असम में हिमंता-बदरुद्दीन के लिए क्यों घातक हो सकते हैं अखिल गोगोई?
राज्य
• DISPUR 08 Sept 2025, (अपडेटेड 08 Sept 2025, 11:17 PM IST)
आरटीआई कार्यकर्ता से नेता बने अखिल गोगोई इन दिनों असम में मोरान समुदाय को एकजुट कर रहे हैं। यह समुदाय पारंपरिक रूप से बीजेपी का वोटर रहा है। इस पूरे घटनाक्रम को जानने के लिए यह खबर पढ़ें।

असम की सियासत। Photo Credit- Sora
शिवसागर विधासभा से विधायक और रायजोर दल के अध्यक्ष अखिल गोगोई की इन दिनों असम में सक्रियता बढ़ गई है। हालांकि, अखिल हमेशा से राज्य की सियासत में सक्रिय हैं लेकिन इस बार की उनकी सक्रियता में कुछ खास है। उनकी इस सक्रियता के पीछे विरोधियों को सियासी चोट पहुंचाना है। उनके निशाने पर असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा और ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (AIUDF) के राष्ट्रीय अध्यक्ष बदरुद्दीन अजमल हैं।
आरटीआई कार्यकर्ता से नेता बने अखिल गोगोई ने मुख्यमंत्री हिमंता और बदरुद्दीन अजमल पर तीखा हमला बोलते हुए दोनों के बीच खास रिश्ता बताया है। उनका कहना है कि दोनों नेता 'एक ही सिक्के के दो पहलू' हैं। उन्होंने कहा है कि दोनों एक दूसरे के लिए काम कर रहे हैं, जिससे दोनों की राजनीतिक रोटियां सिंकती रहे। यहां तक कि अखिल ने हिमंता और बदरुद्दीन को मामा-चाचा बता दिया।
उन्होंने कहा कि दोनों में अघोषित गठजोड़ है। ऐसे में आइए जानते हैं कि अखिल गोगोई असम के दोनों शीर्ष नेताओं पर हमला क्यों कर रहे हैं? इसके पीछे उनका मकसद क्या है। अखिल ये सब करके आगे क्या करने जा रहे हैं? इस खबर में हम यही सब जानेंगे...
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निचला हिस्सा बदरुद्दीन के पास
अखिल गोगोई ने 7 सितंबर को असम के बोंगाईगांव जिले के अभयपुरी में एक कार्यक्रम में हिस्सा लिया। यह कार्यक्रम उन्हीं की पार्टी रायजोर दल ने आयोजित की थी। कार्यक्रम में जनसभा में बोलते हुए, गोगोई ने कहा कि असम का निचला हिस्सा बदरुद्दीन के पास है, लेकिन चाबी हिमंता बिस्वा सरमा के पास है। उन्होंने आगे कहा, 'अगर मामा की पीठ खुजलाती है, तो चाचा खुजलाते हैं और अगर चाचा की पीठ खुजलाती है, तो मामा खुजलाते हैं।'
क्या है पूरा मामला?
दरअसल, इन दिनों असम में स्थानीय समुदायों को अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा दिए जाने का विवाद चरम पर है। इसमें असम की सबसे पुरानी मूल जनजातियों में से एक, 'मोरान' ने अपने लिए अनुसूचित जनजाति की मान्यता की मांग तेज कर दी है। इस मांग की वजह से ऊपरी असम क्षेत्र में बीजेपी सरकार के लंबे समय से चले आ रहे 'सब ठीक है' के दावे को चुनौती मिल रही है।
पिछड़ कैसे गए मोरान?
ऐतिहासिक रूप से, मोरान अहोम शासन, ब्रिटिश उपनिवेशवाद और स्वतंत्रता के बाद के औद्योगीकरण के दौरान बेदखल कर दिए गए थे। तेल, कोयला, चाय और उपजाऊ जमीन होने के बावजूद, मोरान लोग अपने क्षेत्रों से पलायन किया। भूमि अधिग्रहण के नाम पर उनकी जमीन ली गई। इसकी वजह से मोरान क्षेत्र के सबसे गरीब लोगों में शामिल हो गए। मोरान आज भी हाशिए के सामजों में आते हैं।
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हालांकि, बीजेपी की हिमंता सरकार मोरान समुदाय के लिए कल्याणकारी योजनाएं और उन्हें संरक्षण देती है। इसकी वजह से यह समुदाय राजनीतिक रूप से बीजेपी के समर्थन में दिखाई देता रहा है। लेकिन, अब मोरान समुदाय के नेताओं का कहना है कि अब हमारे लोगों के लिए प्रतीकात्मक इशारे और लोकलुभावन वादे पर्याप्त नहीं हैं। यह समुदाय अब भूमि अधिकार, नौकरियां और जनसांख्यिकीय हाशिए पर होने से सुरक्षा के लिए संवैधानिक मान्यता चाहते हैं।
बीजेपी-AIUDF का गठजोड़ क्यों बताया?
इसके अलावा छह स्थानीय समुदायों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने से जुड़े विवाद की ओर अखिल लोगों को ध्यान दिला रहे हैं। अखिल गोगोई ने AIUDF के विधायक अशरफुल हुसैन द्वारा इस मांग का विरोध करने की आलोचना की। पिछले दिनों AIUDF के विधायक अशरफुल हुसैन ने स्थानीय समुदायों की इस मांग का विरोध किया था। इस मांग पर AIUDF के विरोध की आलोचना करते हुए अखिल गोगोई ने आरोप लगाया कि अशरफुल हुसैन का यह बयान बीजेपी के निर्देश पर दिया गया है। उन्होंने कहा, 'बीजेपी सरकार ने कभी भी छह समुदायों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने का समर्थन नहीं किया। ऐसे बयान बीजेपी और आरएसएस के हितों से जुड़े हुए हैं।'
रणनीति से प्रेरित है आंदोलन?
वहीं, राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मोरान सहित अन्य समुदायों का अपने हक के लिए अवाज उठाकर यह आंदोलन करना विद्रोही होने के बजाय रणनीति से प्रेरित है। अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने से मोटोक, ताई-अहोम, चुटिया, कोच-राजबोंगशी और चाय जनजाति जैसे अन्य मूलनिवासी समूहों की ओर से भी इसी तरह की मांग उठ सकती है।
बीजेपी के लिए खतरे की घंटी
यह मांगे बीजेपी के लिए खतरे की घंटी हैं। अगर बीजेपी मोरान की अनदेखी करती है तो उसे इस समुदाय के अलग-थलग पड़ने का जोखिम उठाना पड़ सकता है। मोरान समुदाय ऐतिहासिक रूप से बीजेपी का वफादार वोटर रहा है। ऐसी स्थिती में अखिल गोगोई इन्हीं मोरान समुदाय के हक की बात कर रहे हैं। ऐसा करके वह मोरान की समर्थन अपने हक में करना चाहते हैं। अगर ऐसा होता है तो बीजेपी को राज्य में बड़ा झटका लगेगा।
एक स्थानीय पर्यवेक्षक के मुताबिक, 'मोरान असम के विरोधाभास का प्रतीक हैं: एक समृद्ध भूमि के लोग इतिहास द्वारा गरीब बना दिए गए हैं। उनकी अनुसूचित जनजाति की मांग अस्तित्व और मान्यता की है, अवसरवाद की नहीं।' यह घटनाक्रम असम की राजनीति में एक नए दौर का संकेत है, जहां केवल कल्याण और संरक्षण ही अब जातीय समूहों को नियंत्रित नहीं कर सकते हैं।
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