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बरसात के देवता इंद्र क्यों कहे जाते हैं? जानें इससे जुड़ी कथा

हिंदू धर्म में इंद्र देव को विशेष स्थान दिया जाता है। वेद और पुराणों में इस बात का जिक्र है कि भगवान इंद्र बारिश के देवता हैं।

Bhagwan indra Representational Picture

भगवान इंद्र की प्रतीकात्मक तस्वीर: Photo Credit: AI

भारत की धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं में भगवान इंद्र को विशेष स्थान दिया गया है। इंद्र को न सिर्फ देवताओं का राजा कहा गया है, बल्कि उन्हें 'बरसात का देवता' भी कहा जाता है। यह मान्यता केवल लोकविश्वास तक सीमित नहीं है, बल्कि इससे जुड़ी पौराणिक मान्यताएं भी बहुत प्रसिद्ध हैं। भगवान इंद्र को वैदिक काल से ही वज्र और वृष्टि का देवता माना गया है। पुराणों के अनुसार, इंद्र देव का सबसे बड़ा शस्त्र वज्र है और उन्हें मेघों का स्वामी कहा जाता हैं। कहा जाता है कि भगवान इंद्र के जरिए बारिश होती है और पृथ्वी पर अन्न, जल और जीवन की व्यवस्था बनी रहती है। 

 

वेदों में भी इसका वर्णन किया गया है। ऋग्वेद के कई सूक्तों में बताया गया है कि इंद्र वज्र (बिजली का अस्त्र) से दैत्य वृत्र का वध करते हैं और बंद किए गए जल को मुक्त करके धरती पर वर्षा कराते हैं। यही वजह है कि इंद्र को 'मेघों के स्वामी' और 'वर्षा दाता' कहा गया है।

 

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वृत्रासुर के वध से जुड़ी कथा 

पौराणिक कथा के अनुसार,  कहा जाता है कि दैत्य वृत्रासुर ने तपस्या करके वरदान प्राप्त किया था कि उसे कोई भी देवता मार न सके। वरदान मिलने के बाद उसने पूरी पृथ्वी पर अत्याचार करना शुरू कर दिया। सबसे बड़ी बात यह थी कि उसने मेघों और जल को कैद कर लिया था, जिससे पृथ्वी पर सूखा पड़ गया और सभी जीव-जन्तु परेशान हो गए थे।

कथा के अनुसार, देवता जब परेशान हुए, तो वे भगवान विष्णु के पास गए। भगवान विष्णु ने कहा कि वृत्रासुर का वध केवल ऋषि दधीचि की हड्डियों से बने वज्र से हो सकता है। ऐसे में ऋषि दधीचि ने अपनी देह त्याग दी और उनकी अस्थियों से वज्र बनाया गया।

 

प्रचलित कथा के अनुसार, भगवान इंद्र ने उसी वज्र से वृत्रासुर का वध किया और जब उसका शरीर गिरा तो वर्षा के मार्ग खुल गए। बंद किए गए मेघ मुक्त हुए और पृथ्वी पर बारिश होने लगी। कहा जाता है कि इसी वजह से भगवान इंद्र को वृष्टि करने वाले देवता के साथ-साथ पानी और मेघों का अधिपति माना गया है।

अन्य कथा : गोवर्धन लीला

भागवत पुराण में भगवान कृष्ण और इंद्र से जुड़ी कथा वर्णन मिलता है। कथा के अनुसार, गोकुलवासी हर साल भगवान इंद्र की पूजा करते थे, जिससे बारिश हो सके लेकिन भगवान कृष्ण ने उन्हें गोवर्धन पर्वत की पूजा करने को कहा, क्योंकि असली पालनकर्ता प्रकृति और पर्वत हैं।

 

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कथा के अनुसार, भगवान इंद्र इससे क्रोधित हो गए और लगातार मूसलधार बारिश करने लगे। तब श्रीकृष्ण ने अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठा लिया और गांव वालों की रक्षा की। इससे भगवान इंद्र को अपनी गलती का अहसास हुआ और उन्होंने श्रीकृष्ण से क्षमा मांगी थी।

इन ग्रंथों और पुराणों में है उल्लेख

ऋग्वेद में भगवान इंद्र का सबसे ज्यादा वर्णन देखने को मिलता है। ऋग्वेद के लगभग 250 से अधिक सूक्त सिर्फ भगवान इंद्र को समर्पित हैं। ऋग्वेद में उन्हें मुख्य रूप से वज्रधारी, जल के रक्षक और वर्षा करने वाले देवता के रूप में बताया गया है। अथर्ववेद और यजुर्वेद में भी भगवान इंद्र को मेघों से वर्षा कराने वाला बताया गया है। भागवत पुराण, महाभारत और रामायण में भी भगवान इंद्र का उल्लेख मिलता है, जहां उन्हें मेघों का अधिपति और वर्षा नियंत्रक कहा गया है। विशेषकर गोवर्धन लीला (भागवत पुराण) में यह कथा आती है कि जब भगवान इंद्र ने लगातार बारिश कर गोकुलवासियों को कष्ट दिया, तब भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत उठाकर लोगों की रक्षा की। इससे स्पष्ट है कि वर्षा और तूफान पर अधिकार इंद्र का माना जाता था।

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