सरकारी योजनाएं जो बड़ी कंपनियों को छोटे शहरों में लाने में मदद कर रहीं
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• DELHI 23 Jul 2025, (अपडेटेड 23 Jul 2025, 12:36 AM IST)
बड़ी बड़ी कंपनियां छोटे शहरों की ओर लगातार रुख कर रही हैं, लेकिन इसमें सरकारी नीतियों की भी बड़ी भूमिका है। इस लेख में हम उन्हीं पर चर्चा करेंगे।

प्रतीकात्मक तस्वीर । Photo Credit: AI Generated
भारत में शहरीकरण तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन यह रुझान अब केवल महानगरों तक सीमित नहीं है। बड़े शहरों की भीड़, महंगे रियल एस्टेट और कामकाजी जीवन की जटिलताओं ने सरकार और कॉर्पोरेट जगत दोनों को छोटे शहरों की ओर देखने पर मजबूर कर दिया है। Tier-2 और Tier-3 शहर अब तकनीकी और औद्योगिक विकास के नए केंद्र बनते जा रहे हैं।
इसी संदर्भ में ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स (GCCs) जैसे मॉडल को छोटे शहरों में ट्रांसफर करने का रुझान बढ़ रहा है। टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS), इंफोसिस, एचसीएल, विप्रो जैसी दिग्गज कंपनियां अब इंदौर, भुवनेश्वर, त्रिची, नागपुर, लखनऊ जैसे शहरों में अपने ऑपरेशन्स सेट कर रही हैं।
इस बदलाव का कारण केवल लागत में कटौती नहीं है, बल्कि इसके पीछे केंद्र और राज्य सरकारों की वह नीतिगत पहल और इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास योजनाएं हैं जिन्होंने इन शहरों को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया है।
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इस लेख में खबरगांव बताएगा कि सरकार कैसे छोटे शहरों के इन्फ्रा, तकनीक, मानव संसाधन और रेग्युलेटरी ढांचे को विकसित कर GCC और अन्य कॉर्पोरेट संस्थानों के लिए आकर्षक बना रही है। साथ ही, हम उन योजनाओं, डेटा और जमीनी स्तर पर हुए बदलावों को भी समझेंगे जिनकी वजह से छोटे शहर आज कॉर्पोरेट भारत के भविष्य का नया नक्शा तैयार कर रहे हैं।
छोटे शहरों के लिए पॉलिसी पुश
सरकार की सबसे बड़ी भूमिका नीतियों और स्कीमों के ज़रिए होती है, और इस दिशा में केंद्र और राज्यों ने विशेष रूप से छोटे शहरों के लिए योजनाएं बनाई हैं। 2016 से, 4G कवरेज तेज़ी से भारत के हर हिस्से में पहुंच गया। फिर, अक्टूबर 2022 में 5G लॉन्च हुआ, जिसने डिजिटल सेवाओं को और भी तेज़ कर दिया। 22 महीनों में, भारत ने 4.74 लाख 5G टावर लगाए, जो 99.6% ज़िलों को कवर करते हैं। अकेले 2023-24 में 2.95 लाख टावर जोड़े गए।
आधार, यूपीआई, डिजिलॉकर जैसी सुविधाएं अब छोटे शहरों को डिजिटल रूप से सक्षम बनाती हैं, जिससे कंपनियां वहां टेक्नॉलजी पर आधारित संचालन शुरू कर सकें। वहीं पीएम गति शक्ति मास्टर प्लान मल्टी-मॉडल इन्फ्रास्ट्रक्चर को इंटीग्रेट करती है। छोटे शहरों में एयरपोर्ट, रेल, हाइवे और लॉजिस्टिक हब पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है।
राज्य सरकारें भी अपने अपने हिसाब से नीतियां बना रही हैं जैसे मध्य प्रदेश की IT, ITeS and ESDM policy 2023, जिसमें इंदौर और भोपाल को GCC हब बनाने की योजना है। उत्तर प्रदेश की Electronics Manufacturing Policy ने नोएडा के अलावा लखनऊ, कानपुर और मेरठ को भी स्मार्ट सिटी और GCC गंतव्य बनाने की पहल की है।
इन्फ्रास्ट्रक्चर का तेजी से विकास
छोटे शहरों को व्यवसाय और निवेश के लिए अनुकूल बनाने के उद्देश्य से सरकार ने बुनियादी ढांचे को तेजी से सशक्त किया है। सबसे पहले, आईटी पार्क और विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZs) को प्राथमिकता दी गई है। उदाहरण के तौर पर, इंदौर का सुपर कॉरिडोर अब देश के सबसे तेज़ी से उभरते टेक्नोलॉजी हब्स में गिना जा रहा है। इसी तरह, भुवनेश्वर में Infovalley और विशाखापत्तनम में Fintech Valley जैसे क्लस्टर खासतौर पर GCC (Global Capability Centers) को ध्यान में रखकर विकसित किए गए हैं।
इसके अलावा, एयर कनेक्टिविटी को मजबूत करने के लिए UDAN योजना के तहत 150 से अधिक नए हवाई रूट छोटे शहरों को बड़े महानगरों से जोड़ रहे हैं। अब वाराणसी, जयपुर और देहरादून जैसे शहर न केवल देश के अन्य हिस्सों से, बल्कि सीधे इंटरनेशनल फ्लाइट्स के माध्यम से वैश्विक स्तर से भी जुड़े हैं, जिससे व्यापारिक यात्राओं और विदेशी निवेश को बढ़ावा मिल रहा है।
ऊर्जा और जल आपूर्ति के क्षेत्र में भी सुधार किया गया है। छोटे शहरों में 24x7 बिजली और पानी की व्यवस्था सुनिश्चित की जा रही है। रिन्यूएबल एनर्जी आधारित पावर बैकअप को प्राथमिकता दी जा रही है और औद्योगिक क्षेत्रों को विशेष वॉटर सप्लाई ज़ोन से जोड़ा जा रहा है, ताकि उत्पादन में किसी प्रकार की बाधा न आए। ये सभी पहल छोटे शहरों को अगली औद्योगिक क्रांति का हिस्सा बना रहे हैं।
लोगों को ट्रेनिंग देना
छोटे शहरों में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है, लेकिन उसे सही दिशा देने और प्रशिक्षित करने के लिए सरकार ने कई योजनाएं शुरू की हैं। सबसे पहले बात करें प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) की, तो इसके तहत अब तक 1 करोड़ से अधिक युवाओं को Tier-2 और Tier-3 शहरों में प्रशिक्षित किया जा चुका है। खास बात यह है कि टेलीकॉम, IT, डिज़ाइन, डिजिटल मार्केटिंग जैसे क्षेत्रों में विशेष मॉड्यूल तैयार कर उन्हें रोजगार के लायक बनाया जा रहा है।
इसके साथ ही AICTE और NASSCOM जैसी संस्थाओं के साथ मिलकर FutureSkills Prime प्रोग्राम चलाया जा रहा है, जिसके तहत छोटे शहरों के इंजीनियरिंग कॉलेजों में पढ़ने वाले छात्रों को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), मशीन लर्निंग (ML), क्लाउड कंप्यूटिंग और साइबर सुरक्षा जैसे आधुनिक विषयों में ट्रेनिंग दी जा रही है।
साथ ही, राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन (Urban Livelihood Mission) के तहत सरकारी व निजी क्षेत्रों के साथ एमओयू (MOU) साइन कर प्लेसमेंट आधारित स्किलिंग मॉडल पर काम किया जा रहा है। इसका उद्देश्य छोटे शहरों के युवाओं को स्थानीय या क्षेत्रीय स्तर पर ही रोजगार दिलाना है, ताकि उन्हें बड़े शहरों की ओर पलायन न करना पड़े। इन योजनाओं ने छोटे शहरों में मानव संसाधन विकास की दिशा में एक मजबूत नींव रखी है।
ईज ऑफ डूइंग बिजनेस
सरकार ने छोटे शहरों में व्यापारिक माहौल को बेहतर बनाने और नए निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए Ease of Doing Business में कई अहम सुधार किए हैं। व्यापार शुरू करने की प्रक्रिया को सरल और तेज़ बनाने के लिए Single Window Clearance सिस्टम को बढ़ावा दिया गया है। अब 21 राज्यों में निवेश से जुड़ी सभी मंजूरियां एक ही पोर्टल के माध्यम से प्राप्त की जा सकती हैं, जिससे प्रक्रियाएं पारदर्शी और समयबद्ध हो गई हैं। राजस्थान, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों ने अपने छोटे शहरों में IT स्पेशल ज़ोन घोषित किए हैं, जिससे इन क्षेत्रों में टेक कंपनियों के लिए वातावरण और भी अनुकूल बन गया है।
इसके साथ ही सरकार ने टैक्स और सब्सिडी से जुड़े नियमों में भी उदारता दिखाई है। छोटे शहरों में निवेश करने वाली कंपनियों को 10% से 25% तक की पूंजीगत सब्सिडी दी जा रही है। वहीं, स्टार्टअप्स को GST में रियायतें दी जा रही हैं, ज़मीन की दरों में छूट दी जा रही है और बिजली बिलों पर सब्सिडी का लाभ मिल रहा है। इन सभी उपायों का उद्देश्य छोटे शहरों को भी बड़े व्यापारिक केंद्रों की तरह विकसित करना है ताकि निवेशक बिना किसी बाधा के अपना व्यवसाय शुरू और संचालित कर सकें।
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अच्छा वातावरण
सरकार ने छोटे शहरों में निजी कंपनियों की भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिए एक बेहतर तैयार किया है। इसके अंतर्गत पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) मॉडल को बढ़ावा दिया गया है, जहां भुवनेश्वर और पुणे जैसे स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट्स में प्राइवेट इन्वेस्टर्स की सक्रिय भागीदारी देखी जा रही है। इसके साथ ही सरकार ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स (GCC) खोलने के इच्छुक निजी निवेशकों को भूमि, बिजली और इंटरनेट जैसी सुविधाओं पर सब्सिडी भी प्रदान कर रही है, जिससे उनका ऑपरेशनल खर्च घटे और वे छोटे शहरों में टिकाऊ ढंग से काम कर सकें।
इसके अलावा, Cluster Development Programme के तहत सरकार ने छोटे शहरों में विशेष क्षेत्रीय औद्योगिक क्लस्टर्स विकसित करने की पहल की है। उदाहरण के तौर पर, सूरत में टेक्सटाइल इंडस्ट्री के लिए और लुधियाना में स्पोर्ट्स गुड्स के लिए विशेष क्लस्टर्स बनाए गए हैं, जिनमें टेक्नोलॉजी इनोवेशन हब भी शामिल हैं। इन क्लस्टर्स के ज़रिए कंपनियों को एक साझा इकोसिस्टम, बेहतर सप्लाई चेन और प्रशिक्षित लोगों को उपलब्ध कराया जा रहा है, जिससे उत्पादन की दक्षता और गुणवत्ता दोनों में सुधार हो रहा है। ये पहलें छोटे शहरों को देश की आर्थिक शक्ति में योगदान देने वाले नए औद्योगिक केंद्रों में बदल रही हैं।
सुविधाओं तक पहुंच
किसी भी शहर का सतत विकास केवल उद्योगों की उपस्थिति से नहीं होता, बल्कि वहां रहने वाले नागरिकों की जीवन गुणवत्ता भी उतनी ही महत्वपूर्ण होती है। यही कारण है कि सरकार ने छोटे शहरों में भी शिक्षा, स्वास्थ्य और नागरिक सुविधाओं को मजबूत करने की दिशा में काफी प्रयास किए हैं।
शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं: अब प्रमुख शिक्षण संस्थान जैसे एम्स (AIIMS), आईआईटी (IIT) और आईआईएम (IIM) केवल महानगरों तक सीमित नहीं हैं। रायपुर, जोधपुर, तिरुचिरापल्ली और अमृतसर जैसे Tier-2 शहरों में भी इनकी स्थापना हो चुकी है, जिससे स्थानीय युवाओं को गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा की सुविधा अपने ही राज्य में मिलने लगी है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में आयुष्मान भारत योजना के माध्यम से ग्रामीण और अर्द्ध-शहरी क्षेत्रों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को आधुनिक बनाया गया है। इससे न केवल इलाज की पहुंच बढ़ी है, बल्कि बड़ी आबादी को सस्ती और सुलभ स्वास्थ्य सेवाएं भी मिल रही हैं।
इसके अलावा सरकार की स्मार्ट सिटी योजना में 100 शहरों को चुना गया है, जिनमें से लगभग 80% Tier-2 और Tier-3 श्रेणी के शहर हैं। इन शहरों में बुनियादी सुविधाओं को स्मार्ट बनाया जा रहा है — जैसे सीसीटीवी निगरानी प्रणाली, ट्रैफिक मैनेजमेंट सिस्टम, सौर ऊर्जा से चलने वाली स्ट्रीट लाइट्स और ऑनलाइन गवर्नेंस सेवाएं। इससे जीवनशैली के स्तर में उल्लेखनीय सुधार आया है और छोटे शहर भी धीरे-धीरे तकनीकी रूप से सशक्त होते जा रहे हैं।
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आज जब भारत ग्लोबल टेक्नोलॉजी और मैन्युफैक्चरिंग हब बनने की दिशा में बढ़ रहा है, तब छोटे शहर ही उसकी रीढ़ साबित हो सकते हैं। ऐसे में सरकार ने छोटे शहरों को केवल आर्थिक दृष्टिकोण से ही नहीं, बल्कि समग्र विकास मॉडल के तहत विकसित किया है। यही कारण है कि अब GCC, IT कंपनियां, स्टार्टअप्स और MSMEs महानगरों से निकलकर छोटे शहरों में निवेश कर रहे हैं। इस बदलाव के केंद्र में सरकारी पहल, मजबूत नीति, स्किलिंग, इन्फ्रास्ट्रक्चर और स्थानीय प्रशासन की डिजिटल समझ है।
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