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दो दिन रखा जाएगा योगिनी एकादशी व्रत, तिथि से कथा तक सब जानें

हिंदू धर्म में योगिनी एकादशी व्रत को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। आइए जानें इस व्रत से जुड़ी सभी जरूरी बातें।

Image of Bhagwan Vishnu

भगवान विष्णु(Photo Credit: AI Image)

हिंदू पंचांग के अनुसार, प्रत्येक माह में दो एकादशी आती हैं- एक शुक्ल पक्ष में और एक कृष्ण पक्ष में। यानी साल भर में कुल 24 एकादशी होती हैं। कई बार पंचांग में एकादशी तिथि दो दिन तक पड़ती है, इसलिए लोग भ्रमित हो जाते हैं कि व्रत किस दिन रखें।

योगिनी एकादशी व्रत 2025

आषाढ़ कृष्ण पक्ष एकादशी प्रारंभ: 21 जून सुबह 07:20 से
आषाढ़ कृष्ण पक्ष एकादशी समाप्त: 22 जून सुबह 04:25 पर
स्मार्त एकादशी व्रत तिथि: 21 जून 2025, शनिवार
वैष्णव एकादशी व्रत तिथि: 22 जून 2025, रविवार

 

बता दें कि एकादशी के दिन भगवान विष्णु की उपासना के लिए अभिजीत मुहूर्त को बहुत उत्तम माना जाता है। अभिजीत मुहूर्त एक ऐसा मुहूर्त है जो हर दिन लगभग एक ही समय पर होता है। ऐसे में दोनों दिन सुबह 11:50 से दोपहर 12:45 के बीच की जा सकती है।

 

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योगिनी एकादशी की पौराणिक कथा

योगिनी एकादशी वर्ष की प्रमुख एकादशियों में से एक मानी जाती है। इस व्रत का वर्णन पद्म पुराण और भगवान श्रीकृष्ण के संवाद में मिलता है। इस व्रत से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार, हेममाली नामक एक यक्ष कुबेर का सेवक था। उसका काम प्रतिदिन भगवान शिव को पुष्प चढ़ाना था। एक दिन वह अपनी पत्नी के साथ विलास में समय बिताने लगा और शिव  पूजन का कार्य नहीं किया। जब राजा कुबेर को इसका पता चला तो उन्होंने क्रोधित होकर उसे श्राप दिया कि वह रोगी और नरक जैसी पीड़ा भोगेगा।

 

हेममाली श्राप के कारण रोगग्रस्त होकर धरती पर भटकने लगा। एक दिन वह एक ऋषि के आश्रम में पहुंचा और अपने पापों की क्षमा याचना की। ऋषि ने उसे योगिनी एकादशी का व्रत करने की सलाह दी। उसने श्रद्धा से व्रत किया और सभी पापों से मुक्त होकर पुनः यक्ष लोक को प्राप्त किया।

व्रत का महत्व और फल

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, योगिनी एकादशी व्रत का पुण्य 88 हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने के बराबर माना गया है। साथ यह व्रत पापों को नष्ट करने वाला और स्वस्थ शरीर व मन प्रदान करने वाला होता है।

 

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व्रत करने की विधि

  • व्रत से एक दिन पहले (दशमी) को सात्विक भोजन लेना चाहिए और रात्रि में ब्रह्मचर्य का पालन करें।
  • एकादशी के दिन प्रातः स्नान करके व्रत का संकल्प लें।
  • भगवान विष्णु की पूजा करें- तुलसी, पंचामृत, फल, दीप-धूप आदि अर्पित करें।
  • दिनभर उपवास करें, यदि संभव हो तो निर्जल व्रत करें। नहीं तो फलाहार ले सकते हैं।
  • शाम को विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें और भजन-कीर्तन करें।
  • रात्रि को जागरण करें- यह शुभ फलदायक होता है।
  • अगले दिन द्वादशी को ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान-दक्षिणा देकर व्रत का पारण करें।
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