हाथ के बजाय कांटे, छुरी और चम्मच से खाना खाने की शुरुआत कहां से हुई?
विशेष
• NOIDA 03 Jul 2025, (अपडेटेड 03 Jul 2025, 1:19 PM IST)
भारत में ज्यादातर लोग हाथ से ही खाना खाते हैं। कई देशों के लोग कांटे, छुरी और चम्मच की मदद से खाना खाते हैं। क्या आप जानते हैं कि इसकी शुरुआत कैसे हुई?

कांटे से खाना खाता एक शख्स, Photo Credit: Freepik
अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर के मेयर उम्मीदवार ज़ोहरान ममदानी के एक वायरल वीडियो क्लिप पर खूब बवाल मचा हुआ है। इस क्लिप में वह हाथ से खाना खा रहे थे। अमेरिकी सांसद ब्रैंडन गिल ने इस पर सवाल उठाए और बोले कि अमेरिका में सिविलाइज़्ड लोग ऐसे नहीं खाते। ब्रैंडन गिल ने यह तक कह दिया कि अगर आप वेस्टर्न कस्टम्स नहीं अपना सकते तो थर्ड वर्ल्ड में वापस चले जाओ।
बस फिर क्या था, सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई। लोगों ने गिल की इंडियन ओरिजिन पत्नी डेनिएल डी'सूज़ा गिल और उनके ससुर दिनेश डी'सूज़ा की तस्वीरें निकाल दीं, जिनमें वे खुद हाथ से खाना खाते दिख रहे थे। अब सवाल यह है कि क्या सच में हाथ से खाना खाना अन-सिविलाइज़्ड है? या फिर कटलरी (cutlery) का इस्तेमाल करना ही सभ्यता की निशानी है? उससे भी दिलचस्प सवाल यह है कि हम भारतीय हाथ से खाना क्यों खाते हैं और अंग्रेज़ों ने कांटे-चम्मच से खाना क्यों शुरू किया?
बात बस इतनी सी है। जब आप खाते हैं तो सिर्फ़ जुबान से टेस्ट नहीं करते। खाना देखना भी होता है, उसे सूंघना भी होता है, छूना भी होता है और कई बार उसका कुरकुरापन सुनना भी होता है। सोचिए, अगर आप गर्म पकौड़े खा रहे हैं। क्या कांटे से पता चलेगा कि पकौड़े कितने गर्म हैं? नहीं ना। हाथ से आपको तुरंत पता चल जाता है कि यह खाने लायक है या अभी रुकना पड़ेगा। यह सब इंद्रियों का खेल है।
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भारत में और साउथ एशियन कल्चर में यह बात बहुत आम है। यहां हाथ से खाना सदियों से चला आ रहा है। आपने देखा होगा, जब भी हम खाने बैठते हैं तो पहले हाथ धोते हैं। खूब अच्छे से। यह सिर्फ़ सफाई नहीं, एक तरह का रेवरेंस है यानी खाने के लिए आदर। हमारा मानना है कि आपके अपने धुले हुए हाथ से बेहतर कोई कटलरी हो ही नहीं सकती। क्यों किसी ऐसे कांटे-चम्मच पर भरोसा करें, जो न जाने कितने मुंह में गया हो?
हाथ से खाने में एक इंटिमेसी होती है, एक जुड़ाव होता है खाने के साथ। आप खाने के टेक्सचर को महसूस करते हैं, उसकी कंसिस्टेंसी को समझते हैं। यह सब कांटे-चम्मच से नहीं हो पाता। तो फिर यूरोप में ये कांटे-चम्मच कहां से आए?
कैसे हुई कांटे और चम्मच से खाने की शुरुआत?
बात शुरू होती है यूरोप से, जहां शुरुआती दौर में हाथ से ही खाना खाया जाता था। वह इसलिए कि यूरोप में तब खाना बहुत बेसिक होता था। ब्रेड, स्टू या शोरबे जैसी चीज़ें। चाकू से ब्रेड काटी और फिर हाथ से ही ब्रेड के टुकड़े किए और खा लिया। चम्मच भी थे पर वे बस सूप या लिक्विडचीज़ें खाने के लिए। इसके अलावा चाकू का इस्तेमाल भी ज़रूर होता था। चाकू, दरअसल हंटर गैदरर यानी आदि मानव युग से ही मनुष्य के सबसे पुराने और महत्वपूर्ण टूल्स में से एक रहे हैं। वे भोजन को तोड़ने और खाने में आसान बनाने के लिए इस्तेमाल किए जाते थे। शुरुआत में ये नुकीले पत्थर या हड्डी से बने होते थे लेकिन धातु विज्ञान के विकास के साथ, लोहे और फिर स्टील के चाकू अस्तित्व में आए, जो अधिक तेज़ और टिकाऊ थे। यूरोप में, चाकू हमेशा से मेज़ का एक अनिवार्य हिस्सा रहे। मध्ययुगीन काल में हर व्यक्ति अपनी पर्सनल चाकू अपने साथ रखता था, जिसे भोजन काटने और अपनी सुरक्षा, दोनों के लिए इस्तेमाल किया जा सकता था। ये चाकू आदमी की पहचान और प्रेस्टीज का सिंबल हुआ करते थे।
अब आप पूछेंगे, कांटे का क्या? तो कांटा बहुत बाद में आया और उसके आने की वजह थी पानी की कमी और साफ़-सफ़ाई का उतना ध्यान न रखा जाना। जहां भारत में खाने से पहले और बाद में हाथ धोना एक रिवाज़ था, वहीं यूरोप में ऐसा नहीं था तो हाथ गंदे होने के चलते, कांटे का इस्तेमाल शुरू हुआ। भारत में कांटे का इस्तेमाल ना होने की एक बड़ी वजह यह भी रही की हमारा खाना उस तरह का नहीं था जिसे कांटे से खाया जा सके।
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कांटे के इस्तेमाल का सबसे पहला ज़िक्र इटली में मिलता है और इसका कनेक्शन सीधे पास्ता खाने की सुविधा से था। मध्य युग तक मैकरोनी और वर्मीसेली यानी सिवैंया, जो पास्ता का ही एक रूप हैं, इनका ट्रेंड इटली में सेट हो चुका था। शुरू में लंबे नूडल टाइप पास्ता को एक लंबी लकड़ी की स्टिक से खाया जाता था लेकिन अगर पास्ता को घुमाने के लिए एक कांटा अच्छा था तो दो बेहतर थे और तीन सबसे बेस्ट। पास्ता और कांटे एक-दूसरे के लिए ही बने लगते थे। पास्ता खाने के लिए कांटों की यूटिलिटी समझ आने के बाद, इटली के लोगों ने उन्हें बाकी फ़ूड के लिए भी इस्तेमाल करना शुरू कर दिया।
बाक़ी यूरोप में भी कांटे के आगमन से जुड़ी दिलचस्प कहानियां हैं। कहते हैं कि 1637 में, फ़्रांस के किंग लुई XIII के सलाहकार ने एक डिनर में एक गेस्ट को दोधारी चाकू की नुकीली नोक से दांत साफ़ करते देखा। इस चीज़ से वे सलाहकार इतने डर गए कि उन्होंने अपने सभी चाकूओं को ब्लंट करने का आदेश दे दिया। जिससे एक नया फ़ैशन शुरू हुआ। उस टाइम तक, खाने के चाकू दोनों साइड से शार्प किए जाते थे लेकिन 1669 में अगले राजा, लुई XIV (पन्द्रहवें) ने फ़्रांस में नुकीले खाने के चाकू बनाने पर बैन (लगा दिया।
अब यहां से 19वीं सदी आते आते -चार मुंह वाला कांटा और मोटा टेबल नाइफ़ पश्चिमी दुनिया में खाना खाने के मुख्य औजार बन गए। इसके बाद मछली खाने का कांटा और बटर नाइफ़ भी आ गए। यह सब शुरुआत में सहूलियत या प्रैक्टिकैलिटी के चलते था। पानी की कमी या कई बार सर्द मौसम के चलते हाथ धोने की संस्कृति नहीं बनी थी इसलिए चाकू कांटे जैसे औजार इस्तेमाल हुए लेकिन फिर आया उपनिवेशवाद, जिसने इन सामान्य चीजों को सुपीरियरटी का सिम्बल बना दिया।
बाकी देशों में कैसे शुरू हुआ चलन?
जब अंग्रेज और बाकी यूरोपियन शक्तियों ने दुनिया के बाकी हिस्सों पर कब्जा करना शुरू किया तो उन्होंने अपने खाने के तरीकों को 'सभ्य' बताना शुरू कर दिया और जो लोग हाथ से खाते थे, उन्हें 'जंगली' या 'असभ्य' कहा जाने लगा। यह एक तरह से अपनी सुपीरियरिटी दिखाने का तरीका था। इस सुपीरियरिटी का नशा कहिए कि आज भी अंग्रेज़ों को भी यही लगता है कि चम्मच कांटा सभ्यता का प्रतीक है और यह बात सिर्फ़ गोरे ही नहीं भूरे अंग्रेज़ों के भी मान्य है कि कांटा चम्मच खाने का बेहतर तरीका है जबकि भारतीय भोजन को देखा जाए तो हमें तो कटलरी की ज़रूरत ही नहीं थी। हमारा खाना मसालेदार, ग्रेवी वाला होता था, जिसे हाथ से ही अच्छे से मिलाया और खाया जा सकता था और हां, खाने से पहले और बाद में हाथ धोने का हमारा सिस्टम इतना सॉलिड था कि किसी कांटे-चम्मच की ज़रूरत ही नहीं पड़ी। 'क्यों किसी ऐसे कांटे पर भरोसा करें, जो न जाने किसके मुंह में गया हो, जब आपका अपना धुला हुआ हाथ है?' यह सोच थी हमारी।
एक और नोट करने वाली बात।
जब एशिया में मसालों और चावल की बहार थी, यूरोप में लोग बस ब्रेड और स्टू ही खाते थे इसलिए उन्हें कटलरी की ज़्यादा ज़रूरत महसूस हुई। दिक्कत असल में कटलरी की नहीं है। भारत में हम हाथ से खाना खाते हैं लेकिन पश्चिम के अलावा कई देश हैं जो हाथ से खाना नहीं खाते। चीन और जापान जैसे देशों में चॉपस्टिक का चलन है। उसमें सभ्यता असभ्यता वाली बहस नहीं है क्योंकि बात सिर्फ़ प्रैक्टिकैलिटी और आदत की है। अब नूडल को हाथ से ही थोड़े खाएंगे। उसके लिए चॉपस्टिक या कांटा जरूरी है। उसी तरह बर्गर पिज़्ज़ा, फ्रेंच फ़्राइज़ ये सब वेस्ट की देन हैं लेकिन इन्हें हाथ से खाया जाना चाहिए। बात कांटे चम्मच , चॉपस्टिक या हाथ से खाने की है ही नहीं। जिसे जैसा अच्छा लगे जैसे सहूलियत महसूस करे, वैसे खाए लेकिन एक को सभ्य दूसरे को असभ्य बताना- यह सही बात नहीं है।
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