जटिलन्धराभ्यां जरामृतिभ्यां च विवर्जिताभ्याम् ।
जनार्दनाब्जोद्भवपूजिताभ्यां नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम् ॥ 10 ॥
दसवें श्लोक में बताया गया है कि यह जोड़ी मृत्यु और बुढ़ापे से परे है – यानी वे शाश्वत हैं। उनके जटाजूट और आभूषण उनके तपस्वी और दिव्य रूप का प्रतीक हैं। विष्णु और ब्रह्मा जैसे देवता भी इनकी पूजा करते हैं, जिससे इनकी सर्वोच्चता सिद्ध होती है।
नमः शिवाभ्यां विषमेक्षणाभ्यां बिल्वच्छदामल्लिकदामभृद्भ्याम् ।
शोभावतीशान्तवतीश्वराभ्यां नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम् ॥ 11 ॥
ग्यारहवें श्लोक में उनका सौंदर्य और आभूषणों का वर्णन है – जिनमें बिल्वपत्र और मल्लिका (जैस्मिन) के फूलों की माला प्रमुख है। ये दोनों भगवान शांतस्वरूप और शोभायुक्त हैं। उनका शांत रूप ही भक्तों को मानसिक संतुलन देता है।
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नमः शिवाभ्यां पशुपालकाभ्यां जगत्रयीरक्षणबद्धहृद्भ्याम् ।
समस्तदेवासुरपूजिताभ्यां नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम् ॥ 12 ॥
बारहवें और अंतिम मुख्य श्लोक में उन्हें समस्त प्राणियों के रक्षक कहा गया है। वे तीनों लोकों – भूतल, पाताल और स्वर्ग – की रक्षा करते हैं। वे केवल देवताओं के ही नहीं, अपितु असुरों द्वारा भी पूजित हैं – जो यह दिखाता है कि उनकी करुणा और न्याय सबके लिए समान है।
स्तोत्रं त्रिसन्ध्यं शिवपार्वतीभ्यां भक्त्या पठेद्द्वादशकं नरो यः ।
स सर्वसौभाग्यफलानि भुङ्क्ते शतायुरान्ते शिवलोकमेति ॥ 13 ॥
अंत में फलश्रुति में कहा गया है कि जो भी व्यक्ति इस स्तोत्र का त्रिसंध्या (सुबह, दोपहर, शाम) पाठ करता है, वह अपने जीवन में सभी प्रकार की सुख-सुविधाएं प्राप्त करता है। वह सौ वर्षों तक दीर्घायु होकर, अंत में शिवलोक को प्राप्त करता है – जो मोक्ष की प्राप्ति है।
उमा महेश्वर स्तोत्र का महत्व
इस स्तोत्र को पढ़ने से केवल सांसारिक लाभ ही नहीं मिलते, बल्कि आत्मिक उन्नति, मानसिक शांति और आध्यात्मिक जागरण भी होता है। यह स्तोत्र प्रेम, श्रद्धा, तप, करुणा और ज्ञान के प्रतीक भगवान शिव-पार्वती की कृपा के लिए समर्पित है। साथ ही मान्यता है कि इस स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति के सभी कष्ट और दुख-दूर हो जाते हैं।
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