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कल्प केदार मंदिर: उत्तरकाशी की तबाही में दूसरी बार लुप्त हुआ यह मंदिर

उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में स्थित कल्प केदार मंदिर एक बार फिर तबाही आने के बाद मलबे में दब गया है। आइए जानते हैं इस मंदिर की पौराणिक कथा और महत्व।

Kalp Kedar Mandir

कल्प केदार मंदिर: Photo Credit: The Great Himalayan Journey/ X handle

उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में स्थित प्राचीन शिव मंदिर कल्प केदार एक बहुत ही पवित्र और रहस्यमय धार्मिक स्थल है। यह मंदिर केवल श्रद्धालुओं की आस्था के केंद्र से नहीं, बल्कि अपनी पौराणिक मान्यताओं और प्राकृतिक सुंदरता के लिए भी प्रसिद्ध है। कल्प केदार मंदिर खीर गंगा नदी के किनारे पर स्थित है। मंगलवार को बादल फटने की वजह से यह मंदिर मलबे में दब गया है। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। इससे पहले भी एक बार इसी तरह की विनाशकारी बाढ़ आई थी, जिसकी वजह से यह मंदिर कई वर्षों तक जमीन के नीचे दबा हुआ था। उस समय मंदिर का केवल ऊपरी हिस्सा दिख रहा था।

 

कल्प केदार मंदिर ऊंचे पहाड़ों और हरियाली से घिरे क्षेत्र में स्थित है, जो लोगों को अध्यात्म और प्रकृति दोनों का अनुभव कराता है। उत्तरकाशी के धराली नामक गांव में स्थित यह मंदिर अपनी वास्तुकला से श्रद्धालुओं का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करता है। कतुरे शैली में बने इस शिव मंदिर की वास्तुकला केदारनाथ धाम की तरह है। यहां भगवान शिव का किसी भी प्रकार का शिवलिंग स्थापित नहीं किया गया है, बल्कि मंदिर के अंदर स्थित प्राकृतिक चट्टान की पूजा भगवान शिव के रूप में की जाती है।  

 

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पौराणिक मान्यताएं

प्रलय में भी सुरक्षित स्थान:

जब सृष्टि का अंत (प्रलय) होता है, तो संपूर्ण पृथ्वी पर जल और अग्नि का विनाशकारी प्रभाव फैलता है। उस समय भी केवल एक स्थान ऐसा होता है जो सुरक्षित और पवित्र बना रहता है, मान्यता है कि कल्प केदार को उसी स्थान के रूप में जाना जाता है। मान्यता के अनुसार, यह स्थान कभी नष्ट नहीं हो सकता, इसीलिए इसे 'प्रलय में भी स्थायी तीर्थ' माना गया है।

 

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सप्तऋषियों की तपस्थली:

एक कथा के अनुसार, सप्तऋषियों ने इसी पावन स्थान पर भगवान शिव की कठोर तपस्या की थी। उनकी भक्ति और साधना से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और वरदान दिया कि यह स्थान आने वाले सभी युगों में मोक्षदायी रहेगा।

 

अखण्ड शिवधाम:

कल्पकेदार को शिव का अखण्ड धाम कहा जाता है। माना जाता है कि यहां की चट्टानों में शिवशक्ति का वास है और यहां स्वयं भगवान शिव एक विशेष रूप में विराजमान हैं। यहां कोई मूर्ति नहीं है, बल्कि प्राकृतिक शिला (पत्थर) को ही शिवस्वरूप में पूजा जाता है।

 

कलियुग के अंत में अंतिम आश्रय:

कलियुग के अंत में जब धार्मिकता समाप्त हो जाएगी, तो केवल यह स्थान ऐसा होगा जहां सत्संग, ध्यान, तप और साधना संभव होगी। मान्यता के अनुसार, जो भी व्यक्ति इस तीर्थ की यात्रा करता है, उसे मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है।

 

मंदिर से जुड़ी धार्मिक मान्यता

कल्प केदार मंदिर को पंचकेदारों से अलग माना गया है लेकिन इसका महत्व किसी से कम नहीं है। यह मंदिर किसी बड़ी भव्य रचना के बजाय एक प्राकृतिक गुफा और चट्टानों से बना है। यहां आने वाले श्रद्धालु मानते हैं कि जो व्यक्ति इस स्थल पर आकर भगवान शिव का स्मरण करता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।

 

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मान्यता के अनुसार, वर्ष 1945 में की गई एक खुदाई के बाद इस मंदिर के बारे में पता चला था। जमीन के नीचे कई फुट तक खुदाई करने पर प्राचीन कल्प केदार शिव मंदिर मिला था, जिसकी संरचना केदारनाथ मंदिर की तरह है। मंदिर जमीन से नीचे स्थित है और भक्तों को मंदिर में प्रार्थना करने के लिए नीचे जाना पड़ता है। स्थानीय लोगों के अनुसार, मंदिर के गर्भगृह में स्थापित शिवलिंग पर अक्सर खीरगंगा नदी का पानी आता है और इसके लिए एक रास्ता भी बनाया गया है। मंदिर के बाहर पत्थर पर नक्काशी की गई है। प्राचीन शिव मंदिर में स्थापित शिवलिंग का आकार केदारनाथ मंदिर के शिवलिंग जैसे नंदी की पीठ की तरह है।

यहां पहुंचने का रास्ता

  • नजदीकी शहर: उत्तरकाशी शहर के धाराली गांव के इस मंदिर तक पहुंचने के लिए पहले आपको गंगोत्री मार्ग पर जाना होगा।
  • गंगोत्री धाम से लगभग 15-20 किलोमीटर दूर एक गांव है, जहां से कल्प केदार की पैदल यात्रा शुरू होती है।
  • यहां तक पहुंचने के लिए रुद्रप्रयाग – उत्तरकाशी – हर्षिल – गंगोत्री मार्ग का प्रयोग किया जाता है।
  • पैदल मार्ग में कई जगहों पर ढाबे और विश्राम स्थलों की व्यवस्था है।
  • नजदीकी रेलवे स्टेशन: देहरादून या ऋषिकेश है, जहां से उत्तरकाशी के लिए बस या टैक्सी मिलती है।

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