उलझ के रह गए छोटे किसान, ऋण और सब्सिडी का बड़े किसानों ने लिया फायदा?
विशेष
• DELHI 19 Jul 2025, (अपडेटेड 19 Jul 2025, 11:18 PM IST)
भारत में लगभग 86% किसान छोटे और सीमांत हैं, लेकिन कृषि ऋण और सब्सिडी का बड़ा हिस्सा केवल 13% बड़े किसानों को ही क्यों मिल रहा है? आकंड़ों से समझिए हकीकत।

प्रतीकात्मक तस्वीर । Photo Credit: AI Generated
भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि का स्थान सबसे महत्त्वपूर्ण रहा है — यह क्षेत्र लगभग 60% आबादी को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से रोजगार देता है और देश की GDP का 17–18% योगदान करता है। बीते कुछ वर्षों में, खासकर कोविड के बाद, केंद्र सरकार और राज्य सरकारों ने कृषि क्षेत्र को फिर से गति देने के लिए कृषि ऋण पर विशेष ज़ोर दिया है। वित्त वर्ष 2023-24 में कृषि ऋण वितरण ₹25.48 लाख करोड़ तक पहुंचा, जो निर्धारित लक्ष्य ₹20 लाख करोड़ से 25% अधिक था। यह पिछले पांच वर्षों की तुलना में अब तक का सर्वाधिक है।
इस ऋण बूम को लेकर सरकार का दावा है कि यह किसानों की वित्तीय स्वतंत्रता, उत्पादन क्षमता और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने की दिशा में मील का पत्थर है। लेकिन इस तेज़ी के बीच एक अहम सवाल उठता है: क्या वास्तव में छोटे और सीमांत किसानों को इसका लाभ मिल रहा है? 2021 की कृषि जनगणना के अनुसार, भारत के 86.2% किसान छोटे (1-2 हेक्टेयर भूमि) और सीमांत किसान (1 हेक्टेयर से कम भूमि वाले) हैं। इनमें करीब 67.1 प्रतिशत सीमांत किसान और 19.1 प्रतिशत छोटे किसान हैं। इन किसानों की आय अस्थिर होती है, संपत्ति सीमित होती है, और कई बार बैंकिंग व्यवस्था तक पहुंच भी कठिन होती है। ऐसे में, जब आंकड़े बताते हैं कि कृषि ऋण का बड़ा हिस्सा बड़े किसानों या एग्री-बिजनेस कंपनियों को जा रहा है, तो यह ऋण वितरण के समान रूप से बांटे जाने पर सवाल खड़े करता है। खबरगांव इस लेख में इन्ही पहलुओं की पड़ताल करेगा।
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क्या कहते हैं आंकड़े?
NABARD के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2023–24 में कुल कृषि ऋण वितरण ₹24.5 लाख करोड़ तक पहुंच गया, जो कि 2020–21 में ₹16.8 लाख करोड़ था। यह लगभग 46% की वृद्धि दर्शाता है। इसमें से ₹14.2 लाख करोड़ फसल ऋण (Short Term Crop Loans) के रूप में और ₹10.3 लाख करोड़ कृषि निवेश ऋण (Term Loan for capital investment) के रूप में दिए गए।
आरबीआई की 2025 की रिपोर्ट बताती है कि 65% से अधिक कृषि ऋण सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के माध्यम से वितरित किया गया, जबकि 25% सहकारी बैंकों और बाकी का ऋण निजी क्षेत्र से आया। देश के 86.2% किसान सीमांत और छोटे हैं, लेकिन उन्हें कुल ऋण का जितना हिस्सा मिलना चाहिए, उतना नहीं मिलता। रिपोर्ट के मुताबिक छोटे और सीमांत किसानों को कुल कृषि ऋण का सिर्फ 40–45% हिस्सा मिलता है जबकि 13.8% बड़े किसानों को ऋण का लगभग 55–60% हिस्सा मिलता है।
सब्सिडी कितनी किसको?
भारत सरकार किसानों को सस्ती दर पर लोन देने के लिए Interest Subvention Scheme चलाती है। इसके तहत किसान को 7% ब्याज दर पर लोन मिलता है और समय पर भुगतान कर देने पर पर 3% की अतिरिक्त छूट सरकार द्वारा दी जाती है, यानी कि किसान को 4% पर लोन मिलता है, लेकिन यहां भी स्थिति वही है और छोटे व सीमांत किसानों को सब्सिडी का लाभ कम मिल पाता है जबकि बड़े किसानों को ही इसका भरपूर लाभ मिलता है।
CAG रिपोर्ट (2020) में खुलासा हुआ कि छोटे और सीमांत किसानों को कुल सब्सिडी का सिर्फ 30 प्रतिशत जबकि बड़े किसानों को इसका 70 प्रतिशत हिस्सा मिलता है। जबकि छोटे व सीमांत किसान 86 प्रतिशत हैं और बड़े किसान मात्र 13 प्रतिशत हैं। यानी कि छोटे किसान सब्सिडी का एक-तिहाई से भी कम हिस्सा ही ले पाते हैं।
हालांकि, किसान क्रेडिट कार्ड (KCC), पीएम-किसान, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, क्रेडिट गारंटी फंड, एग्री इंफ्रास्ट्रक्चर फंड इत्यादि तमाम स्कीमें छोटे किसानों को ध्यान में रखकर शुरू की गई थीं, लेकिन कई रिपोर्ट्स में सामने आया है कि इनका बड़ा हिस्सा बड़े किसानों तक ही सीमित रह जाता है।
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कॉरपोरेट और एग्री-फर्म्स ले रहीं फायदा
2024 में CRISIL की रिपोर्ट बताती है कि कृषि निवेश ऋण का बड़ा हिस्सा कृषि-लिंक्ड कंपनियों, एग्री-बिजनेस फर्म्स, फर्टिलाइजर कंपनियों और प्रोसेसिंग यूनिट्स को गया। लगभग ₹3.8 लाख करोड़ का ऋण सिर्फ इन संस्थागत लाभार्थियों को मिला, जबकि छोटे किसान व्यक्तिगत लाभार्थी के रूप में बाहर हो गए।
मूल बात है कि सरकार का उद्देश्य सही है लेकिन सिस्टम में खामियां हैं। कृषि ऋण का 70% हिस्सा 15% किसानों के पास जा रहा है। सिस्टम को ग्रासरूट लेवल पर सरल और पारदर्शी बनाना होगा।
कारण क्या है?
बड़े किसानों के पास ज्यादा भूमि और बेहतर डॉक्युमेंट्स होते हैं, इसलिए बैंक उन्हें आसानी से लोन दे देता है, जबकि छोटे किसानों के पास अक्सर खतौनी, KYC के दस्तावेज व अन्य भूमि का रिकॉर्ड न होने से उन्हें ऋण मिलना मुश्किल होता है।
इसके अलावा कोलैटरल की कमी, क्रेडिट स्कोर का न होना और डिजिटलीकरण का अभाव भी इसका एक महत्त्वपूर्ण कारण बनता है। फिर छोटे किसान अक्सर पट्टे पर जमीन जोतते हैं या उनकी भूमि रिकॉर्ड अधूरी होती है। रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 30% छोटे किसान अभी भी साहूकारों से ऊंचे ब्याज पर कर्ज लेते हैं, जबकि बड़े किसानों को केसीसी स्कीम के तहत 4% की ब्याज दर पर सब्सिडाइज्ड ऋण मिलता है।
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क्या करना होगा?
सरकारी नीतियों और ऋण का वास्तविक फायदा छोटे किसानों को पहुंच सके इसके लिए सरकार को भूमि रिकॉर्ड डिजिटलीकरण, SHG को बढ़ावा देना, फार्मर क्रेडिट स्कोर सिस्टम, जन-जागरूकता के लिए समय-समय पर गांवों में KCC, फसल बीमा और DBT के लाभों के लिए कैम्प लगाए जाएं।
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