हिंदू धर्म में देवी लक्ष्मी को धन, ऐश्वर्य, समृद्धि और सुख-शांति की देवी माना जाता है। हर साल श्रावण मास के शुक्ल पक्ष में 'वरलक्ष्मी व्रत' रखा जाता है। इस दिन महिलाएं अपने परिवार की सुख-समृद्धि, स्वास्थ्य और संतान की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं और देवी लक्ष्मी की विशेष पूजा करती हैं। यह पर्व विशेष रूप से दक्षिण भारत में तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक और महाराष्ट्र में बहुत श्रद्धा और विश्वास से मनाया जाता है। अब यह पर्व देश के अन्य हिस्सों में भी लोकप्रिय हो चुका है।
वरलक्ष्मी पूजा का दिन धन और समृद्धि की देवी की पूजा करने के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण दिनों में से एक है। भगवान विष्णु की पत्नी वरलक्ष्मी, देवी महालक्ष्मी के रूपों में से एक हैं। देवी वरलक्ष्मी की उत्पत्ति क्षीर सागर में हुई थी। देवी वरलक्ष्मी के रंग रूप का वर्णन दूधिया सागर के समान किया गया है और वह उसी रंग के वस्त्र धारण करती हैं।
वरलक्ष्मी व्रत 2025 तिथि
वैदिक पंचांग के अनुसार, श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि 8 अगस्त, 2025 को सूर्योदय के साथ इस व्रत की शुरुआत होगी और इस तिथि का समापन 9 अगस्त 2025 को सूर्योदय के साथ होगा।
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देवी वरलक्ष्मी की पूजा के अलग- अलग मुहूर्त कुछ इस प्रकार हैं।
- सिंह लग्न पूजा मुहूर्त (प्रातः) - 06:29 ए एम से 08:46 ए एम
अवधि - 02 घण्टे 17 मिनट
- वृश्चिक लग्न पूजा मुहूर्त (अपराह्न) - 01:22 पी एम से 03:41 पी एम
अवधि - 02 घण्टे 19 मिनट
- कुम्भ लग्न पूजा मुहूर्त (सन्ध्या) - 07:27 पी एम से 08:54 पी एम
अवधि - 01 घण्टा 27 मिनट
- वृषभ लग्न पूजा मुहूर्त (मध्यरात्रि) - 11:55 पी एम से 01:50 ए एम
अवधि - 01 घण्टा 56 मिनट
ज्योतिष के अनुसार, देवी लक्ष्मी की पूजा करने का सर्वोत्तम समय स्थिर लग्न को माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार, स्थिर लग्न के समय लक्ष्मी पूजा करने से दीर्घकालीन समृद्धि की प्राप्ति होती है।
वैदिक पंचांग में एक दिन में स्थिर लग्न के चार पूजा मुहूर्त दिए गए हैं। वरलक्ष्मी पूजा के लिये कोई भी समय चुना जा सकता है। मान्यताओ के अनुसार, देवी लक्ष्मी के पूजन के लिए प्रदोष युक्त सायाह्नकाल (संध्या) का समय सबसे अच्छा माना जाता है।
वर लक्ष्मी व्रत की पौराणिक मान्यता
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भगवान शिव ने माता पार्वती को इस व्रत के महत्व के बारे में बताया था। कथा में उल्लेख है कि राजा भद्रश्रव की राजधानी में एक बहुत ही धार्मिक स्त्री चारुमती रहती थी। वह हमेशा देवी लक्ष्मी की आराधना किया करती थी। एक दिन उसने सपने में देवी लक्ष्मी को देखा उन्होंने उसे वर लक्ष्मी व्रत करने की सलाह दी। चारुमती ने विधिपूर्वक व्रत किया और देखते ही देखते उसके घर में धन-धान्य और सुख-शांति की वर्षा होने लगी। उसके बाद नगर की सभी महिलाओं ने भी इस व्रत को अपनाया और उनके जीवन में भी समृद्धि आई। तभी से इस व्रत की प्रचलन लोगों में आ गया। इस व्रत के दिन देवी लक्ष्मी की विशेष पूजा अर्चना की जाती है।
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वर लक्ष्मी व्रत का महत्व
इस व्रत को रखने से ऐसा माना जाता है कि देवी लक्ष्मी स्वयं अपने भक्तों के घर पधारती हैं और उन्हें धन, समृद्धि और सुख-शांति का आशीर्वाद देती हैं। 'वर लक्ष्मी' का अर्थ है 'वह लक्ष्मी जो वरदान देने वाली हैं।' यह व्रत विशेष रूप से विवाहित महिलाएं करती हैं जिससे उनके पति और संतान स्वस्थ, दीर्घायु और समृद्ध रहें। कुंवारी कन्याएं भी अच्छा जीवनसाथी प्राप्त करने की कामना से यह व्रत रखती हैं।