कच्चतीवू महोत्सव एक खास धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सव है, जो श्रीलंका के कच्चतीवू द्वीप पर मनाया जाता है। यह द्वीप तमिलनाडु के रामेश्वरम तट से करीब 33 किलोमीटर दूर स्थित है। यह त्योहार मुख्य रूप से सेंट एंथनी चर्च में आयोजित किया जाता है, जो मछुआरों के संरक्षक संत माने जाते हैं। इस महोत्सव में भारत और श्रीलंका दोनों देशों के मछुआरे और श्रद्धालु बड़ी संख्या में भाग लेते हैं।
महोत्सव का महत्व
कच्चतीवू द्वीप का यह सालाना उत्सव धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक मेलजोल का प्रतीक है। सेंट एंथनी चर्च ईसाई समुदाय के लिए अत्यंत पवित्र माना जाता है और इस महोत्सव के दौरान विशेष प्रार्थना सभाएं आयोजित की जाती हैं। भारतीय और श्रीलंकाई मछुआरे यहां आकर अपनी श्रद्धा प्रकट करते हैं और सेंट एंथनी से प्रार्थना करते हैं।
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त्योहार का आयोजन
यह महोत्सव हर साल मार्च या अप्रैल के महीने में आयोजित किया जाता है। इस दौरान श्रीलंकाई नौसेना भारतीय श्रद्धालुओं के लिए विशेष अनुमति प्रदान करती है ताकि वे बिना किसी वीजा के इस धार्मिक आयोजन में शामिल हो सकें। भारतीय मछुआरे नौकाओं के जरिए कच्चतीवू द्वीप पहुंचते हैं और इस उत्सव में भाग लेते हैं। इस साल होने जा रहे कच्चतीवू महोत्सव में 3,400 श्रद्धालु हिस्सा लेंगे। इसके लिए भारतीय तटरक्षक बल ने तैयारी पूरी कर ली है।
धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम
महोत्सव के दौरान चर्च में विशेष प्रार्थनाएं होती हैं, जिसमें हजारों श्रद्धालु भाग लेते हैं। इसके अलावा, सामुदायिक भोज, पारंपरिक नृत्य, और सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं। यह उत्सव भारत और श्रीलंका के मछुआरों के बीच दोस्ती और भाईचारे को मजबूत करने का काम करता है।
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भारत और श्रीलंका के संबंधों पर प्रभाव
हालांकि कच्चतीवू द्वीप पर ऐतिहासिक रूप से भारतीय मछुआरों का भी अधिकार था लेकिन 1974 में यह श्रीलंका को सौंप दिया गया। इसके बावजूद, इस महोत्सव के दौरान भारतीय मछुआरों को विशेष रूप से द्वीप पर जाने की अनुमति दी जाती है। यह उत्सव दोनों देशों के धार्मिक और सांस्कृतिक संबंधों को बनाए रखने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।