हिंदू धर्म में एकादशी तिथि को विशेष महत्व दिया गया है। हर माह की शुक्ल और कृष्ण पक्ष की एकादशी व्रत के रूप में मनाई जाती है। आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को योगिनी एकादशी कहा जाता है। यह व्रत पापों से मुक्ति, रोगों से राहत और मोक्ष प्राप्ति के लिए अत्यंत फलदायी माना जाता है। विशेष रूप से यह व्रत विष्णु भगवान को समर्पित होता है।
वैदिक पंचांग के अनुसार, आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 21 जून सुबह 07:18 बजे शुरू होगी और इस तिथि का समापन 22 जून 04:27 बजे पर हो जाएगा। ऐसे में स्मार्त संप्रदाय में योगिनी एकादशी व्रत 21 जून, शनिवार के दिन रखा जाएगा और वैष्णव संप्रदाय में 22 जून, रविवार के दिन रखा जाएगा।
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योगिनी एकादशी का महत्व
योगिनी एकादशी को करने से व्यक्ति 84 लाख योनियों में जाने से बच जाता है। यह व्रत व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक जीवन में शुद्धता लाता है। मान्यता है कि जो भी श्रद्धा से इस दिन व्रत करता है, वह जन्म-जन्मांतर के पापों से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त करता है।
इस दिन व्रत करने से तीन जन्मों के पापों का नाश होता है और जीवन में सुख-शांति आती है। यह व्रत कर्ज, रोग, दरिद्रता से छुटकारा दिलाने वाला बताया गया है।
योगिनी एकादशी पौराणिक कथा
योगिनी एकादशी से जुड़ी कथा अलकापुरी के राजा कुबेर से संबंधित है। वे भगवान शिव के भक्त थे और उनकी सेवा के लिए एक माली जिसका नाम हेममाली था, रोज शिवलिंग पर फूल चढ़ाने के लिए पुष्प लाया करता था। एक दिन वह अपनी पत्नी से प्रेम में डूबा रहा और समय पर फूल नहीं पहुँचा सका। इससे कुबेर क्रोधित हो गए और उन्होंने उसे कोढ़ होने का श्राप दिया।
हेममाली अपनी गलती पर बहुत पछताया और हिमालय पर जाकर ऋषि मार्कंडेय से मिलकर उपाय पूछा। ऋषि ने उसे योगिनी एकादशी का व्रत करने को कहा। उसने पूरी श्रद्धा से यह व्रत किया और भगवान विष्णु की कृपा से उसका कोढ़ ठीक हो गया और उसे मोक्ष भी प्राप्त हुआ।
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योगिनी एकादशी की पूजा विधि
- व्रत का संकल्प: दशमी की रात से ही सात्विक भोजन लेकर मन में व्रत का संकल्प लें।
- प्रातःकाल स्नान: एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें। पवित्र जल से स्नान करना श्रेष्ठ माना गया है।
- भगवान विष्णु की पूजा: पीले वस्त्र पहनकर भगवान विष्णु की प्रतिमा या तस्वीर को स्थापित करें। उन्हें तुलसी, पीले फूल, चावल, फल, दूध आदि अर्पित करें।
- व्रत और उपवास: इस दिन फलाहार करें या निर्जल व्रत रखें (शक्ति अनुसार)। अन्न और तामसिक चीजों से परहेज करें।
- ध्यान और कथा श्रवण: दिनभर भगवान विष्णु के मंत्रों का जप करें – 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय'। योगिनी एकादशी की कथा अवश्य सुनें या पढ़ें।
- रात्रि जागरण: रात्रि में भजन-कीर्तन करें और भगवान का ध्यान करें।
- द्वादशी को पारण: अगले दिन सूर्योदय के बाद व्रत का पारण करें, यानी व्रत खोलें। पहले ब्राह्मण को भोजन करवाकर दान दें, फिर खुद भोजन करें।