हिंदी धर्म में हर एक महीने का अपना महत्व होता है। इसमें कुछ महीने ऐसे भी होते है जिनमे किसी भी प्रकार का शुभ कार्य नहीं किया जाता है। यह महीने चतुर्मास के रूप में जाने जाते हैं। चतुर्मास एक विशेष धार्मिक अवधि है जो हर साल आषाढ़ मास की देवशयनी एकादशी से शुरू होकर कार्तिक मास की देवउठनी एकादशी तक चलती है। यह लगभग चार महीने का समय होता है, इसलिए इसे 'चातुर्मास' कहा जाता है। चातुर्मास में धार्मिक और आध्यात्मिक गतिविधियों पर विशेष ध्यान दिया जाता है। लोग व्रत, नियम और भक्ति का पालन करते हैं। इसमें तुलसी पूजा, हरि नाम जप, कथा-कीर्तन और दान-पुण्य का महत्व बढ़ जाता है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब सृष्टि का संतुलन बना रहता है और त्रिलोक में कोई बड़ा संकट नहीं होता, तब भगवान विष्णु चार महीनों के लिए योगनिद्रा में चले जाते हैं। यह योगनिद्रा कोई सामान्य नींद नहीं है, बल्कि वह अवस्था है जहां चेतना पूर्ण रूप से आंतरिक ध्यान में लीन होती है, जैसे कोई योगी समाधि में चला गया हो। चातुर्मास के चार महीनों में आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद और आश्विन मास शामिल हैं।
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क्यों नहीं करने चाहिए शुभ काम
पौराणिक मान्यता के अनुसार, इन चार महीनों में भगवान विष्णु योगनिद्रा में क्षीरसागर में शेषनाग की शैय्या पर विश्राम करते हैं। जब भगवान स्वयं विश्राम में होते हैं, तब इस दौरान कोई भी शुभ काम जैसे विवाह, गृहप्रवेश, मुंडन या अन्य बड़े संस्कार नहीं किए जाते।
इसके पीछे एक और कारण यह भी माना जाता है कि यह समय बरसात का मौसम होता है। पहले के समय लोग अधिकतर खुले स्थानों और यात्राओं के जरिए ही बड़े आयोजन करते थे। बारिश में यात्रा और आयोजन नहीं हो सकता था, इसलिए इसे अशुभ मानकर टाल दिया गया।
क्या है इसके पीछे का वैज्ञानिक वजह?
इसके पीछे धार्मिक वजहों के साथ-साथ वैज्ञानिक कारण भी बहुत स्पष्ट हैं। चातुर्मास बारिश के मौसम में आता है। इस समय वातावरण में नमी ज्यादा रहती है, जिससे बीमारियां, कीड़े-मकौड़े और बैक्टीरिया/वायरस तेजी से फैलते हैं। पुराने समय में चिकित्सा सुविधाएं नहीं थीं, इसलिए लोगों को यात्रा से बचने और स्थिर जीवन जीने की सलाह दी जाती थी, जिससे वे सुरक्षित रहें।
बारिश की वजह से रास्ते कीचड़ भरे और फिसलन वाले होते थे, नदी-नाले उफान पर रहते थे, जिससे दुर्घटनाओं और जान के खतरे का डर रहता था। लंबे सफर के दौरान खानपान और रहने की दिक्कत भी होती थी और खराब खाना-पानी से लोग अक्सर बीमार पड़ जाते थे।
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भगवान विष्णु की योगनिद्रा की कथा
भगवान विष्णु की योगनिद्रा आषाढ़ शुक्ल एकादशी से शुरू होती है, जिसे देवशयनी एकादशी कहा जाता है और कार्तिक शुक्ल एकादशी, जिसे देवोत्थान एकादशी कहते हैं, को समाप्त होती है। इन चार महीनों के दौरान सृष्टि की व्यवस्था, रक्षा और संचालन की जिम्मेदारी महादेव शिव को सौंप दी जाती है।
भगवान शिव को संहारकर्ता के रूप में जाना जाता है, लेकिन वह योग, तप, त्याग और ब्रह्मज्ञान के स्वामी भी हैं। जब विष्णु ध्यान में होते हैं, तो सृष्टि में अनुशासन और संतुलन बनाए रखने के लिए शिव का तपस्वी और न्यायप्रिय रूप आवश्यक हो जाता है।
इस काल में शिव ही संसार का पालनकर्ता बनते हैं और धर्म-अधर्म का संतुलन बनाए रखते हैं। साथ ही इस समय साधना, संयम और तपस्या को सर्वोच्च माना जाता है। इसलिए चातुर्मास में विशेष रूप से शिव उपासना का महत्व होता है, क्योंकि वे ही उस समय सृष्टि के संचालक और रक्षक होते हैं।
इस समय में क्या करना चाहिए
- भगवान विष्णु और शिव की विशेष पूजा करनी चाहिए।
- दान, भजन-कीर्तन, व्रत और साधना करना शुभ माना जाता है।
- सात्त्विक भोजन करना चाहिए और पवित्र आचरण रखना चाहिए।
क्या नहीं करना चाहिए
- इस दौरान विवाह, गृहप्रवेश और अन्य मांगलिक कार्य नहीं किए जाते।
- मांस, मदिरा और तामसिक भोजन से परहेज करना चाहिए।
- बुरे विचार, झूठ और हिंसा से भी दूरी रखनी चाहिए।