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त्रिक्काकारा वामनमूर्ति: वह मंदिर जहां ओणम पर लौटते हैं भगवान विष्णु

केरल के कोच्चि में स्थित त्रिक्काकारा वामनमूर्ति मंदिर अपनी कथाओं के लिए प्रसिद्ध हैं। इस मंदिर को ओणम त्योहार का जन्मस्थान माना जाता है।

Thrikkakara Vamanamoorthy Temple

त्रिक्काकारा वामनमूर्ति मंदिर: Photo Credit: Wikipedia

ओणम पर्व की धूम पूरे केरल में देखने को मिल रही है लेकिन इसकी असली आध्यात्मिक शोभा कोच्चि के त्रिक्काकारा वामनमूर्ति मंदिर में देखने को मिलती है। यह मंदिर ओणम उत्सव का जन्मस्थान माना जाता है और पौराणिक कथा के अनुसार यहीं भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर असुरराज महाबली से तीन पग भूमि मांगी थी। त्रिक्काकारा वामनमूर्ति मंदिर में ओणम के दौरान खास पूजा-अर्चना और बलि-उत्सव आयोजित किया जाता है। 

 

इस मंदिर की कथा को ओणम पर्व से जोड़ा जाता है। प्रचलित कथा के अनुसार, जब वामन ने दो पग (कदम) में आकाश और पृथ्वी नाप लिए, तब तीसरे पग के लिए महाबली ने अपना सिर अर्पित कर दिया था। कथा के अनुसार, भगवान विष्णु उनकी भक्ति से प्रसन्न हुए थे और उन्हें वरदान दिया था कि वह वर्ष में एक बार अपनी प्रजा से मिलने पृथ्वी पर आ सकेंगे। यही दिन ओणम के रूप में मनाया जाता है।

 

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त्रिक्काकारा वामनमूर्ति मंदिर और ओणम से जुड़ी पौराणिक कथा

केरल के कोच्चि में स्थित त्रिक्काकारा वामनमूर्ति मंदिर को ओणम पर्व का आध्यात्मिक केंद्र माना जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार, यह वही स्थान है जहां भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण कर असुरराज महाबली से तीन पग भूमि मांगी थी।

 

प्रचलित कथा के अनुसार, महाबली एक न्यायप्रिय, दयालु और प्रजा प्रिय राजा थे। उनके शासनकाल में किसी को भी दुख, भूख या अन्याय का सामना नहीं करना पड़ता था। उनकी बढ़ती शक्ति और लोकप्रियता से देवता चिंतित हो गए और भगवान विष्णु के पास मदद मांगने के लिए गए। पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार, देवताओं की मदद करने के लिए भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया था। उसी अवतार में भगवान विष्णु राजा महाबली के पास यज्ञ के लिए तीन पग भूमि की मांग करने के लिए गए थे।

 

मान्यता के अनुसार, विष्णु जी ने पहले पग से आकाश नापा। दूसरे पग से पृथ्वी और तीसरे पग के लिए जगह न होने पर महाबली ने अपना सिर अर्पित कर दिया था। प्रचलित कथा के अनुसार, उनकी भक्ति और त्याग से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि वह वर्ष में एक बार अपनी प्रजा से मिलने पृथ्वी पर आएंगे। यही दिन ओणम पर्व के रूप में मनाया जाता है।

 

मंदिर की दीवारों और परंपराओं में इस पौराणिक कथा की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। यही वजह है कि ओणम के समय यह मंदिर श्रद्धालुओं और पर्यटकों का प्रमुख आकर्षण बन जाता है।

 

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राजा महाबली से संबंध

माना जाता है कि ओणम के दौरान राजा महाबली की आत्मा सबसे पहले त्रिक्काकारा वामनमूर्ति मंदिर में आती है और फिर पूरे केरल में अपनी प्रजा से मिलने जाती है। इस वजह से यह मंदिर ओणम का केंद्रबिंदु माना जाता है और यहां के उत्सव को देखने हजारों श्रद्धालु और पर्यटक आते हैं।

त्रिक्काकारा वामनमूर्ति मंदिर: क्यों है खास?

वामन अवतार का मंदिर

 

यह केरल का एकमात्र मंदिर है जो प्रभु विष्णु के वामन अवतार को समर्पित है।

 

‘पवित्र पग’ की पौराणिक धरती

 

कथा के अनुसार, यहीं वामन ने महाबली पर तीसरा पग रखा था, जिससे उन्हें पाताल लोक भेजा गया था।

 

ओणम का आध्यात्मिक केंद्र

 

यह मंदिर ओणम उत्सव के 10 दिनों का धार्मिक और सांस्कृतिक मंच होता है। अथम से थिरुवोणम तक यहां विशेष पूजा, सांस्कृतिक प्रदर्शन और भव्य ओणम साद्या (भोजन) तैयार किया जाता है।

 

लोकप्रिय कथा और परंपरा का केंद्र

 

पुरातन शिलालेखों में इस मंदिर से ओणम से जुड़ी लगभग 2,500 वर्ष पुरानी परंपराएं दर्ज हैं। इतिहासकारों के अनुसार, राजा चेरमन पेरुमल ने इस स्थान को ओणम समारोह के लिए चुनकर इस परंपरा की शुरुआत की थी। बाद में यह उत्सव पूरे राज्य में फैल गया।

 

विशेष त्योहारी गतिविधियां

  • कोडियेततु (झंडा वंदन) से मंदिर में आयोजन की शुरुआत होती है।
  • चार्थु – हर भगवान विष्णु की प्रतिमा को विभिन्न अवतारों के रूप में सजाया जाता है।
  • पहलमूरम और सेवेळी जैसी भव्य हाथियों की शोभायात्राएं होती हैं।
  • 20,000 से अधिक श्रद्धालुओं को देने वाला विशाल ओणम साद्या आयोजित होता है।

    डिस्क्लेमर: यह जानकारी पौराणिक मान्यताओं और लोक कथाओं पर आधारित है।

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