उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है। जहां भगवान शिव, भगवान विष्णु और विभिन्न देवी-देवताओं के मंदिर स्थापित हैं। साथ ही इनसे जुड़ी विभिन्न पौराणिक कथाएं और मान्यताएं प्रचलित हैं। वेद-पुराणों में भी उत्तराखंड के विभिन्न देवस्थलों का उल्लेख किया गया है। इन्हीं में केदार खंड में स्थित सुरकंडा देवी मंदिर भी शामिल है, जिनका वर्णन स्कंद पुराण के केदार खंड में विस्तार से किया गया है। मां शक्ति को समर्पित सुरकंडा देवी मंदिर से जुड़ी कथाएं और मान्यताएं विस्तार से बताई गई हैं। आइए जानते हैं, इस मंदिर से जुड़ी मान्यता और विशेषता।
सुरकंडा शक्तिपीठ कि कथा
सुरकंडा देवी मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है। कथा के अनुसार, जब माता सती ने आत्मदाह कर लिया था, तब भगवान शिव विलाप करते हुए माता सती के शरीर को लेकर ब्रह्मांड की परिक्रमा कर रहे थे। इससे सृष्टि का संतुलन बिगड़ने लगा। तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के 51 टुकड़े कर दिए थे। बता दें कि माता सती का सिर केदार क्षेत्र में गिरा, जहां आज सुरकंडा देवी मंदिर स्थित है। इस मंदिर का वर्णन स्कंद पुराण में विस्तार से किया गया है।
इस मंदिर से जुड़ी एक अन्य कथा के अनुसार, जब दैत्यों ने स्वर्गलोक को अपने अधीन कर लिया था। तब देवराज इन्द्र ने अन्य देवताओं के साथ इस मंदिर में उपासना कि थी। माता की उपासना के बाद देवताओं ने स्वर्गलोक वापस प्राप्त कर लिया था। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जो भी इस मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं, उन्हें सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। साथ ही उनके सभी पाप और कष्ट दूर हो जाते हैं।
सुरकंडा देवी मंदिर से जुड़ी अन्य जानकारी
मां दुर्गा का यह प्रसिद्ध मंदिर उत्तराखंड के टिहरी जिले में स्थित है, और इस मंदिर की गणना 51 शक्तिपीठों में की जाती है। माता का यह भव्य मंदिर सुरकुट पर्वत पर समुद्रतल से 3030 मीटर ऊंचाई पर स्थापित है। साथ ही यह मंदिर इतनी ऊंचाई पर है कि इस स्थान से केदारनाथ धाम, भगवान बद्रीनाथ, तुंगनाथ, गौरीशंकर, नीलकंठ और चौखंबा के पर्वत दिखाई देते हैं।
माता के इस मंदिर में विशेष प्रकार का प्रसाद तैयार किया जाता है, जो रौंसली कि पत्तियों से बनता है। मान्यता है कि इस प्रसाद को ग्रहण करने से शरीर निरोगी रहता है और व्यक्ति की सभी मनोकामना पूर्ण होती होती है।