भारत के बॉक्सर हर प्रतियोगिता में अपना लोहा मनवाते हैं। ओलंपिक से लेकर नेशनल गेम्स तक भारत हर साल नए-नए बॉक्सर खोज लाता है और वे पूरी दुनिया में अपना नाम रोशन करते हैं। ऐसे ही एक बॉक्सर हुए पदम बहादुर मल्ल जो न सिर्फ बॉक्सिंग के लिए मशहूर हुए बल्कि उन्होंने भारत की सेना में भी काम किया। साल 1984 में वह सेना के कैप्टन के पद से रिटायर हुए। 1962 में भारत के लिए गोल्ड जीतने वाला यह मुक्केबाज हर उस वक्त पर बंदूक लिए खड़े नजर आया जब देश को उसकी जरूरत थी। इस मुक्केबाज ने साल 1965 और फिर 1971 की जंग में भारत के लिए लड़ाई भी लड़ी।
यह कहानी है उत्तराखंड के निवासी और भारत के दिग्गज मुक्केबाज पदम बहादुर मल्ल की। साल 1953 में भारतीय सेना में भर्ती हुए पदम बहादुर मल्ल ने 1962 के एशियन गेम्स में गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रच दिया। वह ऐसा करने वाले पहले भारतीय बॉक्सर बने। 1962 में जब एक तरफ पदम बहादुर मल्ल पदक जीत रहे थे तब तक चीन भारत पर चढ़ाई की तैयार कर रहा था। इसी युद्ध में पदम बहादुर के कोच अमर जंग थापा भी गए थे। भारत को बॉक्सिंग का पहला गोल्ड मेडल मिलने के ठीक 45 दिन बाद अमर जंग थापा युद्ध में शहीद हो गए।
कैसे आया था वो गोल्ड मेडल?
जकार्ता के एशियन गेम्स में उतरे पदम बहादुर मल्ल के सामने थे जापान के खतरनाक बॉक्सर कानामेरू। अब तक सबको हराते आ रहे कानामेरू के लिए यह काफी आसान ही लग रहा था लेकिन पदम बहादुर भी चालाक थे। उन्हें समझ आ गया था कानामेरू से दूरी बनाकर रखनी है। बीच-बीच में वह कानामेरू पर मुक्के बरसाते और फिर दूर हो जाते। इसका नतीजा यह हुआ कि पदम बहादुर मल्ल ने 4-1 से यह मैच जीत लिया। हालांकि, दुख की बात यह थी कि गोल्ड जीतकर कोलकाता के दमदमा एयरपोर्ट पर उतरे पदम बहादुर मल्ल का स्वागत करने भी कोई नहीं आया।
1959 से 1963 तक लगातार नेशनल चैंपियन रहे पदम बहादुर मल्ल जब सेना से रिटायर हुए तब भी बॉक्सिंग से दूर नहीं हुए। कई सालों तक अपने जैसे और नौजवानों को बॉक्सिंग के गुर सिखाए। इसके बाद भारत की नेशनल सेलेक्शन कमेटी के सदस्य भी रहे। उन्हें भारत सरकार ने अर्जुन अवॉर्ड से भी सम्मानित किया।