असम सरकार लगातार राज्य से अतिक्रमण के खिलाफ अभियान चला रही है। राज्य सरकार इस अभियान में खासतौर पर बांग्लादेश से आए लोगों की पहचान करके उन्हें सरकारी जमीन से बेदखल कर रही है। इसी कड़ी में सरकार ने गोलाघाट जिले के नेघेरबिल इलाके में बीते शनिवार को 146 परिवारों को बेदखल कर दिया था।
वन विभाग और प्रशासन की तरफ से सरकारी जमीनों पर बनी अवैध बस्तियों को हटाने का अभियान चलाया जा रहा है। इसके पीछे अधिकारियों ने तर्क देते हुए बताया है कि वो हाईकोर्ट के आदेशों का पालन कर रहे हैं। सरकार के इस कदम का कांग्रेस ने विरोध किया है। पार्टी का कहना है कि राज्य सरकार गरीब लोगों के ऊपर कार्रवाई कर रही है।
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ये लोग गरीब कैसे हो गए?
इन सबके बीच असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने एक्स पर ट्वीट करके कहा, 'कांग्रेस अतिक्रमण अभियान के दौरान निकाले गए घुसपैठियों के लिए शोक मना रही है। 30 एकड़ जमीन पर कब्जा करने वाले ये लोग हमारी संस्कृति को बदलने की कोशिश कर रहे थे। ये लोग गरीब कैसे हो गए?'
लोगों को मिल सकता है आर्म्स लाइसेंस
सीएम ने आगे कहा, 'असम में कुछ ऐसे जिले हैं, जहां एक गांव में 30,000 लोगों के बीच केवल 100 सनातन धर्म के लोग रहते हैं। कानूनी प्रक्रिया के तहत, यदि ऐसे परिवार चाहें तो उन्हें आर्म्स लाइसेंस मिल सकता है। सनातन धर्म की रक्षा करना हमारा कर्तव्य है।'
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हजारों बीघा कब्जे वाली जमीन वापस
बता दें कि पिछले दो हफ्तों में अकेले गोलाघाट जिले में अतिक्रमण के खिलाफ अभियान में 4,000 बीघा से ज्यादा वन भूमि खाली कराई गई है। 30 जुलाई को, उरियामघाट के रेंगमा रिजर्व फॉरेस्ट में लगभग 3,000 बीघा कब्जे वाली जमीन वापस ली गई। प्रशासन ने यहां 278 घरों को एक झटके में ध्वस्त कर दिया गया। इसके कुछ दिनों बाद नामबोर दक्षिण रिजर्व फॉरेस्ट से 1,000 बीघा अतिरिक्त जमीन वापस ली गई, इसमें 350 से ज्यादा परिवारों को बेदखल किया गया।
हालांकि, असम के कई परिवारों ने बेदखली की इस कार्रवाई को लेकर हाईकोर्ट में चुनौती देते हुए मदद की गुहार लगाई है। जिसमें करीब 57 परिवारों को कोर्ट की तरफ से 10 दिन का समय दिया गया है। 15 अगस्त के बाद इन परिवारों की भी बेदखली हो सकती है।
बता दें कि यह बेदखली असम सरकार के वन भूमि को वापस लेने और असम के स्थानीय लोगों के अधिकारों की रक्षा करने के लिए चलाए जा रहे राज्यव्यापी अभियान का हिस्सा है।