111 एनकाउंटर करने वाले प्रदीप शर्मा खुद कैसे फंस गए? पढ़िए पूरी कहानी
विशेष
• MUMBAI 20 Jun 2025, (अपडेटेड 20 Jun 2025, 1:07 PM IST)
प्रदीप शर्मा का नाम एनकाउंटर स्पेशलिस्ट के तौर पर मशहूर रहा है। कभी वह दाऊद इब्राहिम के करीबी को पकड़ने की वजह से चर्चा में आए तो कभी एनकाउंटर की वजह से। पढ़िए उनकी पूरी कहानी।

प्रदीप शर्मा की कहानी
अस्सी का दशक। मुंबई की माहिम की भीड़भाड़ वाली गलियां। यहां रिक्रूटमेंट एजेंटों का धंधा खूब फल-फूल रहा था, जो मिडिल ईस्ट में अच्छी नौकरियों का झांसा देकर भोले-भाले युवाओं से लाखों ठगते थे। जब ये ठगे गए युवा अपने पैसे वापस मांगने आते तो उनका सामना होता था पठान गैंग के एक खूंखार गुर्गे, सरमस्त खान से। ख़ान हमेशा अपने साथ दो इंपोर्टेड रिवॉल्वर लेकर घूमता था। उसका आतंक ऐसा था कि कोई उससे भिड़ने या पुलिस में शिकायत करने की हिम्मत तक नहीं करता था लेकिन एक युवा सब-इंस्पेक्टर की नजरें उस पर पड़ चुकी थीं।
एक मुखबिर से सरमस्त खान के बारे में पता चलने पर इस अफसर ने उसे सबक सिखाने की ठान ली। एक दोपहर, अफसर एक कांस्टेबल के साथ उस रिक्रूटमेंट एजेंट के ऑफिस पहुंचा जहां सरमस्त खान मौजूद था। उसने दरवाजे पर खड़े उस डील-डौल वाले पठान से पूछा, 'क्या तुम सरमस्त खान हो?' खान ने अकड़कर जवाब दिया, 'हां, तो क्या?' यह जवाब अफसर को नागवार गुजरा। इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता, अफसर का हाथ बिजली की तेजी से सरमस्त खान की कमर की तरफ बढ़ा और उसकी बेल्ट में खुंसी दो रिवॉल्वरों में से एक खींच निकाली और सरमस्त खान के मुंह में ठूस दी। आगे जो हुआ, उसके चर्चे आज तक माहिम में होते हैं।
कुछ देर घूरने के बाद अफसर ने सरमस्त खान से कहा, 'बहुत मस्ती है ना तेरे अंदर? चल, निकालता हूं।' इसके बाद अफसर ने उसका कॉलर पकड़ा और उसे बिल्डिंग से बाहर खींचकर भीड़भाड़ वाली सड़क पर ले आया। फौरन यह खबर आग की तरह फैल गई और लोग यह तमाशा देखने के लिए जमा होने लगे। पुलिस जीप में डालने के बजाय, अफसर पसीने से तरबतर खान को उसी की रिवॉल्वर मुंह में डाले हुए लगभग आधा किलोमीटर दूर पुलिस स्टेशन तक पैदल ले गया। उनके पीछे-पीछे खुश होती हुई भीड़ का एक जुलूस चल रहा था।
यह भी पढ़ें- अंग्रेजों ने टीपू सुल्तान को कैसे मारा था? पढ़िए आखिरी दिनों की कहानी
इस कार्रवाई को अंजाम देने वाले पुलिस अफ़सर का नाम था - प्रदीप शर्मा। एनकाउंटर स्पेशलिस्ट - 100 से ज़्यादा एनकाउंटर्स को अंजाम देने वाले ऑफिसर प्रदीप शर्मा से कभी मुंबई का पूरा अंडरवर्ल्ड कांपता था लेकिन फिर सितारे गर्दिश में आ गए।
कैसे अर्श से फर्श तक पहुंचे प्रदीप शर्मा? कैसे बने वह मुंबई के सबसे चर्चित एनकाउंटर स्पेशलिस्ट और आखिर क्यों देश के सबसे बड़े उद्योगपति मुकेश अंबानी के घर के बाहर मिले बम कांड में उनका नाम जुड़ा? आज पढ़िए मुंबई पुलिस के सबसे चर्चित और विवादास्पद अफसरों में से एक, प्रदीप शर्मा की पूरी कहानी।
माहिम और शुरुआती जिंदगी
प्रदीप शर्मा की परवरिश महाराष्ट्र के धुले में हुई थी, जहां उनके पिता कॉलेज में प्रोफेसर थे। शर्मा ने बहुत कम उम्र में ही पुलिस अफसर बनने का सपना देख लिया था। उनके इस फैसले पर उनके पिता के पेशे और उनके रोबदार व्यक्तित्व का भी खासा असर था। प्रोफेसर रामेश्वर शर्मा की दिनचर्या बेहद सख्त और नपी-तुली थी, सुबह 7 बजे कॉलेज जाना, 11 बजे लौटना, फिर आराम, शाम की चाय, और रात 9.30 बजे तक सो जाना। प्रदीप शर्मा को यह बंधा-बंधाया जीवन कभी रास नहीं आया। उनके मन में बगावत के सुर शायद यहीं से पनपने लगे थे।
यह भी पढ़ें- ईद-उल-अजहा: आखिर कैसे हुई बकरीद और कुर्बानी की शुरुआत?
दूसरा बड़ा प्रभाव उनके पड़ोसी पुलिस अफसर दिलीप पगार का था, जिनकी खाकी वर्दी और काले चश्मे वाली छवि में उन्हें हिंदी फिल्मों का ग्लैमर दिखता था। शर्मा ने अपने पिता को बताए बगैर कॉलेज के चुनाव भी लड़े। अपने M.Sc. के पहले साल में यूनिवर्सिटी रिप्रेजेंटेटिव का चुनाव जीतने के लिए उन्होंने एक अनोखी तरकीब अपनाई। बाहरी छात्रों को वोटिंग से एक रात पहले फिल्म दिखाई और फिर उन्हें एक फार्महाउस पर ले जाकर पार्टी दी, ताकि वे वोटिंग में हिस्सा न ले सकें और प्रदीप शर्मा आसानी से चुनाव जीत गए।
पुलिस में आने का फैसला भी उनके पिता की इच्छा के विरुद्ध था। उनके पिता का मानना था कि वर्दी पहनने वाले सबसे बड़े गुंडे होते हैं। कई महीनों की मान-मनौव्वल के बाद आखिरकार परिवार उनके फैसले के आगे झुका। शर्मा ने महाराष्ट्र लोक सेवा आयोग की PSI की परीक्षा पहले ही प्रयास में पास कर ली।
1 मार्च 1983 को प्रदीप शर्मा ने नासिक के पुलिस ट्रेनिंग कॉलेज (PTC) में कदम रखा, जिसे अब महाराष्ट्र पुलिस अकादमी (MPA) के नाम से जाना जाता है। यह वही मशहूर '83 बैच' था जिसने मुंबई पुलिस को कई नामी-गिरामी ‘एनकाउंटर स्पेशलिस्ट’ दिए, जिनमें विजय सालस्कर, प्रफुल भोसले और रवींद्र आंग्रे जैसे नाम शामिल थे। उस वक्त PTC के प्रिंसिपल थे अरविंद इनामदार, एक बेहद काबिल और सख्त IPS अफसर, जिन्हें इस बैच को तराशने का श्रेय दिया जाता है। इनामदार नियमों के पक्के थे और शरारतों के लिए उनके पास कोई रियायत नहीं थी। यहीं शर्मा की दोस्ती विजय सालस्कर से हुई। दोनों ही नियमों को ताक पर रखने के आदी थे लेकिन सजा के तौर पर घंटों परेड ग्राउंड में मार्च करने के बावजूद उनका हौसला पस्त नहीं होता था। क्लास में टॉप करने में उनकी कोई खास दिलचस्पी नहीं थी लेकिन फायरिंग रेंज में दोनों का निशाना अचूक था और यह उनकी पसंदीदा जगह थी।
कहां थी पहली पोस्टिंग?
प्रदीप शर्मा की पहली पोस्टिंग मुंबई के एयरपोर्ट पुलिस स्टेशन में हुई, जो उनके लिए बड़ी निराशाजनक थी। एक ऐसा शहर जो अपराध की दुनिया में उबल रहा था, वहां एयरपोर्ट पर बैठना शर्मा को गंवारा नहीं था। उन्होंने हिम्मत करके तत्कालीन पुलिस कमिश्नर जूलियो रिबेरो से मुलाकात की और अपनी इच्छा जाहिर की कि वह ऑर्गनाइज्ड क्राइम हैंडल करना चाहते हैं। रिबेरो ने उनकी बात सुनी और कुछ ही दिनों में उनका तबादला माहिम पुलिस स्टेशन कर दिया गया। माहिम में उनकी मुलाकात हुई सीनियर PI इस्माइल राजगुरू से।
यह भी पढ़ें- ओसामा बिन लादेन के आखिरी दिनों की पूरी कहानी क्या है?
'क्लास ऑफ 83' में हुसैन जैदी लिखते हैं, 'इस्माइल राजगुरू ने शर्मा को बहुत कुछ सिखाया और अपना खबरी नेटवर्क बनाने की पूरी आजादी दी।' माहिम, जो कि माहिम दरगाह की वजह से सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील इलाका माना जाता था, वहां किसी भी पुलिसवाले के लिए जमीन पर अपनी आंखें और कान यानी मुखबिरों का जाल बिछाना सबसे पहली प्राथमिकता होती है। प्रदीप शर्मा ने अपनी शुरुआत जेबकतरों पर नकेल कसने से की। इलाके के सभी पुराने हिस्ट्रीशीटरों को उठाया गया। शर्मा अपनी पहचान बनाने लगे। वह हर रात अपनी डायरी में गिरफ्तार लोगों, उनके साथियों, उनके काम करने के तरीकों और ऑपरेशन के इलाकों का विस्तृत ब्यौरा लिखते थे। उनकी इस डायरी का खौफ माहिम के जेबकतरों में ऐसा बैठा कि वे उसका नाम सुनकर कांपने लगते थे। कुछ ही महीनों में उन्होंने 60-70 जेबकतरों को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया था। धीरे-धीरे यही जेबकतरे उनके मुखबिर बनने लगे और शर्मा का वह खबरी नेटवर्क तैयार होने लगा जो आगे चलकर उनकी सबसे बड़ी ताकत बना।
माहिम में ही प्रदीप शर्मा ने अपना पहला बड़ा कारनामा किया। सरमस्त ख़ान, जिसका क़िस्सा जो हमने शुरुआत में सुनाया था, उसे गिरफ्तार कर प्रदीप शर्मा ने ना सिर्फ़ माहिम बल्कि शहर के दूसरे हिस्सों में भी मशहूर कर दिया। खान एक बड़ी मछली था; पुलिस ने उससे 4-5 इंपोर्टेड रिवॉल्वर बरामद कीं, जो उन दिनों बड़ी बात थी। उसके खिलाफ विभिन्न पुलिस स्टेशनों में 18-20 मामले दर्ज थे।
प्रदीप शर्मा और विजय सालस्कर की दोस्ती
प्रदीप शर्मा की कहानी में दिलचस्प प्रसंग है, विजय सालस्कर से दोस्ती का। दोनों की जोड़ी PTC नासिक से ही बन गई थी। दोनों की पटरी खूब बैठती थी, खासकर फायरिंग रेंज में। मुंबई में पोस्टिंग के बाद भी उनका मिलना-जुलना लगा रहता था। ऐसी ही एक मुलाकात में सालस्कर अपने एक बैचमेट पूजारा को शर्मा के पास लेकर आए। पूजारा बड़ी मुसीबत में थे; गश्त के दौरान एक ऑटो रिक्शा में सरकारी गोलियों का एक डिब्बा छूट गया था। प्रदीप शर्मा ने बात सुनी और शाम तक गोलियां बरामद करके दे दीं, हालांकि कहा जाता है कि उन्होंने गायब गोलियों की जगह नई गोलियां खरीदकर दी थीं।
यह भी पढ़ें- इस्लाम vs ईसाइयत: सलादीन ने कैसे जीत लिया था येरुशलम?
नब्बे का दशक मुंबई पुलिस के लिए चुनौतीपूर्ण था। दाऊद इब्राहिम दुबई से अपना साम्राज्य फैला रहा था। अरुण गवली और अमर नाइक जैसे गैंगस्टर शहर पर अपनी पकड़ बनाने के लिए खून-खराबा कर रहे थे। 1992 में, प्रदीप शर्मा और सालस्कर की जोड़ी क्राइम ब्रांच की यूनिट VII, बांद्रा में तैनात हुई। दोनों ही अपने खबरी नेटवर्क की अहमियत समझते थे और उसे मजबूत करने में कोई कसर नहीं छोड़ते थे।
इसी दौरान उनका सामना हुआ माकड़वाला भाइयों, गणेश और सुभाष कुंजीकोरवे से। ये दोनों भाई डी-कंपनी के शार्पशूटर थे और विक्रोली के एक बार में AK-56 राइफल लेकर खुलेआम घूमते थे। उनका आतंक पूरे शहर में फैला हुआ था। सालस्कर को उनकी एक नीली मारुति 800 कार के बारे में खुफिया जानकारी मिली, जो इलाके में अक्सर देखी जाती थी। प्रदीप शर्मा और सालस्कर ने जाल बिछाया। कई दिनों की निगरानी के बाद, 6 मई 1993 की शाम, प्रदीप शर्मा को खबर मिली कि वही नीली मारुति उनके मुखबिर के स्टोर के पास से गुजरी है। फौरन पुलिस टीम हरकत में आई। ऊपर से हरी झंडी मिलते ही प्रदीप शर्मा और सालस्कर जीप में सवार हुए। सालस्कर ड्राइविंग कर रहे थे और शर्मा अपनी 9 एमएम कार्बाइन के साथ तैयार थे। अंधेरी गलियों में तेज रफ्तार पीछा शुरू हुआ। सालस्कर ने अपनी जीप से मारुति को टक्कर मारकर एक पेड़ से भिड़ा दिया। इससे पहले कि माकड़वाला भाई संभल पाते, शर्मा ने जीप की विंडशील्ड से फायरिंग शुरू कर दी। सालस्कर और इंस्पेक्टर शंकर कांबले ने भी अपनी पोजीशन ले ली। गोलियों की बौछार में दोनों माकड़वाला भाई और उनका एक साथी चंद्रकांत तलेगांवकर मारे गए। इस ऑपरेशन ने शर्मा और सालस्कर की धाक और मजबूत कर दी।
दुश्मनी में कैसे बदली दोस्ती?
इसके बाद आया श्रीकांत मामा का किस्सा। मामा, दाऊद का एक खास आदमी और कई शूटर्स का सरपरस्त था, जिसने पुलिस कांस्टेबल की हत्या के बाद उसकी लाश को ठोकर भी मारी थी। शर्मा और सालस्कर ने उसकी तलाश तेज कर दी। फरवरी 1993 में, एक मुखबिर ने शर्मा को खबर दी कि मामा गुजरात के भिलाड में एक होटल के बाहर बैठकर मुंबई की नंबर प्लेट वाली ट्रकों से हफ्ता वसूल रहा है। शर्मा और सालस्कर फौरन भिलाड के लिए निकले लेकिन मामा वहां से आधा घंटा पहले ही निकल चुका था। वापसी में रात के अंधेरे और कर्फ्यू के सन्नाटे में, उन्होंने मामा को गोरेगांव में रॉयल चैलेंज होटल के पास देखा। मामा ने पुलिस को देखते ही अपनी बंदूक निकाल ली लेकिन इससे पहले कि वह फायर कर पाता, शर्मा और सालस्कर की गोलियों ने उसे ढेर कर दिया। अगली सुबह, मामा के इलाके, मांजरेकर वाडी के करीब 700-800 लोग शर्मा के घर के बाहर जमा हो गए और 'प्रदीप शर्मा मुर्दाबाद' के नारे लगाने लगे, उन पर मामा की हत्या का आरोप लगाते हुए। शर्मा ने अपनी कार्बाइन उठाई और हवा में एक राउंड फायर कर भीड़ को तितर-बितर कर दिया। शर्मा का अगला पड़ाव एंटी-नारकोटिक्स सेल (ANC) था। यहां भी तमाम रेड्स के बीच शर्मा का नाम चर्चा में रहा।
तमाम सफलताओं के बीच शर्मा की जिंदगी में एक बड़ा बदलाव हुआ। उनके और सालस्कर की दोस्ती में दरार आ गई। शर्मा के ANC में आने के बाद सालस्कर को उम्मीद थी कि उनके पुराने मुखबिरों को प्रदीप शर्मा भी वैसी ही रियायत देंगे जैसी वह देते थे लेकिन शर्मा, विभाग की साख बचाने के दबाव में कोई कोताही नहीं बरतना चाहते थे। जब सालस्कर ने अपने एक मुखबिर के मामले में प्रदीप शर्मा से नरमी बरतने को कहा तो शर्मा ने शुरुआत में तो बात मानी लेकिन बार-बार की सिफारिशों से तंग आकर उन्होंने मना कर दिया। सालस्कर को लगा कि शर्मा कामयाबी के नशे में मगरूर हो गए हैं। यहीं से दोनों के रास्ते अलग हो गए और उनकी तनातनी विभाग से लेकर मीडिया तक चर्चा का विषय बन गई। मुंबई पुलिस हलकों में इन दिनों एक और मुद्दा चर्चा का विषय बना हुआ था।
100 करोड़ क्लब क्या था?
कहा जाता है कि उन दिनों कुछ एनकाउंटर स्पेशलिस्ट पुलिस अफसर अपनी काली कमाई से 100 करोड़ से ज्यादा की संपत्ति बना चुके थे। प्रदीप शर्मा का नाम भी इस क्लब से जोड़ा गया, खासकर लीला केम्पिंस्की होटल की उनकी महंगी सदस्यता को लेकर। असल में, होटल के मालिक कैप्टन सी.पी. कृष्णन नायर को अंडरवर्ल्ड से धमकियां मिल रही थीं और प्रदीप शर्मा ने उनकी मदद की थी। इनाम के तौर पर प्रदीप शर्मा ने पैसे लेने से मना कर दिया और कैप्टन नायर ने उन्हें होटल के क्लब की आजीवन सदस्यता दे दी। यहां शर्मा शहर के बड़े-बड़े उद्योगपतियों से मिलते थे, जिनकी संपत्ति वाकई 100 करोड़ से ज्यादा थी। शायद इसी वजह से यह बात उड़ी कि शर्मा खुद भी '100 करोड़ क्लब' का हिस्सा हैं।
कंधार हाईजैक
प्रदीप शर्मा करियर की शुरुआत से ही अंडरवर्ड से दो-दो हाथ करने की फ़िराक़ में थे। शर्मा और सालस्कर ने अरुण गवली गैंग की कमर तोड़ने की ठानी। प्रदीप शर्मा ने छोटा शकील गैंग को अपना निशाना बनाया। शुरुआत में मामला पुलिस और अपराधी वाला था लेकिन 1997 में हुई एक घटना ने इसे शर्मा के लिए एक पर्सनल मुद्दा बना दिया। हुआ यह कि प्रदीप शर्मा के दोस्त, कुशाल जैन, माहिम में एक छोटे-मोटे साहूकार थे। सितंबर 1997 में उनके ऑफिस में उनकी खून से लथपथ लाश मिली। शर्मा के लिए यह सिर्फ एक और गैंगवार की घटना नहीं थी; जैन उनके दोस्त थे और शायद इसीलिए मारे गए थे क्योंकि वह शर्मा के दोस्त थे। दरअसल, फिल्म प्रोड्यूसर गुलशन कुमार की हत्या के बाद शर्मा ने छोटा शकील गैंग के खिलाफ अभियान छेड़ रखा था। शकील ने शर्मा को डराने के लिए जैन की हत्या करवाई थी लेकिन इसका उल्टा असर हुआ। प्रदीप शर्मा ने अब शकील गैंग के खात्मे को अपनी जिंदगी का मकसद बना लिया।
उन्होंने अपने ऑफिस में एक बड़ा सफेद बोर्ड लगवाया। इस पर शकील गैंग के टॉप गुर्गों, उनके फाइनेंसरों, मददगारों, बिल्डरों, बॉलीवुड प्रोड्यूसरों और हीरा व्यापारियों के नाम लिखे गए। एक अलग कॉलम में शकील के शार्पशूटर्स की लंबी लिस्ट थी। शर्मा ने अपनी टीम को 100 सेकंड की ब्रीफिंग दी: 'बाईं तरफ वाले शकील के मैनेजर और थिंक-टैंक हैं। इन्हें बुक करो, केस चलाओ और लंबे समय के लिए जेल भेजो। दाहिनी तरफ उसके लेफ्टिनेंट और गनमैन हैं। मुझे शक है कि हम इन्हें जिंदा पकड़ पाएंगे। सच कहूं तो मुझे नहीं लगता कि मैं इन्हें जिंदा पकड़ने में दिलचस्पी रखता हूं।' यह छोटा शकील गैंग के खिलाफ एक संगठित पुलिस अफसर द्वारा छेड़ी गई सबसे बड़ी जंग थी। शर्मा का फलसफा सीधा था: 'गले पर वार करो।' नतीजा- शर्मा के करियर में मारे गए 111 लोगों में से करीब 65-70 शकील गैंग के थे और गिरफ्तार किए गए 1111 लोगों में से 800 से ज्यादा दाऊद-शकील गैंग के थे।
शर्मा का ध्यान शकील गैंग से तब हटा जब छोटा राजन गैंग ने उनके दोस्त अमजद खान की सेशंस कोर्ट के बाहर हत्या कर दी। मई 2005 में, शर्मा को एक सस्पेंडेड कांस्टेबल से टिप मिली कि न्हावा शेवा डॉक्स पर ग्रीस के ड्रमों में हथियार छिपाकर लाए गए हैं। यह माल छोटा राजन गैंग के मुकुंद पटेल ने मंगवाया था। शर्मा ने पटेल को गिरफ्तार किया और 'चाबी लगाने' की अपनी खास तकनीक से उससे सच उगलवा लिया। पटेल ने कबूला कि बैंकॉक में राजन के खास संतोष शेट्टी ने आधुनिक हथियार ग्रीस के ड्रमों में पैक किए थे। शर्मा की टीम ने डॉक्स पर छापा मारा और 38 बंदूकें और करीब 1000 कारतूस बरामद किए। यह एक बड़ी कामयाबी थी जिसने शहर को एक बड़े गैंगवार से बचा लिया।
प्रदीप शर्मा के करियर का एक और केस है जिसकी चर्चा जरूरी है। 24 दिसंबर 1999 को इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट IC 814 हाईजैक हुई। प्रदीप शर्मा इस समय मुंबई में क्रिमिनल इंटेलिजेंस यूनिट (CIU) में तैनात थे। अगले कई दिन उन्होंने अंधेरी पुलिस स्टेशन स्थित अपने दफ्तर में ही गुजारे, जहां वह लगातार एक हेडफोन से कान लगाए बैठे थे। शर्मा दिल्ली और पाकिस्तान में बैठे हैंडलर्स के साथ अब्दुल लतीफ नाम के एक शख्स की बातचीत इंटरसेप्ट कर रहे थे। लतीफ कह रहा था, 'प्रोजेक्ट बस खतम हो रहा है।' शर्मा की मुट्ठी भिंच गई; भारत सरकार यात्रियों की जान के बदले मौलाना मसूद अजहर समेत तीन खूंखार आतंकवादियों को छोड़ने पर विचार कर रही थी। एक सुबह, जब शर्मा लतीफ की कॉल सुन रहे थे तो बैकग्राउंड में आती अज़ान और जानवरों – गायों और भैंसों – के रंभाने की आवाज़ ने उनका ध्यान खींचा। अचानक उन्हें एक अहम सुराग मिला: लतीफ का ठिकाना किसी मुस्लिम बहुल इलाके में था, जहां पास में कोई मस्जिद और तबेला था।
कुछ दिन पहले, हाईजैकिंग के तुरंत बाद, प्रदीप शर्मा को हेमंत करकरे का फोन आया था, जो तब रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (R&AW) में थे। करकरे ने शर्मा को एक नंबर दिया। यह नंबर अब्दुल लतीफ का था। करकरे चाहते थे कि शर्मा उसे ढूंढें। फ़ोन टैपिंग में अजान और गायों की आवाज़ सुनाई दी थी। शर्मा ने अपने कांस्टेबलों से पूछा, 'मुंबई में कितनी मस्जिदों के पास गौशाला है?' कुछ घंटों में जवाब मिला – पाँच संभावित इलाके। आखिरकार, फोन की टावर लोकेशन से पता चला कि लतीफ जोगेश्वरी पश्चिम के बेहराम बाग इलाके से कॉल कर रहा था। शर्मा ने तुरंत अपने एक भरोसेमंद मुखबिर सलीम को बेहराम बाग भेजा। सलीम ने पता लगाया कि कुछ संदिग्ध लोग हाल ही में बेहराम बाग की एक चॉल के कमरे में रहने आए हैं।
करकरे ने शर्मा को हरी झंडी देते हुए कहा, 'गिरफ्तारी करो लेकिन अपनी बंदूकें काबू में रखना।' अब्दुल लतीफ जोगेश्वरी स्टेशन पर लोकल ट्रेन का इंतजार कर रहा था, तभी प्रदीप शर्मा ने उसे कॉलर से पकड़ लिया। पूछताछ में लतीफ ने कबूल किया कि वह कंधार साजिश में शामिल था और ISI के लिए काम कर रहा था। बेहराम बाग में उसके साथ रहने वाले बाकी लोग भी ISI एजेंट थे और भी चौंकाने वाली बात यह थी कि बेहराम बाग की उस चॉल के कमरे में भारी मात्रा में हथियार और विस्फोटक रखे हुए थे।
शर्मा अपनी टीम के साथ चुपके से बेहराम बाग में लतीफ के ठिकाने पर पहुंचे। संकरी चॉल में घुसकर वह उस कमरे की खिड़की के पास पहुंचे जहां ISI एजेंट छिपे थे। अंदर का नज़ारा देखकर शर्मा हैरान रह गए – कुर्ता-पायजामा पहने एक आदमी लापरवाही से एक ग्रेनेड हवा में उछालकर पकड़ रहा था। कमरे की तलाशी में IC 814 के अपहरणकर्ताओं की तस्वीरें, AK-56 राइफलें, और अन्य गोला-बारूद बरामद हुए। सबसे खतरनाक खुलासा यह हुआ कि ये ISI एजेंट तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी पर हमले की साजिश रच रहे थे। प्रधानमंत्री जल्द ही मुंबई आने वाले थे और उनके काफिले पर हमला होना था। इसके अलावा, वे गणतंत्र दिवस पर मुंबई और अन्य शहरों में भी धमाकों की योजना बना रहे थे।
दाऊद का भाई
21वीं सदी के पहले दशक तक प्रदीप शर्मा मुंबई के एनकाउंटर स्पेशलिस्ट बन चुके थे। हर तरफ़ चर्चे छाए रहते थे लेकिन इसी दौरान पहली बार प्रदीप शर्मा का नाम विवादों से जुड़ा। 11 नवंबर 2006, डी.एन. नगर पुलिस की एक टीम ने वर्सोवा के नाना-नानी पार्क के बाहर छोटा राजन गैंग के कथित सदस्य रामनारायण गुप्ता उर्फ लखन भैया का एनकाउंटर कर दिया। लखन के भाई और वकील रामप्रसाद गुप्ता ने कमिश्नर ऑफिस में शिकायत दर्ज कराई कि लखन और अनिल भेड़ा नाम के एक व्यक्ति को सुबह वाशी से उठाया गया था और शाम को लखन का फर्जी एनकाउंटर कर दिया गया। शर्मा का कहना था कि जिस सुबह लखन को उठाने का आरोप लगा, उस सुबह वह पुलिस स्टेशन में थे और उन्होंने स्टेशन डायरी में एंट्री भी की थी।
मामले की जांच के लिए डीसीपी के.एम.एम. प्रसन्ना के नेतृत्व में एक एसआईटी बनी। 20 सितंबर 2009 को, एनकाउंटर के तीन साल बाद, एसआईटी ने वर्सोवा पुलिस स्टेशन में एनकाउंटर में शामिल सभी पुलिसवालों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की, जिसमें प्रदीप शर्मा का नाम सोलहवें और आखिरी आरोपी के तौर पर था। शर्मा के लिए यह एक बड़ा झटका था; 111 से ज्यादा एनकाउंटर करने के बावजूद उन पर कभी कोई एफआईआर या कोर्ट केस नहीं हुआ था।
प्रदीप शर्मा को ठाणे सेंट्रल जेल भेज दिया गया। वहां उनकी जान को खतरा था क्योंकि जेल उनके दुश्मनों से भरी पड़ी थी। सुपरिंटेंडेंट योगेश देसाई ने उन्हें मौत की सजा पाए कैदियों के लिए बने अलग बैरक में रखवाया। अपनी साढ़े तीन साल की न्यायिक हिरासत में से करीब ढाई साल शर्मा ने ठाणे सिविल अस्पताल के प्रिजन वॉर्ड में बिताए। इसी दौरान उन्हें खबर मिली कि छोटा राजन ने उनकी हत्या के लिए विकी मल्होत्रा को सुपारी दी है। प्रदीप शर्मा ने अपने नेटवर्क के जरिए मल्होत्रा की तस्वीर और डोजियर मंगवाया, यह जानते हुए कि यह बात मल्होत्रा तक जरूर पहुंचेगी। डरा हुआ मल्होत्रा आखिरकार एक कोर्ट अपीयरेंस के बाद शर्मा से मिला और सलाम ठोका। प्रदीप शर्मा ने उसे कोई भाव नहीं दिया और वह उसी साल जमानत पर रिहा होने के बाद फरार हो गया। आखिरकार, 5 जुलाई 2013 को ट्रायल कोर्ट ने शर्मा को सभी आरोपों से बरी कर दिया जबकि बाकी सभी आरोपी दोषी पाए गए। 13 जुलाई को शर्मा जेल से रिहा हुए। फ़िलहाल के लिए मामला निपट गया लेकिन प्रदीप शर्मा की जिंदगी में मुसीबतों की शुरुआत बस हुई भर थी।
सालस्कर की मौत और प्रदीप शर्मा की वापसी
साल 2008, 26 नवंबर की रात। मुंबई पर आतंकी हमला हुआ। आतंकियों का पीछा करते हुए तीन पुलिसवाले शहीद हुए। इनमें एक विजय सालस्कर भी थे। सालस्कर और प्रदीप शर्मा के बीच पहले जैसे संबंध नहीं रह गए थे लेकिन जब उन्हें सालस्कर की मौत की खबर मिली वह फूट-फूट कर रोए। प्रदीप शर्मा इस समय बर्खास्तगी के कारण घर पर थे। फ़र्ज़ी एनकाउंटर केस में बरी होने के बाद, शर्मा ने बहाली के लिए अपील की। 2017 में उन्हें पुलिस इंस्पेक्टर के तौर पर बहाल कर दिया। बहाली के बाद उनकी पहली पोस्टिंग ठाणे के एंटी एक्सटॉर्शन सेल (AEC) में हुई।
कुछ ही दिनों में शर्मा को एक पुराने और भरोसेमंद मुखबिर का फोन आया। मुखबिर ने बताया कि दाऊद इब्राहिम का भाई इकबाल कासकर ठाणे में वसूली का रैकेट चला रहा है। शर्मा के कान खड़े हो गए। उन्होंने मुखबिर से पुलिस ऑफिसर्स गेस्ट हाउस में मुलाकात की। अगले कुछ दिनों में शर्मा की टीम ने इकबाल के गुर्गों पर नजर रखी और पुष्टि की कि वे इकबाल के संपर्क में हैं।
19 सितंबर 2017 की रात, शर्मा की टीम ने नागपाड़ा में हसीना पारकर के घर पर छापा मारा, जहां इकबाल कासकर रह रहा था। प्रदीप शर्मा और उनकी टीम ने इकबाल के पहरेदारों को काबू में किया और फिर दरवाजा खटखटाया। दरवाजा खुलते ही शर्मा अपनी ग्लॉक पिस्तौल ताने अंदर घुस गए। इकबाल कासकर टीवी पर 'कौन बनेगा करोड़पति' देखते हुए चिकन बिरयानी खा रहा था। प्रदीप शर्मा उसके बगल में सोफे पर बैठ गए और पूछा, 'पहचाना?' इकबाल को गिरफ्तार कर लिया गया और उस पर MCOCA लगा दिया गया।
इसके बाद शर्मा के निशाने पर आया सोनू जालान उर्फ सोनू मलाड उर्फ सोनू बाटला। छोटा कद का बड़ा सट्टेबाज, जो ब्लैकमेलिंग के जरिए टॉप पर पहुंचा था। शर्मा को खबर मिली थी कि जालान ने मुंबई पुलिस के एक एसीपी को ब्लैकमेल किया था।
2018 में जब डोंबिवली एक फ्लैट में छापेमारी के दौरान IPL सट्टेबाजी रैकेट पकड़ा गया। गिरफ्तार सट्टेबाज डींगें हांक रहे हैं कि 'सोनू भाई' उन्हें छुड़ा लेंगे। 29 मई को जब सट्टेबाजों को कोर्ट में पेश किया जा रहा था, सोनू जालान अपनी महंगी गाड़ी से कोर्ट पहुंचा। शर्मा के इशारे पर AEC के अफसरों ने उसे घेर लिया और गिरफ्तार कर लिया। पूछताछ में जालान ने ऐक्टर अरबाज खान समेत कई बड़े नामों का खुलासा किया, जिन्हें वह ब्लैकमेल कर चुका था। इस घटना के लगभग एक साल बाद ही प्रदीप शर्मा ने अपना इस्तीफ़ा सौंप दिया। आगे चुनावी पारी शुरू होनी थी।
13 सितंबर 2019 को प्रदीप शर्मा आधिकारिक तौर पर शिवसेना में शामिल हो गए। उन्होंने पालघर जिले की नालासोपारा विधानसभा सीट से 2019 का महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव लड़ा लेकिन बहुजन विकास अघाड़ी के क्षितिज हितेंद्र ठाकुर से 43,729 वोटों के बड़े अंतर से हार गए। चुनाव के दौरान उन्होंने 56 करोड़ रुपये की संपत्ति घोषित की थी, जिसने काफी ध्यान खींचा था। चुनावी पारी सफल नहीं रही लेकिन प्रदीप शर्मा की जिंदगी नॉर्मल चल रही थी लेकिन फिर इसी बीच उनका नाम एक ऐसे केस में आया जिसने राष्ट्रीय सुर्खियां बनाई।
एंटीलिया बॉम्ब केस
फरवरी 2021, मुंबई। देश के सबसे अमीर उद्योगपतियों में से एक, मुकेश अंबानी के आलीशान घर 'एंटीलिया' के बाहर एक लावारिस स्कॉर्पियो कार मिलती है। यह कोई आम लावारिस गाड़ी नहीं थी। कार के अंदर से जिलेटिन की छड़ें, यानी विस्फोटक और एक धमकी भरा खत बरामद होता है। इस घटना से मुंबई पुलिस से लेकर दिल्ली तक हड़कंप मच जाता है। शहर के सबसे पॉश इलाके में इतने हाई-प्रोफाइल शख्स के घर के पास विस्फोटक मिलना कोई छोटी बात नहीं थी। फौरन एक हाई-लेवल जांच शुरू होती है। कहानी में ट्विस्ट तब आता है जब कुछ दिनों बाद, 5 मार्च 2021 को ठाणे के एक कारोबारी मनसुख हिरेन की लाश रहस्यमयी हालत में एक खाड़ी से मिलती है। मनसुख हिरेन वही शख्स थे जिन्होंने दावा किया था कि एंटीलिया के बाहर मिली स्कॉर्पियो उनकी थी और कुछ दिन पहले चोरी हो गई थी। हिरेन की मौत ने इस पूरे मामले को और भी उलझा दिया और शक की सुई एक बड़ी साजिश की तरफ घूमने लगी।
शुरुआती जांच महाराष्ट्र एंटी-टेररिज्म स्क्वॉड (ATS) ने की लेकिन जल्द ही मामले को नेशनल इन्वेस्टीगेशन एजेंसी (NIA) को सौंप दिया गया। NIA की जांच जैसे-जैसे आगे बढ़ी, एक ऐसा नाम सामने आने लगा जिसने सबको चौंका दिया- प्रदीप शर्मा। वही प्रदीप शर्मा, जो मुंबई पुलिस के मशहूर 'एनकाउंटर स्पेशलिस्ट' रह चुके थे और कुछ समय पहले ही पुलिस फोर्स से रिटायर होकर सियासत में कदम रख चुके थे।
NIA ने अप्रैल 2021 में प्रदीप शर्मा से कई घंटों तक पूछताछ की। उनके अंधेरी स्थित घर की तलाशी भी ली गई और आखिरकार, 17 जून 2021 को NIA ने प्रदीप शर्मा को गिरफ्तार कर लिया। NIA ने शर्मा पर बेहद गंभीर आरोप लगाए। एजेंसी का कहना था कि प्रदीप शर्मा एक 'सुनियोजित साजिश' का हिस्सा थे, जिसके कथित सरगना बर्खास्त असिस्टेंट पुलिस इंस्पेक्टर सचिन वझे थे। NIA के मुताबिक, इस साजिश का मकसद मनसुख हिरेन की 'कोल्ड ब्लडेड हत्याट करना था। आरोप था कि प्रदीप शर्मा ने सचिन वझे और कुछ दूसरे पुलिसवालों के साथ मिलकर पहले एंटीलिया के पास विस्फोटक भरी गाड़ी खड़ी करने और फिर मनसुख हिरेन को रास्ते से हटाने की साजिश रची क्योंकि हिरेन इस मामले में एक अहम गवाह था और साजिश का भंडाफोड़ कर सकता था।
NIA ने अपनी चार्जशीट में दावा किया कि प्रदीप शर्मा ने हिरेन की हत्या के लिए भाड़े के हत्यारों का इंतजाम किया था और इसके लिए उन्हें सचिन वझे से मोटी रकम मिली थी। शर्मा पर हिरेन की लाश को ठिकाने लगाने में मदद करने का भी आरोप लगा। NIA के अनुसार, शर्मा ने एक सह-आरोपी संतोष शेलार को बेनामी सिम कार्ड और मोबाइल फोन खरीदने का निर्देश दिया था। हिरेन की हत्या के बाद, शेलार ने कथित तौर पर इसी सिम कार्ड से शर्मा को फोन करके बताया कि 'काम हो गया है।'
जांच एजेंसी ने सचिन वझे और प्रदीप शर्मा के बीच हुई कई मुलाकातों का भी जिक्र किया, जो कथित तौर पर मुंबई पुलिस कमिश्नर ऑफिस कंपाउंड और शहर की दूसरी जगहों पर हुई थीं। NIA का तर्क था कि एंटीलिया जैसी संवेदनशील जांच के बीच पूर्व सहकर्मियों की ये मुलाकातें महज इत्तेफाक नहीं थीं, बल्कि 'जानबूझकर की गई कोशिशें' थीं। NIA की विशेष अदालत ने फरवरी 2025 में शर्मा की डिस्चार्ज याचिका पर सुनवाई के दौरान इंटरनेट प्रोटोकॉल डिटेल रिकॉर्ड्स (IPDR) का भी हवाला दिया। जिससे कथित तौर पर पता चलता है कि 17 फरवरी 2021 को वझे और शर्मा एक ही लोकेशन पर मौजूद थे – इसी दिन मनसुख हिरेन की गाड़ी कथित तौर पर लावारिस छोड़ी गई थी। अदालत ने उन बयानों का भी जिक्र किया जिनके मुताबिक वझे ने शर्मा को बड़ी रकम से भरा एक बैग दिया था, जिसका इस्तेमाल बाद में हिरेन की हत्या के सिलसिले में किया गया।
NIA ने प्रदीप शर्मा पर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत कई संगीन आरोप लगाए। एक दिलचस्प पहलू यह भी है कि एंटीलिया के बाहर विस्फोटक भरी गाड़ी खड़ी करने का असली मकसद क्या था, यह पूरी तरह साफ नहीं हो पाया।
प्रदीप शर्मा का क्या कहना था?
प्रदीप शर्मा ने इन सभी आरोपों को बेबुनियाद बताया और खुद को निर्दोष कहा। अगस्त 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने प्रदीप शर्मा को एंटीलिया/हिरेन मामले में जमानत दे दी थी लेकिन फरवरी 2025 में विशेष NIA अदालत ने डिस्चार्ज याचिका खारिज कर दी, अदालत का कहना था कि पहली नजर में यह एक बड़ी साजिश का मामला लगता है। फिलहाल, डिस्चार्ज याचिका खारिज होने के बाद, प्रदीप शर्मा को इस मामले में मुकदमे का सामना करना होगा।
इसी बीच, एक पुराना मामला उनके गले की फांस बन गया। 19 मार्च 2024 को, बॉम्बे हाई कोर्ट ने 2006 के लखन भैया फर्जी एनकाउंटर मामले में उनके 2013 के बरी होने के फैसले को पलट दिया और उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई। हाई कोर्ट ने इसे 'कोल्ड ब्लडेड मर्डर' करार दिया। हालांकि, मई 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें इस मामले में भी जमानत दे दी। अगस्त 2024 में प्रदीप शर्मा ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए लखन भैया मामले में अपनी सजा पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई लेकिन अदालत ने इनकार कर दिया और शर्मा ने अपनी याचिका वापस ले ली। फ़िलहाल दोनों मामले कोर्ट में लंबित हैं। एनकाउंटर स्पेशलिस्ट से मशहूर शर्मा इन दिनों कानूनी पचड़े में फंसे हुए हैं। अंडरवर्ल्ड का दौर गुज़र चुका है और शायद एनकाउंटर स्पेशलिस्ट का भी।
और पढ़ें
Copyright ©️ TIF MULTIMEDIA PRIVATE LIMITED | All Rights Reserved | Developed By TIF Technologies
CONTACT US | PRIVACY POLICY | TERMS OF USE | Sitemap