दुनिया में कुछ ही ऐसे लोग हैं, जिन्होंने संघर्ष, साहस और सफलता की अनोखी मिसाल कायम की है। इसी वजह से इनका नाम हमेशा के लिए जीवंत हो जाता है। ऐसा ही एक नाम है गुलाबो सपेरा। वे न केवल राजस्थान की प्रसिद्ध कालबेलिया डांसर हैं, बल्कि उनकी कहानी समाज की कुरीतियों के खिलाफ एक प्रेरणादायक संदेश भी देती है।
गुलाबो सपेरा की कहानी
गुलाबो सपेरा का जन्म 1973 में राजस्थान के एक छोटे से गांव में हुआ था। उनके जन्म के बाद ही समाज की रूढ़िवादी मानसिकता के कारण उन्हें जिंदा दफनाने की कोशिश की गई, क्योंकि उस समय कई समुदायों में बेटियों को बोझ समझा जाता था। हालांकि, उनकी किस्मत में कई पर लगने वाले। उनकी मां के प्रयासों से वे बच गईं और आगे चलकर अपने नृत्य के जरिए पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हुईं।
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गुलाबो का बचपन कठिनाइयों से भरा था। वे राजस्थान के कालबेलिया समुदाय से थीं, जो पारंपरिक रूप से सपेरा (सांप पकड़ने वाले) होते हैं। इस समुदाय की महिलाएं नृत्य और लोकगीतों के जरिए अपनी संस्कृति को जीवित रखती हैं। गुलाबो ने बचपन से ही इस कला में रुचि ली और अपने समुदाय के पारंपरिक नृत्य को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया।
उनकी कला को पहली बार प्रसिद्धि तब मिली जब उन्हें एक लोक नृत्य प्रतियोगिता में भाग लेने का मौका मिला। उनकी नृत्य शैली इतनी अनूठी थी कि वे राजस्थान के विभिन्न सांस्कृतिक आयोजनों में शामिल होने लगीं।
हालांकि, जब समाज में यह बात फैली तो उन्हें और उनके परिवार को समाज से बाहर कर दिया। धीरे-धीरे उनकी पहचान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी बनी। बता दें कि गुलाबो अब तक 135 देशों में अपनी इस कला का प्रदर्शन कर चुकी हैं। उन्हें कालबेलिया नृत्य को एक नई पहचान देने का श्रेय दिया जाता है, जिसे अब यूनेस्को ने अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर के रूप में भी मान्यता दी है।
गुलाबो ने भारत के साथ-साथ अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी और कई अन्य देशों में भी अपने नृत्य का प्रदर्शन किया। उनके लचीले शरीर की गति और सांप जैसी मुद्राएं लोगों को मंत्रमुग्ध कर देती थीं। उनके योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया।
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उनका जीवन सिर्फ एक कलाकार का ही नहीं, बल्कि एक संघर्षशील महिला की कहानी भी है। उन्होंने समाज की परंपरागत सोच को बदलने का काम किया और यह साबित किया कि प्रतिभा किसी जाति, वर्ग या लिंग की मोहताज नहीं होती।