डिफॉल्ट के बाद बैंक का विलय हो तो पैसे मिलेंगे या नहीं, क्या हैं नियम?
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• DELHI 02 Aug 2025, (अपडेटेड 02 Aug 2025, 8:13 PM IST)
न्यू-इंडिया को-ऑपरेटिव बैंक के सारस्वत बैंक में मर्जर के बाद यह सवाल उठता है कि क्या ग्राहकों के पैसे मिलेंगे या नहीं। साथ ही जानिए कि इसको लेकर आरबीआई के नियम क्या हैं?

प्रतीकात्मक तस्वीर । Photo Credit: AI Generated
भारत में बैंकिंग प्रणाली आम नागरिकों के लिए सिर्फ लेन-देन का जरिया नहीं, बल्कि उनकी जीवनभर की मेहनत की कमाई और वित्तीय सुरक्षा का भरोसा भी है। ऐसे में जब कोई बैंक डिफॉल्टर या दिवालिया घोषित होता है, तो सबसे पहले खाताधारकों को यही चिंता सताती है—क्या उनकी जमा पूंजी सुरक्षित है? क्या उन्हें उनका पूरा पैसा वापस मिलेगा या नहीं? यह डर तब और गहरा हो जाता है जब बैंक पर आरबीआई द्वारा प्रतिबंध लगाए जाते हैं और निकासी की सीमा तय कर दी जाती है। लेकिन ऐसे संकटपूर्ण समय में यदि कमजोर बैंक को किसी मजबूत बैंक के साथ मर्ज कर दिया जाए, तो वह न केवल खाताधारकों के लिए राहत का कारण बनता है, बल्कि बैंकिंग प्रणाली में विश्वास को भी मजबूती देता है।
हाल ही में मुंबई स्थित न्यू इंडिया को-ऑपरेटिव बैंक लिमिटेड (NICB) के खाताधारकों के लिए भी कुछ ऐसा ही अनुभव रहा होगा जब भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने इसकी बिगड़ती वित्तीय हालत को देखते हुए इसका विलय सारस्वत को-ऑपरेटिव बैंक के साथ करने की मंजूरी दे दी। यह निर्णय ऐसे समय में आया जब NICB पर पहले ही कई तरह की रेग्युलेटरी पाबंदियां लग चुकी थीं और खाताधारकों को अपने ही पैसे निकालने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा था। RBI के इस निर्णय ने यह सुनिश्चित किया कि किसी भी खाताधारक की जमा राशि डूबे नहीं और बैंकिंग सेवाएं सामान्य रूप से बहाल रहें।
इस लेख में खबरगांव इसी बात की पड़ताल करेगा कि आखिर किसी बैंक का विलय होने के बाद ग्राहकों के ऊपर क्या प्रभाव पड़ता है और बारे में आरबीआई के नियम क्या हैं?
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क्या होगा पैसे का?
न्यू इंडिया को-ऑपरेटिव बैंक की वित्तीय स्थिति खराब होने के बाद 2022 में आरबीआई ने बैंक पर ₹5,000 तक निकासी की सीमा लगा दी थी, जिससे ग्राहकों में डर और असमंजस फैल गया था। इस संकट का स्थायी समाधान निकालने के लिए RBI ने बैंक के परिसमापन (liquidation) की बजाय उसे एक मजबूत बैंक में मर्ज करने का रास्ता चुना। इस विलय से खाताधारकों को कई लाभ होंगे। सबसे पहली और बड़ी राहत यह है कि उनकी जमा राशि पूरी तरह सुरक्षित हो गई है। अब उन्हें DICGC बीमा के ₹5 लाख की सीमा तक सीमित नहीं रहना पड़ेगा। सारस्वत बैंक ने सभी जमा राशि की जिम्मेदारी ली है, चाहे वह ₹5 लाख से कम हो या ज्यादा। उदाहरण के लिए, यदि किसी ग्राहक के NICB बैंक में ₹10 लाख जमा थे और वह सारस्वत बैंक में मर्ज हो गया, तो ग्राहक को पूरे ₹10 लाख मिलेंगे क्योंकि अब सारी देनदारी सारस्वत बैंक की है।
दूसरा लाभ यह है कि खाताधारक अब सामान्य बैंकिंग सेवाएं—जैसे नकद निकासी, चेक सुविधा, एटीएम, नेट बैंकिंग, मोबाइल ऐप और UPI आदि—का प्रयोग कर पाएंगे, जो पहले बंद या सीमित थी। जिन ग्राहकों ने NICB से कर्ज ले रखा था, उनके ऋण अब सारस्वत बैंक द्वारा संचालित किए जाएंगे।
मर्जर के बाद, ग्राहकों का खाता नए बैंक में ट्रांसफर कर दिया जाता है दिया जाता है जिसकी वजह से IFSC कोड वगैरह में बदलाव हो सकते हैं। कभी-कभी ग्राहक को बैंकिंग सेवाएं शुरू होने तक कुछ दिन इंतजार करना पड़ सकता है, लेकिन उसके पैसे पूरी तरह सुरक्षित रहते हैं।
सारस्वत बैंक ही क्यों?
न्यू इंडिया को-ऑपरेटिव बैंक (NICB) की कमजोर होती वित्तीय स्थिति को देखते हुए भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के के लिए एक ऐसा बैंक जरूरी था जो वित्तीय रूप से मजबूत हो, सहकारी बैंकिंग ढांचे को समझता हो और जिसमें मर्जर को सफलतापूर्वक संभालने की क्षमता हो। इन सभी मानकों पर सारस्वत को-ऑपरेटिव बैंक खरा उतरता है।
सारस्वत बैंक भारत का काफी बड़ा अर्बन को-ऑपरेटिव बैंक है। यह बैंक न केवल पूंजीगत रूप से मजबूत है, बल्कि इसका Capital to Risk Weighted Asset Ratio (CRAR) और NPA स्तर भी नियंत्रित दायरे में है। बैंक की क्रेडिट रेटिंग अच्छी है, डिजिटल बैंकिंग सुविधाएं व्यापक हैं और इसका संचालन मुंबई समेत कई बड़े शहरों में फैला हुआ है। सारस्वत बैंक पहले से ही को-ऑपरेटिव सेक्टर की बारीकियों को समझता है, जिससे NICB के ग्राहकों, कर्मचारियों और सिस्टम को सहजता से अपनाया जा सकता है।
कैसे पता लगे कि बैंक खतरे में है
किसी बैंक की वित्तीय सेहत के बारे यह जानने के लिए कि वह खतरे में है या डिफॉल्ट की ओर बढ़ रहा है। सबसे पहले इस बात पर ध्यान देना जरूरी है कि बैंक की बैलेंस शीट में लगातार घाटा तो नहीं हो रहा है और यह भी ध्यान देने की जरूरत है कि उसका एनपीए (Non-Performing Assets) तो नहीं बढ़ रहा है। जब बैंक के कर्ज समय पर वापस नहीं आते और डूबने लगते हैं, तो बैंक की आय और पूंजी पर असर पड़ता है।
साथ ही, अगर बैंक का Capital to Risk Weighted Asset Ratio (CRAR) 9% से नीचे चला जाए, तो समझ लेना चाहिए कि बैंक की पूंजी पर्याप्त नहीं है और वह जोखिम में है। इसके अलावा, अगर किसी बैंक की क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों द्वारा रेटिंग घटाई जा रही है या ऑडिट रिपोर्ट में गड़बड़ियां पाई जाती हैं, तो यह भी खतरे का संकेत हो सकता है। मीडिया में आने वाली खबरें, सोशल मीडिया पर ग्राहकों की शिकायतें, शाखाओं में लंबी कतारें या बैंक की सेवाओं में बाधाएं वगैरह भी इस बात का संकेत देते हैं कि बैंक संकट में है। ऐसे में खाताधारकों को सतर्क हो जाना चाहिए।
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पूर्व में कब-कब हुआ?
इससे पहले PMC बैंक (Punjab & Maharashtra Co‑operative Bank) को 2022 में यूनिटी स्मॉल फाइनेंस बैंक (Unity Small Finance Bank) में विलय किया गया था। PMC बैंक पर HDIL समूह से जुड़े धोखाधड़ी के कारण संकट था। दूसरा उदाहरण लक्ष्मी विलास बैंक (Lakshmi Vilas Bank) का है, जिसे अपने वित्तीय खामियों के कारण नवंबर 2020 में DBS Bank India में विलय कर दिया गया। इससे ग्राहकों को पूरी जमा राशि सुरक्षित रूप से मिल गई और बैंकिंग गतिविधियां निर्बाध रूप से जारी रहीं।
तीसरा केस था United Western Bank का, जो 2021 में बचे हुए ऋणों के संकट के कारण IDBI Bank में मर्ज किया गया। इसी तरह से 2020 में यस बैंक गंभीर संकट में पहुंच गया था, जब उसके कर्ज डूबने लगे और उसका मैनेजमेंट अस्थिर हो गया। RBI ने तत्काल कदम उठाते हुए स्टेट बैंक ऑफ इंडिया और अन्य बैंकों की मदद से यस बैंक को पुनर्जीवित किया। खाताधारकों की जमा राशि पूरी तरह सुरक्षित रही और कुछ ही दिनों में सामान्य बैंकिंग सेवाएं फिर से शुरू हो गईं।
RBI ने 2020 में Banking Regulation (Amendment) Act, 2020 लागू किया, जिसके द्वारा सभी शहरी और मल्टी‑स्टेट को‑ऑपरेटिव बैंक सीधे RBI की निगरानी में आ गए, जिससे नियामकीय ढांचे में एकरूपता आई और संकटग्रस्त बैंकों को समय रहते नियंत्रित करना आसान हुआ।
क्या हैं RBI के नियम?
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) भारत में बैंकों के संचालन, निगरानी और नियंत्रण के लिए सर्वोच्च नियामक संस्था है। जब कोई बैंक डिफॉल्ट की स्थिति में पहुंचता है या उसकी वित्तीय स्थिति कमजोर हो जाती है, तो RBI के पास उसे नियंत्रित करने और बचाने के लिए कई अधिकार और प्रक्रियाएं होती हैं, जो मुख्य रूप से बैंकिंग रेग्युलेशन एक्ट, 1949 और Banking Regulation (Amendment) Act, 2020 के तहत लागू होती हैं। RBI किसी संकटग्रस्त बैंक पर डायरेक्शन (Direction) जारी कर सकता है, जिसके तहत बैंक से पैसे निकालने की अधिकतम सीमा तय की जाती है, नए ऋण रोक दिए जाते हैं और प्रबंधन पर नियंत्रण सख्त कर दिया जाता है।
यदि बैंक की हालत में सुधार नहीं होता, तो RBI दो रास्तों पर विचार करता है—या तो बैंक को लिक्विडेट (बंद) कर दिया जाए, या फिर किसी मजबूत और स्थिर बैंक के साथ उसका मर्जर किया जाए। RBI मर्जर को प्राथमिकता देता है, क्योंकि इससे खाताधारकों की पूरी जमा राशि सुरक्षित रहती है, जबकि लिक्विडेशन की स्थिति में केवल ₹5 लाख तक की ही बीमा (DICGC) मिलती है। मर्जर के लिए RBI स्वयं पहल कर सकता है या कमजोर बैंक द्वारा प्रस्तावित योजना को समीक्षा कर मंजूरी दे सकता है।
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को-ऑपरेटिव बैंकों के लिए 2020 में संशोधित कानून के बाद, अब RBI को सीधे इन बैंकों को नियंत्रित करने, निदेशक मंडल को हटाने, प्रशासक नियुक्त करने और पुनर्गठन योजना लागू करने का अधिकार मिल गया है। मर्जर के दौरान RBI यह सुनिश्चित करता है कि अधिग्रहण करने वाला बैंक पूंजीगत रूप से मजबूत हो, उसकी NPA स्थिति नियंत्रित हो, और वह तकनीकी और संरचनात्मक रूप से नए खातों और परिसंपत्तियों को संभालने में सक्षम हो।
RBI द्वारा अनुमोदित मर्जर के बाद संबंधित सरकार (यदि को-ऑपरेटिव बैंक है तो राज्य सरकार भी) और खाताधारकों को इसकी सूचना दी जाती है। यह प्रक्रिया पारदर्शी और ग्राहकों के हितों की रक्षा के लिए बनाई गई है, जिससे वित्तीय स्थिरता बनी रहे और बैंकिंग व्यवस्था में जनता का विश्वास डिगे नहीं।
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