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सावन शिव का, फिर भाद्रपद से चैत्र के देवता कौन? कहानी जानिए

हिंदू धर्म में साल के बारह महीने अलग-अलग देवताओं से जुड़े हुए माने जाते हैं, इनसे जुड़ी कथाएं भी प्रचलित हैं।

Lord Shiv, Brahama, Vishnu and maa durga representational picture

भगवान शिव, विष्णु जी, ब्रह्म जी और मां दुर्गा की प्रतीकात्मक तस्वीर

हिंदू धर्म में साल के बारह महीने अलग-अलग देवताओं से जुड़े हुए माने जाते हैं। हर महीने के एक विशेष देवता होते हैं, जिनकी पूजा करने से उस समय विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है। इन महीनों से जुड़ी पौराणिक कथाएं भी हैं, जो बताती हैं कि क्यों उस देवता का महत्व उस समय अधिक होता है। यह परंपरा सिर्फ पूजा का नियम नहीं, बल्कि समय और ऋतु के साथ देवताओं के स्मरण का एक सुंदर तरीका भी है।

 

चैत्र माह यानी मार्च से अप्रैल तक के महीने को भगवान राम के विशेष माह के रूप में माना जाता है। पुराणों के अनुसार, इसी महीने में सूर्यदेव, भगवान राम और हनुमानजी की भी पूजा होती है। इसी प्रकार साल का हर महीना किसी-न-किसी भगवान से जुड़ा हुआ हैं और उससे जुड़ी उनकी कथाएं भी प्रचलित है। 

 

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चैत्र माह  →(मार्च से अप्रैल) – भगवान विष्णु (राम अवतार), सूर्यदेव, हनुमानजी

चैत्र महीने को साल की धार्मिक शुरुआत माना जाता है, क्योंकि इसी महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी को भगवान श्रीराम का जन्म हुआ था। त्रेता युग में अयोध्या के राजा दशरथ और रानी कौशल्या के घर श्रीराम ने जन्म लिया था। पुराणों की मान्यता के अनुसार, उन्होंने रावण का वध कर धर्म की स्थापना की थी। इस महीने श्रीराम और भगवान विष्णु की पूजा से घर में सुख-शांति आती है और परिवार में एकता बनी रहती है।

वैशाख माह →(अप्रैल -मई)- माधव रूप में विष्णु, मां गंगा, चित्रगुप्त 

वैशाख में गंगा दशहरा आता है। कथा है कि राजा भगीरथ ने अपने पूर्वजों को मोक्ष दिलाने के लिए कठोर तप किया था। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर गंगा स्वर्ग से पृथ्वी पर उतरीं थीं। भगवान शिव ने अपनी जटाओं में गंगा को धारण कर उनका वेग धीमा किया था। मान्यता है कि इस महीने गंगा स्नान और दान-पुण्य करने से सभी पाप नष्ट होते हैं और जीवन में पवित्रता आती है।

ज्येष्ठ मास → मई से जून-सूर्यदेव, शनिदेव, देवी गायत्री

ज्येष्ठ माह में धूप और गर्मी अपने चरम पर होती है, इसलिए सूर्यदेव की पूजा का विशेष महत्व है। महाभारत की कथा के अनुसार, सूर्यदेव ने ज्येष्ठ महीने में कर्ण को अपना पुत्र स्वीकार किया और उसे दिव्य कवच-कुंडल प्रदान किए थे। इस महीने ठंडा पानी पिलाने, छाया देने और दान करने से सूर्यदेव प्रसन्न होते हैं और स्वास्थ्य अच्छा रहता है।

आषाढ़ मास → (जून से जुलाई)-भगवान जगन्नाथ (कृष्ण का रूप)

पुरी की जगन्नाथ रथयात्रा इसी महीने होती है। मान्यता है कि भगवान कृष्ण, बलराम और सुभद्रा आषाढ़ में अपनी मौसी के घर जाते हैं और इस यात्रा को ही रथयात्रा कहा जाता है। मान्यताओं के अनुसार, इस महीने भगवान जगन्नाथ के दर्शन और सेवा करने से सभी कष्ट दूर होते हैं और जीवन में नई ऊर्जा आती है।

 

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श्रावण मास → जुलाई से अगस्त-भगवान शिव

श्रावण मास भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है। समुद्र मंथन में जब हलाहल विष निकला, तब देवता और असुर दोनों घबरा गए। भगवान शिव ने संसार को बचाने के लिए विष पी लिया और उनकी कंठ नीली हो गई, तभी से वे नीलकंठ कहलाए। मान्यता है कि इस महीने शिवलिंग पर जल, दूध और बेलपत्र अर्पित करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

भाद्रपद (भादो) मास → अगस्त से सितंबर-श्रीगणेश

भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी मनाई जाती है। कथा है कि माता पार्वती ने मिट्टी से गणेश को बनाया और उन्हें द्वार पर पहरा देने को कहा था। भगवान शिव घर लौटे और उन्हें भीतर जाने से रोकने पर भगवान शिव ने उनका सिर काट दिया था। बाद में पार्वती के अनुरोध पर हाथी का सिर लगाकर उन्हें पुनर्जीवित किया गया। मान्यताओं के अनुसार, इस महीने गणेश जी की पूजा से बाधाएं दूर होती हैं।

आश्विन मास → सितंबर से अक्टूबर-मां दुर्गा

आश्विन में नवरात्र का पर्व आता है। पुराणों की मान्यता के अनुसार, देवी दुर्गा ने इसी महीने महिषासुर नामक राक्षस का वध किया। नवरात्र के नौ दिनों में देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है। इस समय व्रत, भजन और गरबा-डांडिया जैसे आयोजन होते हैं, जो शक्ति और भक्ति का प्रतीक हैं।

कार्तिक मास → अक्टूबर से नवंबर-भगवान विष्णु (तुलसी विवाह)

कार्तिक माह में तुलसी और शालिग्राम का विवाह होता है। मान्यता है कि लक्ष्मीजी ने तुलसी के रूप में जन्म लिया और भगवान विष्णु के साथ उनका विवाह हुआ। इस महीने दीपदान और तुलसी पूजन करने से घर में लक्ष्मी का वास होता है और दरिद्रता दूर होती है।

मार्गशीर्ष (अग्रायण) मास → नवंबर से दिसंबर – भगवान कृष्ण

श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान कृष्ण कहते हैं – “मासानां मार्गशीर्षोऽहम्” अर्थात महीनों में मैं मार्गशीर्ष हूँ। इस महीने में गीता जयंती भी मनाई जाती है, जब कुरुक्षेत्र में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। गीता पाठ करने से जीवन में सही मार्ग मिलता है।

पौष मास → दिसंबर से जनवरी-सूर्यदेव, भगवान विष्णु 

पौष संक्रांति के समय सूर्य उत्तरायण की ओर बढ़ते हैं। महाभारत की कथा के अनुसार, भीष्म पितामह ने अपना शरीर सूर्य के उत्तरायण होने तक छोड़ा था। इस महीने सूर्य पूजा, अन्नदान और तिल के सेवन से स्वास्थ्य और दीर्घायु प्राप्त होती है।

 

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माघ मास → जनवरी से फरवरी – भगवान विष्णु (गंगा स्नान), सूर्यदेव, श्री हरि विष्णु

माघ में प्रयागराज का माघ मेला प्रसिद्ध है। कथा है कि देवताओं ने इसी महीने में पवित्र संगम में स्नान कर अपने पापों से मुक्ति पाई थी। इस महीने गंगा, यमुना और सरस्वती में स्नान और भगवान विष्णु की पूजा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।

फाल्गुन मास → फरवरी से मार्च – भगवान कृष्ण, भगवान नृसिंह

फाल्गुन में होली का पर्व आता है। वृंदावन की कथा के अनुसार, भगवान कृष्ण ने राधा और गोपियों के साथ रंग खेला और प्रेम का संदेश दिया था। इस महीने आनंद, उत्सव और मेल-जोल का समय होता है और श्रीकृष्ण की भक्ति से जीवन में प्रेम और उल्लास भरता है।

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