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जगन्नाथ मंदिर: श्रीक्षेत्र से धाम तक, पेटेंट पर हंगामा क्यों बरपा है?

ऐसी धार्मिक मान्यता है कि पुरी के राजा इंद्रद्युम्न ने भगवान जगन्नाथ धाम का निर्माण कराया था। एक 'जगन्नाथ धाम' मंदिर ममता बनर्जी ने दीघा में भी बनवाया है। दो मंदिरों की वजह से दो राज्यों में तकरार हो सकती है, क्या है पूरा मामला आइए समझते हैं।

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पश्चिम बंगाल का जगन्नाथ मंदिर। (Photo Credit: jagannathtempledigha/x)

पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के महत्वाकांक्षी पहल 'जगन्नाथ धाम मंदिर' के नाम पर एक बार फिर हंगामा बरपा है। श्री जगन्नाथ टेंपल एडमिनिस्ट्रेशन (SJTA) अब पश्चिम बंगाल के दीघा में बने जगन्नाथ मंदिर के नाम को कानूनी तौर पर चुनौती देगी। 12वीं सदी में बने इस मंदिर के नाम और इससे जुड़ी धार्मिक गतिविधियों के नामों को मंदिर प्रशासन 'पेटेंट' कराने की तैयारी में है। पुरी के श्री जगन्नाथ टेंपल एडमिनिस्ट्रेशन (SJTA) ने तय किया है कि मंदिर की परंपराओं, प्रथाओं और प्रतीकों को पेटेंट कराया जाएगा, जिससे श्री जगन्नाथ मंदिर की मौलिकता पर असर न आए।

 

मंदिर के मुख्य प्रशासक अरविंद पाढ़ी ने कहा, 'हमने यह संकल्प लिया है कि जगन्नाथ मंदिर, पुरी से जुड़े सभी शब्द और परंपराओं जैसे श्री मंदिर, जगन्नाथ धाम, महाप्रसाद, श्रीक्षेत्र, पुरुषोत्तम धाम और मंदिर के लोगो को हम पेटेंट कराएंगे।' 

मंदिर बोर्ड अब यह भी चाहता है कि जगन्नाथ मंदिर की राह में पड़ने वाले मंदिरों और इमारतों को नए सिरे से डिजाइन किया। उन्हंने कहा है कि वह राज्य के शहरी आवास विभाग के साथ संपर्क करेंगे, जिससे मंदिर का धार्मिक और ओडिशा का पारंपरिक महत्व जिंदा रहे। मुख्य प्रशासक अरबिंद पाढ़ी का कहना है कि ओडिशा के आसपास 'कुकरमुत्ते' की तरह संरचनाएं बन गई हैं। बोर्ड की बैठक में यह भी तय किया गया है कि नए नियमों की जद में श्री गुंडीचा मंदिर भी आएगा, जिसे भगवान जगन्नाथ की मौसी का घर भी माना जाता है। बैठक में यह तय हुआ है कि इस इलाके में आने वाली कोई भी इमारत, एक तय सीमा से ऊंची नहीं की जा सकती है। 

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पेंटेट की जरूरत क्यों पड़ी?
मंदिर प्रशसान का कहना है कि मंदिर के धार्मिक महत्व का लोग दुरुपयोग न करने पाएं, इसलिए यह फैसला करना जरूरी है। मंदिर की समृद्ध ऐतिहासिक विरासत रही है, श्री जगन्नाथ मंदिर अपने आप में अनोखा है, यह हिंदू धर्म के 4 धामों में से एकधाम है।

पश्चिम बंगाल का जगन्नाथ मंदिर दीघा में बना है। (Photo Credit: jagannathtempledigha/x)

ओडिशा में क्यों दीघा मंदिर का विरोध हो रहा है?
ओडिशा के लोगों का कहना है कि पश्चिम बंगाल में भगवान जगन्नाथ के मंदिर से धाम शब्द हटा देना चाहिए। वहां ओडिशा के जगन्नाथ धाम की तरह परंपराएं पूरी की जा रही हैं। मूल धम ओडिशा में है तो पश्चिम बंगाल के दीघा मंदिर से 'धाम' शब्द हटा लेना चाहिए। 

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तर्क क्या हैं?

धाम शब्द का इस्तेमाल पुरी के संदर्भ में होता है। इसका ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व है, जबकि पश्चिम बंगाल का मंदिर नया है। चारधाम आने वाले श्रद्धालुओं के लिए यह पड़ाव अनिवार्य है। ओडिशा के मुख्यमंत्री मोहन माझी ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तक को चिट्ठी लिखी थी। उन्होंने दीघा के मंदिर से धाम शब्द हटाने की अपील की थी। पुरी के राजा गजपति महाराजा दिव्यसिंह देब ने इस्कॉन से भी इस पर हस्तक्षेप करने की मांग की है। अब पेटेंट कराने की मांग उठी है। 

पश्चिम बंगाल का जगन्नाथ मंदिर दीघा में बना है। (Photo Credit: jagannathtempledigha/x)

आपत्ति किस बात पर है?
दीघा मंदिर के नाम पर श्री जगन्नाथ टेंपल एडमिनिस्ट्रेशन को आपत्ति है। यह मंदिर 250 करोड़ रुपये की लागत से 24 एकड़ के प्लाट में तैयार किया गया है। यह पश्चिम बंगाल के पूर्वी मेदिनीपुर जिले में है। पुरी से इस मंदिर की दूरी करीब 350 किलोमीटर है। पुरी के मंदिर की तरह पश्चिम बंगाल का यह मंदिर भी भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा को समर्पित है। यह मंदिर 213 फीट ऊंचा है और पुरी के मंदिर से मिलता जुलता है।  इसे बलुई पत्थर से तैयार किया गया है। साल 2019 में इस प्रोजेक्ट का ऐलान हुआ था, 2022 से यह मंदिर बनना शुरू हुआ। पश्चिम बंगाल हाउसिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलेपेमेंट की देखरेख में यह मंदिर बना है।

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पुरी का जगन्नाथ मंदिर। (Photo Credit: PTI)

झगड़ा किस बात का है?
पुरी मंदिर के पुजारी संगठन 'सुर महासुर निजोग' ने मंदिर की स्थापना के वक्त ही आपत्ति जताई थी। पुजारियों का कहना था कि इस मंदिर का लोग बहिष्कार करें, जब देश में एक जगन्नाथ धाम है फिर दूसरे धाम की जरूरत क्यों है। इस धाम की महिमा कम हो सकती है। भगवान जगन्नाथ का मंदिर सदियों पुराना है, वहीं पश्चिम बंगाल का मंदिर नया है। सिर्फ 300 किलोमीटर की दूरी पर इस तरह के दो मंदिरों का औचित्य क्या है। मंदिर प्रशासन का कहना है कि लोग नकली जगन्नाथ मंदिर को असली जगन्नाथ मंदिर समझ लेंगे और यहां का ऐतिहासिक महत्व कम हो जाएगा। 


अगर ट्रेड, GI टैग या पेटेंट मिल जाए तो क्या होगा?
सुप्रीम कोर्ट में वकील शुभम गुप्ता ने कहा, 'अगर पुरी जगन्नाथ धाम मंदिर अदालत का रुख करे, प्रतीकों का रजिस्ट्रेशन कराए तो हो सकता है कि इसके व्यापारिक इस्तेमाल पर रोक लगाई जा सके। अब यह देखने वाली बात है कि जगन्नाथ मंदिर धाम बोर्ड की ओर से किस एक्ट के तहत रजिस्ट्रेशन की मांग की जा सकती है। टेक्निकली पेटेंट नई खोज, दवाइयों या वस्तुओं के लिए हासिल किया जाता है। धार्मिक चीजें सदियों से चली आई हैं इसलिए इन पर कॉपी राइट हासिल करना भी मुश्किल काम है। GI टैग भी कृषि उत्पादन और बनाई गई चीजों से जुड़ा है। ऐसे में पेटेंट अभी इस दायरे में फिट नहीं बैठ रहा है।' अगर पेटेंट, GI टैग या कॉपी राइट मिल जाए तो इसके पश्चिम बंगाल में दीघा मंदिर में अनुकरण पर रोक लगाई जा सकती है। 

एडवोकेड शुभम गुप्ता ने कहा, 'वैसे यह मामला धार्मिक स्वतंत्रता के अंतर्गत आता है। किसी मंदिर या संस्था को किसी खास तरीके से पूजा करने, प्रसाद बांटने, प्रथा के पालन करने से नहीं रोका जा सकता है। संविधान का अनुच्छेद 25 से 28 तक इसी से संबंधित है। अनुच्छेद 25 ही धर्म को मानने, आचरण करने और प्रचार करने की स्वतंत्रता देता है। जगन्नाथ भगवान के भक्त पूरे भारत में हैं, वे कभी भी प्रार्थना-पूजा कर सकते हैं।'

पुरी का जगन्नाथ मंदिर। (Photo Credit: PTI)

भारत में इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट से जुड़े कानून कौन-कौन से हैं?
 

  • द ट्रेड मार्क्स एक्ट, 1999
  • द पेटेंट्स एक्ट, 1970
  • द कॉपीराइट एक्ट, 1957  
  • द डिजाइन एक्ट, 2000
  • द जियोग्राफिकल इंडिकेशन्स ऑफ गुड्स एक्ट, 1999  
  • द प्रोटेक्शन ऑफ प्लांट वैरायटीज एंड फार्मर्स राइट्स एक्ट, 2001  
  • द सेमीकंडक्टर इंटीग्रेटेड सर्किट्स लेआउट-डिजाइन एक्ट, 2000

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