भारत-पाक बॉर्डर पर कैसे शुरू हुई बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी? इतिहास जानिए
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• AMRITSAR 21 May 2025, (अपडेटेड 21 May 2025, 1:08 PM IST)
भारत के अलग-अलग हिस्सों के लोग भारत-पाकिस्तान के अटारी-वाघा बॉर्डर पर बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी देखने जाते हैं। क्या आप जानते हैं कि इसकी शुरुआत कैसे हुई थी?

अटारी बॉर्डर पर बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी का दृश्य, Photo Credit: PTI
भारत-पाकिस्तान के अटारी-वाघा बॉर्डर पर होने वाली बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी को ऑपरेशन सिन्दूर के तुरंत बाद अनिश्चितकाल के लिए सस्पेंड कर दिया गया था। अब उसे फिर से शुरू कर दिया गया है। मंगलवार को कुछ बदलावों के साथ बीटिंग रिट्रीट का आयोजन किया गया। अटारी-वाघा के अलावा हुसैनीवाला और सादकी बॉर्डर पर भी यह कार्यक्रम हुआ और आम जनता के लिए भी इसे खेला गया। इसे लेकर कई तरह की बातें भी कही जा रही हैं और एक वर्ग मांग भी कर रहा है कि इसे बंद ही कर देना चाहिए।
सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) ने पिछले महीने पहलगाम आतंकी हमले के बाद रिट्रीट समारोह को 'स्केल डाउन' कर दिया था। BSF ने 8 मई को सार्वजनिक सुरक्षा का हवाला देते हुए इन तीन जगहों पर बीटिंग रिट्रीट कार्यक्रम के लिए पब्लिक एंट्री को रोक दिया था। ऑपरेशन सिंदूर शुरू होने के एक दिन बाद यह निर्णय लिया गया, जिसके तहत भारत ने पाकिस्तान और (POK) पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में नौ आतंकवादी ठिकानों को नष्ट कर दिया था।
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भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के कारण 12 दिनों के सस्पेंशन के बाद, बीटिंग रिट्रीट समारोह मंगलवार (20 मई) को पंजाब के अमृतसर में अटारी-वाघा सीमा और फिरोजपुर में हुसैनीवाला सीमा पर फिर से शुरू होने वाला है। हालांकि समारोह फिर से शुरू होगा, लेकिन यह भारतीय सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) और पाकिस्तान रेंजर्स के बीच customary सिंबॉलिक हैण्डशेक के बिना होगा। मतलब ये कि बीएसएफ के जवान पाकिस्तान रेंजर्स से हाथ नहीं मिलाएंगे। साथ ही, इस दौरान दोनों देशों के बीच के गेट्स भी बंद रहेंगे - जो पारंपरिक समारोह के दौरान खोले जाते थे।
क्या है बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी?
बीटिंग रिट्रीट समारोह एक डेली इवेंट है जिसे भारत (सीमा सुरक्षा बल) और पाकिस्तान (पाकिस्तान रेंजर्स) के सुरक्षा बल 1959 से एकसाथ मनाते आ रहे हैं। इसे देखने, लोग बड़ी तादात में वाघा-अटारी बॉर्डर पर आते हैं। हर शाम होने वाली यह रिट्रीट एक हाई एनर्जी और उत्साहपूर्ण इवेंट के रूप में जानी जाती है। इसमें भारतीय गार्ड कमांडर और उनके पाकिस्तानी काउंटरपार्ट्स के बीच प्रतीकात्मक तौर पर हाथ मिलाना शामिल है। इसके साथ ही, पाकिस्तान के वाघा के सामने अटारी (अमृतसर जिला) में, गंदा सिंहवाला के पार फिरोजपुर जिले के हुसैनीवाला और फाजिल्का जिले के सादकी में स्थित जॉइंट चेक पोस्ट्स पर पाकिस्तान रेंजर्स के साथ तालमेल बैठाते हुए हर शाम बीएसएफ के जवान भारतीय झंडे को उतारते हैं।
इतिहास क्या है?
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बीटिंग रिट्रीट का आयोजन 16वीं सदी के इंग्लैंड में शुरू हुआ, जहां यह मूल रूप से एक मिलिट्री सिग्नल था जिसका इस्तेमाल पेट्रोलिंग यूनिट्स को सूर्यास्त के समय उनके महल या शिविर में वापस बुलाने के लिए किया जाता था। ब्रिटिश सेना दिन की लड़ाई के अंत और झंडे को नीचे करने का संकेत देने के लिए बिगुल, ड्रम और बैगपाइप बजाती थी। स्वतंत्रता के बाद, भारत ने इस परंपरा को ब्रिटिश काल से अपनी औपचारिक विरासत के रूप में बरकरार रखा।
अब आते हैं उस फेमस बीटिंग रिट्रीट पर, जिसके बारे में हम बार कर रहे थे। इस समारोह की शुरुआत ब्रिगेडियर मोहिंदर सिंह चोपड़ा, जो बाद में मेजर जनरल हुए और ब्रिगेडियर नजीर अहमद ने 11अक्टूबर 1947 को की थी। इसे तीन ड्रम, ग्रैंड ट्रंक रोड पर एक चाक लाइन और एक चेक पोस्ट से चिह्नित किया गया था। दोनों तरफ कुछ टेंट लगाए गए थे, हर देश के राष्ट्रीय रंगों में रंगे दो सेन्ट्री बॉक्स थे - आसान भाषा में समझें तो सेन्ट्री बॉक्स, पहरेदारी केबिन को कहते हैं। साथ ही, शरणार्थियों के लिए ट्रैफिक को रेगुलेट करने के लिए एक गेट था। दोनों तरफ दो फ्लैग मास्ट्स भी लगाए गए थे और इस ऐतिहासिक घटना को दर्ज करने के लिए एक पीतल की प्लेट लगाई गई थी, जिसमें झंडों के नीचे दोनों के नाम थे।
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आपको यह भी बताते चलें, ब्रिगेडियर नजीर और ब्रिगेडियर चोपड़ा दोनों आर्मी में साथ ही थे, अच्छे दोस्त भी थे लेकिन बंटवारे के बाद एक-दूसरे के आमने-सामने खड़े हो गए। यह समारोह अटारी-वाघा सीमा पर होता है, जो ग्रैंड ट्रंक रोड का हिस्सा है। 1999 में कश्मीर में अमन सेतु के खुलने से पहले, अटारी-वाघा भारत-पाक के बीच एकमात्र रोड लिंक था। इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बीटिंग रिट्रीट ‘बॉर्डर’ समारोह कहा जाता है।
यह समारोह हर शाम सूर्यास्त से ठीक पहले दोनों पक्षों के सैनिकों द्वारा धमाकेदार परेड के साथ शुरू होता है और दोनों देशों के झंडों को पूरी तरह से समन्वित तरीके से नीचे उतारने के साथ समाप्त होता है। परंपरागत तौर पर समझें तो गेट के दोनों ओर एक-एक पैदल सैनिक सावधान/अटेंशन की मुद्रा में खड़ा होता है। जैसे ही सूरज डूबता है, सीमा पर लगे लोहे के गेट खोल दिए जाते हैं और दोनों झंडों को एक साथ नीचे कर दिया जाता है। फिर झंडों को मोड़ दिया जाता है और समारोह एक रिट्रीट के साथ समाप्त होता है जिसमें दोनों ओर के सैनिक हाथ मिलाते हैं, उसके बाद फिर से गेट बंद कर दिए जाते हैं।
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यह सेरेमनी, बॉर्डर के दोनों ओर से आने वाले लोगों के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों को भी आकर्षित करती है। 2010 में समारोह को दोनों पक्षों द्वारा कम एग्रेसिव बना दिया गया; समारोह में अब हाथ मिलाना और मुस्कुराना शामिल है। अक्टूबर 2010 में, पाकिस्तान रेंजर्स के मेजर जनरल याकूब अली खान ने फैसला किया कि इस समारोह के आक्रामक पहलू को कम किया जाना चाहिए। इस समारोह के लिए सैनिकों को विशेष रूप से नियुक्त और प्रशिक्षित किया जाता है। आपको फिर बताते चलें, ऑपरेशन सिन्दूर के बाद अब जो रिट्रीट शुरू हुई है, उसमें हाथ मिलाना और गेट खोलना शामिल नहीं होगा।
क्यों रोकी गई थी बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी?
जम्मू और कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को आतंकवादी हमला हुआ। जिसमें 26 लोगों की जान चली गई थी, जिनमें ज्यादातर पर्यटक थे। इस हमले के बाद बीएसएफ ने 24 अप्रैल को बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी को स्केल डाउन कर दिया था यानी पाकिस्तान के फौजी से हाथ मिलाने की रस्म और वाघा बॉर्डर का गेट खोलने की रस्म को बंद कर दिया गया। पाकिस्तान स्थित लश्कर-ए-तैयबा की शाखा माने जाने वाले रेजिस्टेंस फ्रंट ने शुरू में हमले की जिम्मेदारी ली थी लेकिन बाद में अपने बयान से मुकर गया और पहले के संदेश के लिए साइबर हमले को जिम्मेदार ठहराया। जवाब में, भारत ने 7 मई को ऑपरेशन सिंदूर शुरू किया। जिसमें पाकिस्तान और POK में आतंकवादी समूहों से जुड़े नौ स्थानों को निशाना बनाया गया। इस ऑपरेशन के कारण दोनों देशों के बीच तनाव काफी बढ़ गया।
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इसी के चलते, 8 मई को समारोह पूरी तरह से रोक दिया गया क्योंकि ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत-पाकिस्तान संघर्ष जारी रहा। BSF ने सार्वजनिक सुरक्षा के मद्देनजर तीन स्थानों- अटारी, हुसैनीवाला और सादकी- पर इस कार्यक्रम के लिए पब्लिक एंट्री को रोक दिया। पीटीआई ने अधिकारियों के हवाले से कहा कि भले ही पब्लिक की एंट्री बंद थी लेकिन 8 मई से BSF के जवान हर दिन झंडा उतार रहे थे।
इस फैसले से क्यों नाखुश हैं लोग?
भारत-पाकिस्तान सीमा पर चल रहे सैन्य तनाव के बीच बीटिंग रिट्रीट समारोह को फिर से शुरू करने के फैसले की, मिलिट्री दिग्गजों और पब्लिक पर्सनैलिटी ने तीखी आलोचना की है। पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल केजेएस ढिल्लों ने इस कदम को अनुचित बताया, खासकर तब जब ऑपरेशन सिंदूर अभी भी चल रहा है। उन्होंने अपने X हैंडल पर लिखा, "ऑपरेशन सिंदूर अभी भी चल रहा है, इसलिए इसके लिए (बीटिंग रिट्रीट समारोह की) कोई जगह नहीं है। यह शांति के समय के समारोह हैं, संघर्ष के बीच के नहीं। उम्मीद है कि कोई सुन रहा होगा?"
इसी तरह की चिंताओं को दोहराते हुए, पूर्व एयर मार्शल संजीव कपूर ने कहा कि सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के फैसले का समय और दृष्टिकोण संदिग्ध थे। उन्होंने आगे कहा, "अमृतसर, फिरोजपुर और फाज़िलका में बीएसएफ द्वारा पाकिस्तान सीमा पर आयोजित बीटिंग रिट्रीट समारोह आज से फिर से शुरू होगा। पर्यटकों के लाभ के लिए आधिकारिक कारण, समय, दृष्टिकोण और संदेश, एक अच्छा निर्णय नहीं है। अभी भी सेना की तैनाती के साथ, यह सामान्य स्थिति नहीं है।"
पूर्व इंफोसिस सीएफओ मोहनदास पई ने एक कदम आगे बढ़कर सरकार से समारोह को पूरी तरह से बंद करने का आग्रह किया। पई ने लिखा, "प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सर कृपया इसे खत्म कर दीजिए। हम एक आतंकवादी देश को इतना भाव क्यों दे रहे हैं? राजनाथ सिंह, हमें इस आतंकवादी देश के साथ सभी तरह के संबंधों को कम करना चाहिए।"
2025 से पहले भी हुए हैं बवाल
2 नवंबर 2014 को अटारी-वाघा सीमा के पाकिस्तान की तरफ एक सुसाइड बॉम्बर ने समारोह समाप्त होने के बाद शाम को क्रॉसिंग पॉइंट से 600 मीटर (2,000 फीट) दूर अपनी बनियान में 25 किलोग्राम विस्फोटर को उड़ा लिया था। इस आत्मघाती हमले में लगभग 60 लोग मारे गए थे और कम से कम 110 लोग घायल हो गए थे।
साल 2016, 29 सितंबर- उरी हमले के जवाब में भारतीय सेना ने सीमा पार सर्जिकल स्ट्राइक्स की थीं। भारत-पाकिस्तान मिलिट्री टकराव के बाद, बॉर्डर क्लोजिंग सेरेमनी जारी रही लेकिन भारतीय पक्ष ने 29 सितंबर और 8 अक्टूबर 2016 के बीच की शाम को पब्लिक अटेंडेंस रोक दी थी।
बढ़ते तनाव के संकेत के रूप में, बीएसएफ ने उस साल दिवाली पर पाकिस्तानी रेंजर्स को दिवाली की शुभकामनाएं और मिठाइयां नहीं दी थीं। 2019 में जम्मू और कश्मीर में एलओसी पर युद्धविराम उल्लंघन की बढ़ती घटनाओं के कारण भारत ने इस परंपरा को छोड़ने का फैसला किया था। फिर आई वैश्विक महामारी - COVID! मार्च 2020 के पहले हफ्ते में कोविड-19 महामारी के कारण समारोह को दर्शकों के लिए बंद कर दिया गया था।
बीटिंग रिट्रीट से चलता है लोगों का घर
इस समारोह में सीमा के दोनों ओर से बहुत से पर्यटक आते हैं। साथ ही अंतर्राष्ट्रीय पर्यटक भी आते हैं। पर्यटकों की यह आमद, स्थानीय निवासियों को हॉस्पिटैलिटी, परिवहन माने ट्रांसपोर्टेशन और खुदरा जैसे क्षेत्रों में रोजगार के मौके प्रदान करती है। बीटिंग रिट्रीट शुरू होने से बॉर्डर के पास स्थित अटारी गांव और अन्य गांवों में रहने वालों के लिए बड़ी राहत लेकर आई है, जिनकी आजीविका बीटिंग रिट्रीट समारोह के दौरान इसे देखने के आने वाले पर्यटकों और व्यापार पर निर्भर थी। सूत्रों के मुताबिक, स्थानीय ड्राइवर्स, जिनकी आजीविका अटारी में पर्यटकों के आवागमन पर निर्भर करती है, ने सुरक्षा चिंताओं के कारण सस्पेंशन के बाद समारोह के फिर से शुरू होने पर राहत की सांस ली है।
वाघा-अटारी बॉर्डर पर बीटिंग रिट्रीट समारोह एक महत्वपूर्ण इवेंट है जो भारत और पाकिस्तान के बीच जटिल संबंधों को दर्शाता भी है और साथ ही परस्पर नॉर्मेलसी बनाए रखने की वजह भी जान पड़ता है। हालांकि, स्थानीय लोगों की इससे कमाई भी होती है और पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र भी बनता है लेकिन इसे आलोचना और सुरक्षा चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता है। इस सब के बीच इस तथ्य को नकारा नहीं जा सकता कि बीटिंग रिट्रीट समारोह का भविष्य परंपरा, कूटनीति और सेफ्टी कंसर्न्स के बीच संतुलन पर निर्भर करता है।
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