कम खर्च, जॉब रिटेंशन; Google, Wipro, HCL छोटे शहरों में खोल रहीं ऑफिस
विशेष
• DELHI 16 Jul 2025, (अपडेटेड 20 Jul 2025, 4:39 PM IST)
Google, TCS, Infosys और HCL जैसी बड़ी कंपनियां अब छोटे शहरों में अपने ऑफिस क्यों खोल रही हैं? जानिए कैसे डिजिटल इंडिया, सस्ती लागत और टियर-2/3 शहरों की प्रतिभा भारत के नए टेक्नोलॉजी हब तैयार कर रही है।

प्रतीकात्मक तस्वीर । Photo Credit: AI Generated
देश की अर्थव्यवस्था का लगातार विकास हो रहा है और ऐसे में बड़े शहरों में भीड़ भी बढ़ती जा रही है क्योंकि तमाम लोग अपने घरों से बड़ी-बड़ी कंपनियोंं में नौकरी करने के लिए मेट्रो सिटीज़ में जाते हैं। ज्यादातर बड़ी कंपनियों के ऑफिस बड़े-बड़े शहरों में हैं, लेकिन अब यह कंपनियां छोटे-शहरों की ओर मूव कर रही हैं। अब यह कंपनियां पटना, लखनऊ, इंदौर, भुवनेश्वर, कोच्चि, जयपुर, विजयवाड़ा और कोयंबटूर जैसे टियर-2 और टियर-3 जैसे शहरों का रुख कर रही हैं।
NASSCOM और Deloitte की रिपोर्ट के अनुसार, Tier‑2 और Tier‑3 शहरों में कुल IT टैलेंट पूल का लगभग 11–15% हिस्सा स्थित है और जीसीसी (Global Capability Centres) की संख्या इन शहरों में FY 2019 के 5% से बढ़कर FY2024 में लगभग 7% हो गई है, और यह बढ़ोत्तरी लगातार जारी है। Zinnov‑NASSCOM की रिपोर्ट के अनुसार, लगातार दो वर्षों में Tier‑2 शहरों में डिजिटल टैलेंट में 25% से अधिक वृद्धि दर्ज की गई है, और कंपनियां इन शहरों में GCC (Global Capability Centres) स्थापित कर रही हैं। Zinnov की GCC Talent Trends 2025 रिपोर्ट बताती है कि टियर‑2/3 में IT प्रोफेशनल्स का हिस्सा वर्तमान में लगभग 10% है। कई कर्मचारी भी अब महानगरों से वापसी कर चुके हैं और चाहते हैं कि उन्हें अपने ही शहर में अच्छे ऑफिस में काम करने का मौका मिले। इस लेख में खबरगांव इसी बात की पड़ताल करेगा कि आखिर ये कंपनियां छोटे शहरों का रुख क्यों कर रही हैं?
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महानगरों से दूरी क्यों?
महानगरों में लागत का दबाव कंपनियों के लिए चुनौती बन चुका है। CBRE India की 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, मुंबई और बेंगलुरु में प्राइम ऑफिस स्पेस का औसत किराया ₹180–₹375 प्रति वर्ग फुट तक है, जबकि लखनऊ, इंदौर और जयपुर जैसे शहरों में यह ₹45–₹75 प्रति वर्ग फुट है, जो कि एक बड़े अंतर को दर्शाता है।
इसके अलावा, ट्रैफिक जाम, प्रदूषण, और लाइफ स्टाइल को बनाए रखने की ऊंची लागत जैसी समस्याएं बड़े कारण हैं जिसकी वजह से कंपनियां छोटे शहरों की तरफ रुख कर रही हैं। कंपनियां अब डिस्ट्रीब्यूटेड और हाइब्रिड वर्क मॉडल को अपनाते हुए छोटे शहरों में विस्तार कर रही हैं।
बड़ी कंपनियां छोटे शहर?
खासतौर पर भारत की बड़ी टेक कंपनियां अब तेजी से टियर-2 और टियर-3 शहरों की ओर रुख कर रही हैं। TCS (टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज) ने इंदौर, गांधीनगर, नागपुर और भुवनेश्वर जैसे शहरों में अपने IT पार्क स्थापित किए हैं। कंपनी के अनुसार, छोटे शहरों में कर्मचारी बने रहने की दर (Employee Retention Rate) टियर-1 शहरों की तुलना में लगभग 25% अधिक है, जो लंबे समय तक टैलेंट को बनाए रखने में सहायक है। वहीं, Infosys ने मैसूरु में एशिया का सबसे बड़ा ट्रेनिंग सेंटर स्थापित किया है और 2023 में चंडीगढ़ व कोयंबटूर में भी अपना विस्तार किया है, जिससे इन शहरों में तकनीकी शिक्षा और रोजगार के अवसर तेजी से बढ़े हैं।
HCL Technologies ने भी टियर-2 शहरों में मजबूत मौजूदगी दर्ज की है। कंपनी के लखनऊ और विजयवाड़ा स्थित कैंपस अब तक 15,000 से अधिक लोगों को प्रत्यक्ष रोजगार प्रदान कर चुके हैं। ई-कॉमर्स दिग्गज भी इस दौड़ में पीछे नहीं हैं। Amazon ने रायपुर और उदयपुर में अपने सपोर्ट हब खोले हैं ताकि इन क्षेत्रों में लॉजिस्टिक और ग्राहक सेवाओं को मजबूत किया जा सके। वहीं, Flipkart ने 2024 में पटना, गुवाहाटी और सूरत जैसे उभरते शहरों में लॉजिस्टिक क्लस्टर स्थापित किए हैं, जिससे न केवल उत्पादों की डिलीवरी गति बढ़ी है, बल्कि स्थानीय युवाओं को भी रोजगार मिला है।
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इसके अतिरिक्त, Google ने 2023 में 'इंडिया फॉरवर्ड सिटीज़' नाम से एक विशेष अभियान शुरू किया, जिसका उद्देश्य टियर-2 और टियर-3 शहरों में डिजिटल स्किलिंग को बढ़ावा देना और छोटे शहरों के व्यवसायों के साथ क्लाउड टेक्नोलॉजी में साझेदारी को मजबूत करना है। यह पहल देश के तकनीकी विकास को विकेंद्रीकृत करने और क्षेत्रीय प्रतिभा को सशक्त बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम मानी जा रही है।
छोटे शहरों में बड़ी प्रतिभा
NSDC ने अब तक 4 करोड़ (40 मिलियन) से ज़्यादा युवाओं को ट्रेनिंग दी है, इनमें से लगभग 94 लाख (9.4 मिलियन) को नौकरी या स्वरोजगार के अवसर मिले हैं। India Talent Supply Report जैसी रिपोर्ट बताती हैं कि भारत में इंजीनियरिंग, आर्ट्स और साइंस में हर साल होने वाले कुल ग्रेजुएट्स का लगभग 60% हिस्सा टियर-2 और टियर-3 शहरों और कस्बों से आता है। यह आंकड़ा बताता है कि देश की तकनीकी प्रतिभा अब केवल महानगरों तक सीमित नहीं रही, बल्कि छोटे शहर भी प्रतिभा का नया भंडार बनते जा रहे हैं। इसी प्रवृत्ति का समर्थन लिंक्डइन टैलेंट ट्रेंड रिपोर्ट 2023 भी करती हुई दिखती है, जिसके मुताबिक लखनऊ, इंदौर और जयपुर जैसे शहरों में टेक्नोलॉजी आधारित नौकरियों की पोस्टिंग में 21% की वृद्धि दर्ज की गई है।
इन छोटे शहरों के युवाओं में न केवल तकनीकी दक्षता होती है, बल्कि उनमें काम करने का स्थायित्व (job stickiness) भी अधिक होता है यानी कि वे किसी एक जॉब में लंबे समय तक रुकते हैं। वे अपेक्षाकृत कम वेतन में भी संतुष्ट रहते हैं, जिससे कंपनियों की employee acquisition (नए कर्मचारी भर्ती) और training cost (प्रशिक्षण लागत) में अच्छी-खासी कमी आती है। यही कारण है कि अब बड़ी टेक कंपनियां टैलेंट की खोज में टियर-2 और टियर-3 शहरों की ओर आकर्षित हो रही हैं। इससे न केवल इन शहरों में रोजगार के अवसर बढ़ रहे हैं, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था और डिजिटल विकास को भी गति मिल रही है।
सरकारी नीतियों का सपोर्ट
भारत में टेक्नोलॉजी और इनोवेशन के क्षेत्र में हो रहे बदलावों को सरकार की 'Digital India' और 'Startup India' जैसी राष्ट्रीय योजनाओं ने नई दिशा और गति प्रदान की है। इन इनीशिएटिव का उद्देश्य डिजिटल बुनियादी ढांचे को मजबूत करना, युवाओं को रोजगारोन्मुखी कौशल देना और उद्यमिता को बढ़ावा देना रहा है। इसके साथ ही, विभिन्न राज्य सरकारों ने भी अपने स्तर पर IT पार्क, इंसेंटिव स्कीम और स्टार्टअप फंडिंग जैसी नीतियां लागू की हैं, जिससे छोटे शहरों में तकनीकी पारिस्थितिकी तंत्र (ecosystem) तेजी से विकसित हो रहा है।
उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश सरकार ने लखनऊ में IT City और नोएडा में डेटा सेंटर पॉलिसी शुरू की है, जबकि ओडिशा ने भुवनेश्वर में इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग क्लस्टर और स्किल हब स्थापित किए हैं। इसी तरह, तमिलनाडु सरकार ने कोयंबटूर और तिरुचिरापल्ली में IT पार्क और BPO सेंटर खोले हैं, और मध्य प्रदेश ने इंदौर में फिनटेक ज़ोन तथा ग्वालियर में स्टार्टअप नीति लागू की है।
DPIIT द्वारा मान्यता प्राप्त स्टार्टअप्स का 45% हिस्सा टियर‑2 और टियर‑3 शहरों से है। यानी कुल स्टार्टअप्स में से लगभग आधे की शुरुआत अब गैर‑मेट्रो शहरों से हो रही है। यह दर्शाता है कि छोटे शहर भारत के स्टार्टअप इकोसिस्टम का नया केंद्र बनते जा रहे हैं।
हब एंड स्पोक स्ट्रक्चर
टेक्नोलॉजी और सेवा क्षेत्र की कई अग्रणी कंपनियां अब Hub & Spoke मॉडल को तेजी से अपना रही हैं, जिसमें वे मेट्रो शहरों को मुख्यालय (Hub) और छोटे शहरों को सपोर्ट सेंटर (Spoke) के रूप में विकसित कर रही हैं। इस मॉडल की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इससे संचालन लागत में कमी, प्रबंधन में लचीलापन, और स्थानीय प्रतिभा को अवसर मिलता है। कर्मचारी अब अपने गृह नगर से ही काम कर सकते हैं, जिससे न केवल उनका मनोबल बढ़ता है, बल्कि नौकरी में स्थायित्व भी आता है।
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इस रणनीति को Infosys, Wipro और Accenture जैसी दिग्गज कंपनियां पहले ही अपनी कॉरपोरेट नीति में शामिल कर चुकी हैं। ये कंपनियां छोटे शहरों में इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करके अपने टेक्नोलॉजी और ग्राहक सेवा कार्यों को विकेन्द्रित कर रही हैं। Deloitte की रिपोर्ट्स में shared services consolidation जैसे ऑपरेटिंग मॉडल से ~15% तक की खर्च में कमी होने की बात कही गई है। साथ ही, इससे टियर-2 और टियर-3 शहरों में रोजगार के नए अवसर भी पैदा हो रहे हैं, जिससे क्षेत्रीय असमानता को दूर करने में मदद मिल रही है।
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