logo

ट्रेंडिंग:

जगन्नाथ धाम: अनोखे मूर्ति की अधूरी रचना क्यों पूजी जाती है?

भगवान विष्णु का सबसे प्रमुख धाम, उत्तराखंड के बद्रीनाथ में है। वह भगवान नर-नारायण की तपस्थली है। बद्रीनाथ के बाद दूसरा धाम, जगन्नाथपुरी धाम है। आइए जानते हैं क्या है इसकी पौराणिक मान्यता।

Jagannath Dham

जगन्नाथ धाम की रथयात्रा में लाखों श्रद्धालु हर साल हिस्सा लेते हैं। (फोटो क्रेडिट: Wikimedia Common)

ओडिशा का पवित्र नगरी पुरी। यहां भगवान का हृदय विराजता है। यह सनातन संस्कृति के चार प्रमुख धामों से एक है। जगन्नाथ धाम को पुरुषोत्तम क्षेत्र, शाक क्षेत्र, नीलांचल और नीलगिरि भी कहा जाता है। भगवान नीलमाधव यहां पूर्ण रूप से अवतरित हुए थए और वे सबर जनजाति के दुलारे बन गए। इसे बद्रीनाथ के बाद दूसरी बैकुंठ नगरी भी कहते हैं।

यह मंदिर पुरी में है। विशाल समुद्र की कल-कल ध्वनियों के बीच यह मंदिर का सुरम्य वातावरण इसे दूसरे लोक तक पहुंचा देता है। ब्रह्म और स्कंद पुराण में इस धाम की महिमा वर्णित है। पंडित मायेश द्विवेदी बताते हैं कि भगवान विष्णु ने इस धाम में कई लीलाएं की थी।

ऐसी मान्यता है कि इस धाम में भगवान बद्रीनाथ में स्नान करने के बाद आते हैं और अपने वस्त्र बदलते हैं। पौराणिक कथाओं में इस क्षेत्र को उत्कल क्षेत्र भी कहा गया है। इस नगरी के रक्षक भगवान महादेव हैं। ऐसी मान्यता है कि पुरी नगरी शंखाकार है, जिसमें भगवान शिव का एक रूप ब्रह्म कपाल मोचन भी रहता है। यहां मां विमला और भगवान जगन्नाथ रहते हैं।

कौन हैं भगवान जगन्नाथ?

महाभारत के वनपर्व की कथा कहती है कि यहां एक आधिवासी विश्ववसु ने भगवान नीलमाधव की पूजा की थी। पुरी के मंदिरों में इस आदिवासी समुदाय के सेवकों को दौतापति कहा जाता है। यहां सबसे पहले मंदिर राजा इंद्रदयुम्न ने बनवाया था। वे मालवा के राजा थे। उन्हें भगवान जगन्नाथ ने सने में दर्शन दिए थे। उन्हें स्वप्न में प्रेरणा मिली कि नीलांचन पर्वत की गुफा में भगवान नीलमाधव की मूर्ति है। भगवान ने उन्हें एक मंदिर बनवाकर उसे स्थापित करने का निर्देश दिया।

 

लोग नीलांचन पर्वत खोजने गए। एक ब्राह्मण ने छल से विश्ववसु के आराध्य भगवान नीलाचंल की मूर्ति गुफा से चुला ली और राजा को दे दी। विश्ववसु दुखी हो गए। भगवान भक्त की आस्था पर पिघलकर राजा के बनवाए मंदिर से निकलकर दोबारा गुफा में पहुंच गए। 

क्यों खास है जगन्नाथ धाम?

भगवान ने राजा से कहा कि समुद्र में तैर रहे काठ की मूर्ति से उनका विग्रह बनवाए। भगवान की बताई लकड़ी तो उन्हें मिल गई लेकिन उसे राजा के सेवक नहीं उठा पाए। विश्ववसु की मदद से वह लकड़ी लाई गई और भगवान विश्वकर्मा मूर्तिकार बने। उन्होंने कहा कि 21 दिनों में मूर्ति वे बना देंगे लेकिन जब वे मू्र्ति बनाएं तो कोई वहां न आए। वे कई दिनों से मूर्ति बना रहे थे तो आवाजें आती थीं। कुछ दिनों से आवाज नहीं आई तो रानी को लगा कि कहीं बूजुर्ग मूर्तिकार का निधन तो नहीं हो गया।

 

राजा ने भी पत्नी के अनुरोध पर दरवाजा खोलने का आदेश दे दिया। जब दरवाजा खुला तो वहां से बुजुर्ग बने भगवान विश्वकर्मा जा चुके थे। वहां सिर्फ 3 अधूरी मूर्तियां मिलीं। भगवान नीलमाधव, उनके भाई के छोटे हाथ और सुभद्रा का विग्रह ही बना था। राजा ने इस मंदिर में अपूर्ण मू्र्तियों को प्रभु की इच्छा मानकर स्थापित करा दिया। यह मंदिर 7वीं सदी में बना था। 

यहां धड़कता है भगवान कृष्ण का दिल

एक कथा यह भी है कि भगवान कृष्ण ने जब द्वापर ने महालोक के लिए प्रस्थान किया था तो उनके शरीर का अंतिम संस्कार हुआ था। उनकी देह तो पंचतत्व में मिल गई थी लेकिन हृदय बाहर ही रह गया। वही हृदय भगवान जगन्नाथ की काष्ठमूर्ति में है, जो धड़कता है। 

कौन हैं भगवान जगन्नाथ?

भगवान कृष्ण, बलराम और सुभद्रा की जगन्नाथपुरी में पूजा होती है। मान्यता है कि भगावन अपने भाई और बहन के साथ यहां पूर्ण रूप से विराजते हैं। आषाढ़ के महीने में भगवान की रथयात्रा निकलती है। पूरुषोत्तम क्षेत्र में भगवान रथ पर सवार होकर रानी गुंडीचा से मिलने जाते हैं। ये वही रानी हैं, जो भगवान के भक्त इंद्रद्युम्न की पत्नी थीं। इन्हें भगवान कृष्ण की मौसी कहा जाता है। वे यहां 8 दिन रहते हैं, अषाढ़ शुक्ल की दशमी तिथि को वे अपने रथ नंदीघोष में सवार होकर मंदिर लौटते हैं। भगवान बलभद्र के रथ का नाम रक्षतल और  सुभद्रा के रथ को दर्पदलन कहते हैं। 

मंदिर का सबसे बड़ा रहस्य है ब्रह्म पदार्थ
 
भगवान जगन्नाथ की मूर्तियों को हर 12 साल पर बदला जाता है। इनकी जगह नई मूर्तियां स्थापित की जाती हैं। यह प्रक्रिया जब पूरी की जाती है, तब इसे गोपनीय रखा जाता है। पुरानी मूर्तियों को नई मूर्तियों से बदल दिया जाता है। मूर्ति बदलते वक्त पूरे शहर की बिजली काट दी जाती है, मंदिर के आसपास अंधेरा रहता है, पुजारी के हाथों में दस्ताने होते हैं और उनकी आंखों पर पट्टी बांधी जाती है। वे भगवान के नए विग्रह में पुरानी मूर्ति से हृदय निकालकर स्थापित करते हैं, इसे ही ब्रह्म पदार्थ भी कहते हैं।  

Related Topic:#Temples

शेयर करें

संबंधित खबरें

Reporter

और पढ़ें

हमारे बारे में

श्रेणियाँ

Copyright ©️ TIF MULTIMEDIA PRIVATE LIMITED | All Rights Reserved | Developed By TIF Technologies

CONTACT US | PRIVACY POLICY | TERMS OF USE | Sitemap