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F-22 जेट में ऐसी क्या खूबी है कि अमेरिका इसे बेचता ही नहीं?

हथियार और फाइटर जेट बेचकर खूब पैसे कमाने वाला अमेरिका अपने F-22 रैप्टर विमान को किसी को भी नहीं देता है। कई देशों ने इच्छा भी जताई लेकिन अमेरिका ने हमेशा इनकार कर दिया।

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F-22 की कहानी, Photo Credit: Khabargaon

साल था 1991, कैलिफ़ोर्निया के एडवर्ड्स एयरफ़ोर्स बेस के ऊपर का आसमान एक अनदेखे मुकाबले का गवाह बन रहा था। एक तरफ था अमेरिकी वायुसेना का उस वक़्त का सबसे खतरनाक लड़ाकू विमान, F-15 ईगल। दूसरी तरफ था एक नया, अनदेखा, YF-22, यह सिर्फ़ एक आम हवाई अभ्यास नहीं था। यह लड़ाई तय करने वाली थी की आसमान का बादशाह कौन होगा। F-15 ईगल, जिसने कई जंगों में अपना लोहा मनवाया था, आज एक ऐसे प्रतिद्वंद्वी के सामने था जो कागज़ पर उससे कहीं ज़्यादा उन्नत होने का दावा कर रहा था। अभ्यास के नियम तय थे। F-15 को YF-22 को ढूंढना और उसे 'मार गिराना' था।

 

YF-22 का मकसद था F-15 की नज़रों से बचते हुए उसे 'खत्म' करना। घंटों तक F-15 का पायलट आसमान छानता रहा, अपने अत्याधुनिक रडार से दुश्मन को तलाशता रहा लेकिन YF-22 मानो हवा में घुल गया था और फिर अचानक, F-15 के वॉर्निंग सिस्टम्स चीख उठे। इससे पहले कि पायलट कुछ समझ पाता, उसे सिग्नल मिला कि उसे 'मार' गिराया गया है। हमलावर? वही YF-22, जो न जाने कब और कैसे F-15 के ठीक पीछे आ गया था, बिना पकड़े गए। स्टीव पेस अपनी किताब 'F-22 Raptor: America's Next Lethal War Machine' में बताते हैं कि इस अभ्यास के असल नतीजे तो आज भी गोपनीय हैं लेकिन F-22 के मुख्य टेस्ट पायलट पॉल मेट्ज़ के शब्दों में, 'रैप्टर के पंजे दो, चार, या दस F-15 से भी ज़्यादा घातक हैं। यह इतना बढ़िया जहाज़ है।'

 

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यह वह पहला इशारा था कि दुनिया एक नए हवाई युग में कदम रखने वाली थी। एक ऐसा युग, जिसका शहंशाह बनने वाला था F-22 रैप्टर। आज जानेंगे लॉकहीड मार्टिन के F-22 रैप्टर की कहानी, अमेरिका का फाइटर जेट, जिसे और किसी देश को नहीं बेचा जाता।  

एक नए शिकारी की ज़रूरत

 

1970 और 80 का दशक। शीत युद्ध अपने चरम पर था। अमेरिका और सोवियत संघ के बीच तनाव आसमान छू रहा था। आसमान में बादशाहत कायम करने की होड़ मची हुई थी। अमेरिकी वायुसेना के पास F-15 ईगल जैसा शानदार लड़ाकू विमान था। तेज़ी, फुर्ती और मारक क्षमता के में F-15 का कोई सानी नहीं था। इसने कई सालों तक अमेरिकी वायुसेना को दुनिया के हर कोने में हवाई दबदबा कायम रखने में मदद की लेकिन दुनिया तेज़ी से बदल रही थी। सोवियत संघ नए और ज़्यादा खतरनाक लड़ाकू विमान बना रहा था। खुफ़िया रिपोर्टों से पता चल रहा था कि सोवियत संघ के सुखोई Su-27 'फ्लैंकर' और मिकोयान MiG-29 'फल्क्रम' जैसे विमान अमेरिकी F-15 के लिए गंभीर चुनौती पेश कर सकते थे। इतना ही नहीं, सोवियत संघ सतह से हवा में मार करने वाली S-300 जैसी आधुनिक मिसाइल प्रणालियां भी विकसित कर रहा था, जो किसी भी गैर-स्टेल्थ विमान के लिए घातक साबित हो सकती थीं। भारत में इन दिनों जिस S400 का बोलबाला है, वह S300 का ही वंशज है।

 

 

खैर, अमेरिकी रणनीतिकारों को यह एहसास होने लगा था कि F-15 ईगल, जो उस वक़्त दुनिया का सबसे बेहतरीन लड़ाकू विमान माना जाता था, भविष्य की चुनौतियों का सामना करने के लिए शायद काफ़ी न हो। उन्हें एक ऐसे विमान की ज़रूरत थी जो न सिर्फ़ मौजूदा बल्कि आने वाली पीढ़ी के खतरों से भी निपट सके। एक ऐसा विमान जो दुश्मन के इलाके में गहराई तक जाकर, दुश्मन के रडार और मिसाइलों को चकमा देकर, हवाई क्षेत्र पर पूरी तरह से अपना कब्ज़ा जमा सके।

 

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यहीं से शुरुआत हुई एडवांस्ड टैक्टिकल फाइटर यानी ATF प्रोग्राम की। जिसका मक़सद था एक ऐसा लड़ाकू विमान बनाना जो हवाई युद्ध के हर पैमाने पर पिछले सभी विमानों को मीलों पीछे छोड़ दे। स्टीव पेस अपनी किताब 'F-22 Raptor: America's Next Lethal War Machine' में ज़िक्र करते हैं कि ATF प्रोग्राम का उद्देश्य सिर्फ F-15 को बदलना नहीं था, बल्कि एक ऐसी हवाई ताकत बनना था जो अगले कई दशकों तक अमेरिका का दबदबा कायम रख सके।

ATF प्रोग्राम की शुरुआत

 
एडवांस्ड टैक्टिकल फाइटर (ATF) प्रोग्राम सिर्फ़ एक फाइटर जेट बनाने की परियोजना नहीं थी, यह अमेरिका की बेहतरीन इंजीनियरिंग प्रतिभाओं के बीच एक ज़बरदस्त मुकाबला भी था। वायुसेना ने देश की शीर्ष एयरोस्पेस कंपनियों को चुनौती दी कि वे भविष्य का लड़ाकू विमान डिज़ाइन करें। स्टीव पेस 'F-22 Raptor' में बताते हैं कि सात कंपनियों ने शुरुआती डिज़ाइन पेश किए, जिनमें बोइंग, जनरल डायनेमिक्स, लॉकहीड, नॉर्थरोप और मैकडॉनेल डगलस जैसी दिग्गज कंपनियां शामिल थीं। लंबी और कड़ी प्रक्रिया के बाद, दो टीमों को फाइनल मुकाबले के लिए चुना गया।
 
पहली टीम थी लॉकहीड, बोइंग और जनरल डायनेमिक्स की, जिन्होंने मिलकर YF-22 प्रोटोटाइप तैयार किया। दूसरी टीम थी नॉर्थरोप और मैकडॉनेल डगलस की, जिनका विमान था YF-23। इन दोनों टीमों को दो-दो प्रोटोटाइप विमान बनाने का काम सौंपा गया। एक दिलचस्प बात यह थी कि हर टीम को अपने एक प्रोटोटाइप में प्रैट एंड व्हिटनी का YF119 इंजन लगाना था और दूसरे में जनरल इलेक्ट्रिक का YF120 इंजन। मतलब इंजनों का भी एक अलग मुकाबला चल रहा था।

 

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दोनों विमान, YF-22 और YF-23, अपने-अपने तरीके से क्रांतिकारी थे। YF-23 का डिज़ाइन ज़्यादा अनोखा और फ्यूचरिस्टिक दिखता था। उसकी पतली, लंबी बॉडी और डायमंड शेप वाले विंग्स उसे गज़ब की रफ़्तार और स्टेल्थ क्षमता देने का वादा करते थे। कुछ जानकारों का मानना था कि YF-23 ज़्यादा स्टेल्थी था और शायद रफ़्तार में भी YF-22 से बेहतर था।  दूसरी तरफ, YF-22 का डिज़ाइन थोड़ा पारंपरिक ज़रूर था लेकिन उसमें कुछ ऐसी खासियतें थीं जो उसे मुकाबले में आगे ले गईं। स्टीव पेस के अनुसार, YF-22 की सबसे बड़ी ताकत थी उसकी फुर्ती। यह फुर्ती उसे मिलती थी उसके दो-डायमेंशनल थ्रस्ट-वेक्टरिंग नोज़ल्स से, जो इंजन के एग्ज़ॉस्ट की दिशा को ऊपर-नीचे मोड़ सकते थे। इसका मतलब था कि YF-22 ऐसे करतब कर सकता था जो उस समय के किसी और लड़ाकू विमान के लिए नामुमकिन थे।
 
YF 22 और YF 23 दोनों एयर सुपिरियोरिटी फाइटर थे। एयर सुपिरियोरिटी फाइटर का काम होता है दुश्मन के एयरस्पेस पर कब्ज़ा करना। इसके लिए उन्हें दुश्मन के फाइटर जेट से बेहतर होना होता है। स्पीड के मामले में, मनूवरेबिलिटी के मामले में और हथियारों के मामले में। इन्हें बहुत तेज़ उड़ना होता है और ज़रूरत पड़ने पर बहुत ऊंचाई पर भी। तो आप इन्हें मिलिट्री एविएशन के कटिंग एज की तरह देख सकते हैं। F15 और मिग 29 ऐसे ही फाइटर थे।
  
जिस ज़माने में YF 22 और 23 जैसे प्रोटोटाइप बने, तब हवाई जंग को अलग अलग हिस्सों में देखा जाता था। ग्राउंड अटैक के लिए अलग जेट्स। एयर सुपिरियॉरिटी के लिए अलग जेट्स। आज यह फर्क कम हो गया है। मल्टीरोल जेट्स का बोलबाला है, माने एक ही मशीन को अलग-अलग रोल में यूज़ करना। रैप्टर की कहानी पर लौटते हैं।

 

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YF 22 और YF 23 में एयर सूपिरियॉरिटी रोल के अलावा एक और बात कॉमन थी - स्टेल्थ। वैसे सही टर्म है - LO माने लो ऑब्जर्वेबिलिटी, माने एक ऐसा जहाज़, जिसे पकड़ने में रडार के पसीने छूट जाएं लेकिन LO कम इस्तेमाल होने वाला टर्म है, स्टेल्थ ज़्यादा प्रचलित है। स्टेल्थ को लेकर सबसे बड़ा भ्रम यही है कि स्टेल्थ फाइटर रडार पर नज़र नहीं आते लेकिन यह गलत है। विमान स्टेल्थ हो या न हो, रडार पर दिखता ज़रूर है। उसके इंजन से आवाज़ भी बहुत ज़ोर की ही आती है। फिर किस बात का स्टेल्थ? तो इसके लिए आपको यह समझना होगा कि रडार काम कैसे करता है।

कैसे काम करता है रडार?

 

रडार और हमारी आंख बिलकुल एक जैसे हैं। किसी चीज़ से टकराने वाली रोशनी जब हमारी आंखों की तरफ आती है तब हमें वह चीज़ नज़र आती है। यानी आंखें वास्तव में लाइट का रिफ्लेक्शन पकड़ती हैं। इसी तरह रडार रेडियो वेव का रिफ्लेक्शन पकड़ते हैं। रडार आसमान में रेडियो वेव भेजता है और जब ये वेव किसी जेट या हेलिकॉप्टर से टकराकर वापिस आती हैं, तो उसे रडार का एंटीना पकड़ता है। ऐसे में स्क्रीन पर उसकी एक तस्वीर उभरती है। अब इस तस्वीर को देखकर यह अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि आसामान में क्या उड़ रहा है। जेट है या हेलिकॉप्टर है या कुछ और। वह किस स्पीड पर उड़ रहा है। किस डायरेक्शन में उड़ रहा है और फिर यह जानकारी टार्गेटिंग के लिए इस्तेमाल की जा सकती है। 

 

स्टेल्थ या लो ऑब्ज़र्वेबिलिटी वाले विमान पूरी तरह अदृश्य नहीं होते। बस ये बहुत छोटे नज़र आते हैं क्योंकि स्टेल्थ फाइटर को इस तरह डिज़ाइन किया जाता है कि रेडियो वेव इनसे टकराकर या तो भटक जाएं। या तो सर्फेस ऐसा हो कि रिफ्लेक्शन पैदा न हो, हो तो बहुत कम हो। 


रडार पर उभरने वाली तस्वीर के आकार को कहा जाता है रडार क्रॉस सेक्शन। एक चिड़िया का औसत रडार क्रॉस सेक्शन 0.01 से 0.25 स्क्वेयर मीटर तक होता है। एफ 22 का रडार क्रॉस सेक्शन 0.0001 स्केवयर मीटर से लेकर 0.01 स्केवयर मीटर तक होता है। माने रैप्टर रडार पर दिखता तो है लेकिन या तो यह किसी मच्छर से भी 10 गुना छोटा नज़र आएगा और हद से हद किसी नन्ही सी चिड़िया की तरह होगा। यानी रडार पर नज़र आने के बावजूद यह कभी मालूम नहीं चलेगा कि आसमान में दुनिया का सबसे खतरनाक फाइटर उड़ रहा है, या कोई मच्छर-चिड़िया। मिसाल के लिए, B2 स्पिरिट स्टेल्थ बॉम्बर का विंगस्पैन माने दोनों पंखों के टिप्स के बीच दूरी 52.4 मीटर है। फिर भी इसका रडार क्रॉस सेक्शन 0.1 स्क्वेयर मीटर से कम है तो दुश्मन इसे रडार पर पकड़कर भी ये अंदाज़ा नहीं लगा सकता कि उसके सिर पर एक विशाल बॉम्बर उड़ रहा है, जिसके पास न्यूक्लियर हथियार भी हो सकते हैं।

 

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स्टेल्थ ही वह पक्ष था, जिसके बूते रैप्टर फिफ्थ जनरेशन फाइटर कहलाया क्योंकि यह तकनीक इससे पहले किसी फाइटर जेट में इस्तेमाल नहीं की गई थी। आखिरकार, डेमोंस्ट्रेशन और वैलिडेशन (Dem/Val) फेज में दोनों प्रोटोटाइप्स ने अपनी क्षमताओं का प्रदर्शन किया। YF-22 ने ज़्यादा आक्रामक उड़ानें भरीं, ज़्यादा करतब दिखाए माने ज़्यादा मनूवरेबल साबित हुआ और यहां तक कि AIM-9 साइडविंडर और AIM-120 AMRAAM मिसाइलों का सफल परीक्षण भी किया। YF-23 शायद बाद के लिए ये सब काबिलियत बचाकर रखना चाहता था लेकिन उन्हें मौक़ा मिला ही नहीं। 23 अप्रैल, 1991 का दिन। अमेरिकी वायुसेना के सेक्रेटरी डोनाल्ड राइस ने विजेता की घोषणा की: लॉकहीड की टीम का YF-22। साथ ही, प्रैट एंड व्हिटनी के YF119 इंजन को भी विजेता घोषित किया गया। वायुसेना का मानना था कि YF-22 ने क्षमताओं, लागत और जोखिम के मामले में बेहतर संतुलन पेश किया था। यह वह पल था जब F-22 रैप्टर का रास्ता साफ़ हो गया था।

प्रोटोटाइप से शिकारी तक

 

YF-22 की जीत के बाद असली चुनौती शुरू हुई – प्रोटोटाइप को एक असली, मारक लड़ाकू विमान, F-22A रैप्टर में बदलने से। यह काम, इंजीनियरिंग और मैन्युफैक्चरिंग डेवलपमेंट (EMD) फेज में अगस्त 1991 में शुरू हुआ। स्टीव पेस 'F-22 Raptor' में विस्तार से बताते हैं कि YF-22 और F-22A रैप्टर दिखने में भले ही एक जैसे लगें लेकिन असल में F-22A में कई अहम बदलाव किए गए थे। 

 

सबसे बड़े बदलावों में से एक था विमान के आकार और डिज़ाइन में सुधार। F-22A के पंखों का लीडिंग-एज स्वीप एंगल 48 डिग्री से घटाकर 42 डिग्री कर दिया गया। कॉकपिट को 7 इंच आगे खिसकाया गया ताकि पायलट के लिए विज़िबिलिटी बेहतर हो और इंजन एयर इनलेट्स को 14 इंच पीछे किया गया। वर्टिकल स्टेबलाइज़र्स यानी विमान के पिछले हिस्से में ऊपर की ओर खड़े पंखों का आकार भी करीब 20 प्रतिशत छोटा कर दिया गया। ये बदलाव इसलिए किए गए क्योंकि YF-22 के उड़ान परीक्षणों से पता चला था कि शुरुआती डिज़ाइन में कुछ हिस्से ज़रूरत से ज़्यादा बड़े थे। इन बदलावों से न सिर्फ़ विमान की स्टेल्थ क्षमता बेहतर हुई बल्कि उसके एयरोडायनामिक्स भी सुधरे। 

 

विमान की अंदरूनी संरचना भी पूरी तरह से नई थी, जिसे 8,000 घंटों की कठिन उड़ान ज़िंदगी के लिए डिज़ाइन किया गया था। YF-22 प्रोटोटाइप मुख्य रूप से हवा में उड़ने और इंजन के प्रदर्शन को दिखाने के लिए थे जबकि F-22A को शुरू से ही पूरे सेंसर सिस्टम और हथियारों के साथ इंटीग्रेट करने के लिए डिज़ाइन किया गया था और फिर था F-22 रैप्टर का दिल – उसका इंजन। प्रैट एंड व्हिटनी का F119 इंजन खुद में एक इंजीनियरिंग चमत्कार था। स्टीव पेस बताते हैं कि हर F119 इंजन 35,000 पाउंड से ज़्यादा का थ्रस्ट पैदा कर सकता है। इसकी सबसे बड़ी खासियत थी सुपरक्रूज़ की क्षमता – यानी बिना आफ्टरबर्नर इस्तेमाल किए आवाज़ की रफ़्तार से डेढ़ गुना (Mach 1.5+) से भी ज़्यादा तेज़ी से लगातार उड़ना। आफ्टरबर्नर बहुत ज़्यादा ईंधन खाते हैं और विमान की गर्मी को बढ़ा देते हैं, जिससे दुश्मन के इंफ्रारेड सेंसरों को विमान का पता लगाना आसान हो जाता है। सुपरक्रूज़ ने F-22 को ज़्यादा देर तक, ज़्यादा दूर तक और ज़्यादा चुपके से ऑपरेट करने की काबिलियत दी।
 
F119 इंजन में कई नई तकनीकें इस्तेमाल की गईं, जैसे इंटीग्रली ब्लेडेड रोटर्स (जिसमें डिस्क और ब्लेड एक ही धातु के टुकड़े से बनते हैं), ज़्यादा टिकाऊ कंप्रेसर ब्लेड्स और एक खास किस्म का 'फ्लोटवॉल' कंबस्टर। इन सबके चलते F119 इंजन अपने पिछले इंजनों के मुकाबले 40% कम पुर्ज़ों से बना था और हर पुर्ज़ा ज़्यादा टिकाऊ और कुशल था। हां, इसके टू-डायमेंशनल थ्रस्ट-वेक्टरिंग नोज़ल्स विमान को हवा में कलाबाज़ियां करने की वह आज़ादी देते थे जो पहले कभी नहीं देखी गई थी। ये नोज़ल्स इंजन के थ्रस्ट को 20 डिग्री ऊपर या नीचे मोड़ सकते थे, जिससे F-22 का रोल रेट (पलटने की रफ़्तार) 50% तक बढ़ जाता था। इस तरह, प्रोटोटाइप YF-22 की खूबियों को और निखारकर, उसकी कमियों को दूर करके और नई तकनीकों को जोड़कर F-22A रैप्टर को गढ़ा गया – एक ऐसा शिकारी जो आसमान पर राज करने के लिए ही बना था।

 

F22 की ख़ासियत 

 

F-22 रैप्टर सिर्फ़ एक लड़ाकू विमान नहीं है, यह तकनीकों का एक ऐसा संगम है जो इसे आज भी दुनिया का सबसे खतरनाक हवाई योद्धा बनाता है। इसकी क्षमताओं का लोहा पूरी दुनिया मानती है। 

स्टेल्थ: F-22 की सबसे बड़ी पहचान है इसकी स्टेल्थ तकनीक, यानी दुश्मन के रडार की पकड़ में न आने की क्षमता। जैसा कि स्टीव पेस अपनी किताब 'F-22 Raptor: America's Next Lethal War Machine' में बताते हैं, F-22 के डिज़ाइन का हर पहलू रडार तरंगों को या तो सोखने या फिर उन्हें किसी और दिशा में बिखेरने के लिए बनाया गया है। पंखों के कोण से लेकर सतह पर इस्तेमाल होने वाले खास मटीरियल (Radar-Absorbent Materials या RAM) तक, सब कुछ। विमान के हथियार भी अंदरूनी वेपन-बे में रखे जाते हैं ताकि बाहर कोई ऐसी चीज़ न हो जो रडार सिग्नल को वापस भेज सके। इंजन के एयर इनटेक भी S-आकार के हैं ताकि रडार सीधे इंजन के पंखों तक न पहुंच सके। यहां तक कि कॉकपिट के शीशे पर भी एक खास परत चढ़ी होती है जो रडार तरंगों को अंदर जाने से रोकती है।
 
सुपरक्रूज़: F-22 बिना आफ्टरबर्नर इस्तेमाल किए Mach 1.5 से ज़्यादा की रफ़्तार पर लगातार उड़ सकता है। इसे सुपरक्रूज़ कहते हैं। यह क्षमता F-22 को दुश्मन के इलाके में तेज़ी से घुसने और निकलने, दुश्मन के लड़ाकू विमानों को आसानी से पीछे छोड़ने और अपनी मिसाइलों को ज़्यादा रेंज और ज़्यादा प्रभावी ढंग से लॉन्च करने की काबिलियत देती है।
 
अद्वितीय फुर्ती : थ्रस्ट-वेक्टरिंग नोज़ल्स की बदौलत F-22 हवा में ऐसे करतब दिखा सकता है जो दूसरे विमानों के लिए नामुमकिन हैं। यह बेहद कम रफ़्तार पर भी अपना नियंत्रण बनाए रख सकता है और पलक झपकते ही अपनी दिशा बदल सकता है। यह फुर्ती इसे डॉगफाइट में अपराजेय बनाती है और दुश्मन की मिसाइलों से बचने में भी मदद करती है। YF-22 प्रोटोटाइप ने 60 डिग्री के एंगल ऑफ़ अटैक पर भी नियंत्रण बनाए रखा था, जो इसकी अद्भुत क्षमता का प्रमाण है।
 
एडवांस्ड एवियोनिक्स: F-22 का दिमाग है इसका एडवांस्ड एवियोनिक्स सिस्टम। इसका AN/APG-77 रडार एक ऐक्टिव इलेक्ट्रॉनिकली स्कैन्ड ऐरे (AESA) रडार है, जो एक साथ कई टार्गेट्स को ट्रैक कर सकता है और जिसकी पकड़ से बचना दुश्मन के लिए बहुत मुश्किल होता है। F-22 का एवियोनिक्स सिस्टम इतना उन्नत है कि यह विभिन्न सेंसरों से मिलने वाली जानकारी को मिलाकर पायलट के सामने एक साफ तस्वीर पेश करता है, जिससे पायलट को तुरंत सही फैसला लेने में मदद मिलती है। इसे 'सेंसर फ्यूजन' कहते हैं। F-22 में पायलट को जेट उड़ाने में बहुत कम मेहनत करनी पड़ती है। ज़्यादातर चीज़ें जेट खुद करता है। यहां से पायलट की जो एनर्जी फ्री होती है, वह उसे अपने मिशन पर लगाता है - माने दुश्मन को हिट करना। सेंसर फ्यूज़न के चलते इस पायलट के पास एक बेहतर बैटलफील्ड अवेयरनेस है, उसके पास बाकी जेट्स के पायलट्स से ज़्यादा फोकस और एनर्जी है, एक बढ़िया मैन मशीन कॉम्बो तैयार हो जाता है, जिसमें इंसान और मशीन- दोनों की खूबियां मिली होती हैं।

 

इन क्षमताओं के कारण ही F-22 को 'फर्स्ट-लुक, फर्स्ट-शॉट, फर्स्ट-किल' वाला लड़ाकू विमान कहा जाता है। यानी, यह दुश्मन को देखने, उस पर पहले हमला करने और उसे मार गिराने की क्षमता रखता है। अक्सर इससे पहले कि दुश्मन को F-22 की मौजूदगी का पता भी चले। 

अमेरिका F22 को बेचता क्यों नहीं? 

 

वर्तमान में अमेरिका के पास कुल 195, F-22 Raptor विमान हैं। इनमें से 187 असली लड़ाकू विमान हैं। बाकी 8 विमान टेस्ट करने के लिए। सवाल यह कि यह फाइटर जिस दुनिया के बाक़ी लड़ाकू विमानों के मुकाबले कहां ठहरता है। जब हम तथाकथित पांचवीं पीढ़ी के दूसरे विमानों जैसे रूस के सुखोई Su-57 या चीन के चेंगदू J-20 को देखते हैं, तो F-22 की कुछ खासियतें उसे आज भी सबसे आगे रखती हैं।

Su-57, वह भी स्टेल्थ और सुपरमैनुवरेबिलिटी का दावा करता है और उसमें 3D थ्रस्ट वेक्टरिंग भी है लेकिन ज़्यादातर विशेषज्ञ मानते हैं कि Su-57 की ओवरऑल स्टेल्थ क्षमता, खासकर हर तरफ से रडार से छिपने की काबिलियत, F-22 जितनी उन्नत नहीं है। चीन का J-20, जिसे 'माइटी ड्रैगन' भी कहते हैं, वह भी एक स्टेल्थ फाइटर है और लंबी दूरी तक मार करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। उसकी स्टेल्थ भी मुख्यतः सामने से और F-22 के हर एंगल से छिपा रहने की काबिलियत से यह विमान भी पीछे है।

 

4.5 जेनरेशन के लड़ाकू विमान जैसे यूरोफाइटर टाइफून और डसॉल्ट रफ़ाल भी बेहद काबिल हैं। टाइफून अपनी फुर्ती और सुपरक्रूज़ क्षमता के लिए जाना जाता है और रफ़ाल अपनी 'ओमनिरोल' यानी हर तरह के मिशन को अंजाम देने की काबिलियत के लिए लेकिन ये दोनों ही विमान F-22 जैसी ऑल-एस्पेक्ट स्टेल्थ के लिए डिज़ाइन नहीं किए गए हैं।

 

अब बात करते हैं F-35 लाइटनिंग II की। अमेरिका का लेस्टेट फाइटर जेट है - F-35। दिलचस्प बात कि अमेरिका इसे अपने कई साथी देशों को बेच रहा है लेकिन F-22 को नहीं। ऐसा क्यों?
 
F-35 को शुरुआत से ही अंतरराष्ट्रीय साझेदारी और निर्यात को ध्यान में रखकर डिज़ाइन किया गया था। यह पांचवीं पीढ़ी की क्षमताएं तो देता है लेकिन इसका फोकस F-22 के 'एयर डोमिनेंस' बजाय मल्टीरोल यानी कई तरह के मिशन करने पर ज़्यादा है। F-35 की यूनिट और ऑपरेशनल लागत भी F-22 से कम है।

 

F-22 रैप्टर को अमेरिका अपनी 'क्राउन ज्वेल' यानी सबसे कीमती तकनीक मानता है। इसकी स्टेल्थ, सुपरक्रूज़ और एवियोनिक्स का जो मिश्रण है, उसे इतना संवेदनशील माना गया कि इसके लीक होने का खतरा अमेरिका अपने सबसे करीबी दोस्तों के साथ भी नहीं उठाना चाहता था। जापान, ऑस्ट्रेलिया और इज़रायल जैसे देशों ने इसे खरीदने में दिलचस्पी दिखाई थी लेकिन अमेरिका ने इनकार कर दिया। 1998 का 'ओबे अमेंडमेंट' कानून F-22 के निर्यात पर सीधी रोक लगाता है और यूं भी F22 की मैनुफैक्चरिंग 2011 में बंद कर दी गई। F-35 के आने से अमेरिका को अपने मित्र देशों को पांचवीं पीढ़ी का लड़ाकू विमान देने का एक रास्ता मिल गया है, बिना F-22 के सबसे गोपनीय राज़ खोले। इस तरह, F-22 अमेरिकी वायुसेना का वह इक्का बना रहा जो सिर्फ़ उसी के पास है। 


वैसे अमेरिका वह देश है, जो कभी ज़्यादा दिन एक ही प्रॉडक्ट पर नहीं टिकता। हथियारों में उसे हमेशा बेहतर की चाह रहती है। इसीलिए उसने एफ-22 के सक्सेसर पर भी काम करना शुरू कर दिया है। वह एक सिक्स्थ जेनरेशन फाइटर एयरक्राफ्ट बना रहा है, जिसका नाम उसने दिया है नेक्स्ट जनरेशन एयर डॉमिनेंस NGAD। हाल ही में यह भी सामने आया कि अमेरिका इस जहाज़ को F-47 कहने वाला है। डिज़ाइन और डेवलपमेंट का काम मिला है बोइंग को। 

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