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पोलो खेलने वाला मैदान बना राजनीतिक अखाड़ा, गांधी मैदान का इतिहास

पटना के गांंधी मैदान में बिहार लोक सेवा आयोग के परीक्षार्थियों का विरोध प्रदर्शन जेपी नारायण के दौर की याद दिलाता हैं। आखिर पोलो खेलने वाला मैदान केसे बना राजनीतिक अखाड़ा आइये जान लें।

what is Gandhi maidan Patna history

गांधी मैदान में विरोध प्रदर्शन करते छात्र, Image credit: ANI

बिहार में दिसंबर के आखिरी सप्ताह में माहौल बहुत गरमाया रहा। बीपीएससी यानी बिहार लोक सेवा आयोग के परीक्षार्थी पटना के गांधी मैदान में जुटे और जमकर आंदोलन किया। इन छात्रों की बस एक मांग- सभी 912 केंद्रों की दोबारा प्रारंभिक परीक्षा हो।

 

बिहार की राजनीतिक उठापटक में अहम किरदार निभा चुके गांधी मैदान में विवार सुबह छात्रों का झुंड पहुंचा। गांधी मैदान के गेट नंबर 5 के पास छात्रों का जत्था पहुंचा और तख्तियां लेकर लगातार नारेबाजी की। तस्वीरों में साफ देखा जा सकता है कि शोर मचाते हुए परीक्षार्थी गांधी मैदान में लगी विशालकाय गांधी मूर्ति की तरफ बढे और नारेबाजी की। 

 

70 फीट ऊंची गांधी मूर्ति

70 फीट ऊंची गांधी मूर्ति के नीचे छात्र संसद लगाकर बैठे रहे। बता दें कि इस मूर्ति को मुख्यमंत्री नीतिश कुमार के कार्यकाल में साल 2013 में तैयार किया गया था। इस मूर्ति में महात्मा गांधी 2 बच्चों के साथ खड़े हैं। यह दुनिया की सबसे ऊंची कांस्य प्रतिमा है। इसमें गांधी को दो बच्चों के साथ खड़े दिखाया गया है।

 

राजनीतिक अड्डा कैसे बना?

गांधी मैदान जो कब राजनीतिक अड्डा बन गया, पता ही नहीं चला। एक तरफ कुछ नौजवान मसालेदार नींबू चाय, लोकल ब्रांड वाले बोतल के पानी, इडली और खाने वाले आइटम बेचते है तो वहीं दूसरी ओर युवाओं के विरोध प्रदर्शन की आवाज गूंजती है। एक समय था जब पटना का गांधी मैदान बांकीपुर मैदान लॉन के रूप में जाना जाता था। ब्रिटिश हुकूमत में इस मैदान में लोग पोलो खेलते थे। 

 

कविता पढ़ी गई, क्रांति के लगाए गए नारे

आजादी की लड़ाई का गवाह बनने वाला यह मैदान समय के साथ राजनीतिक अखाड़ा बन गया। वर्ष 1946 में गांधी मैदान में जयप्रकाश नारायण के भव्य स्वागत में एक कविता पढ़ी गई- 'इतिहास तुम्हारा है....' इतिहास का पन्ना पलटेंगे तो 5 जून 1974 की गांधी मैदान की वो तस्वीर याद आएगी जब लोगों से खचाखच भरे गांधी मैदान में जेपी ने संपूर्ण क्रांति का नारा लगाया था। इसकी गूंज पटना से दिल्ली तक सुनाई दी थी। 

 

रैलियां और बहुत सारी रैलियां...

न केवल आंदोलन बल्कि एक ऐसा दौर भी था जब 1971 में बंगालदेश से लौटीं तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी हवाई अड्डे से खुली जीप पर गांधी मैदान में पहुंची थी। उस समय लाखों के हुजूम ने इसी गांधी मैदान में उनका भव्य स्वागत किया था। यह वहीं गांधी मैदान है जहां 4 नंवबर, 1974 को जेपी ने लाखों लोगों के हस्ताक्षर लेकर राजभवन कूच किया था। मंडल आयोग की सिफारिशों को लेकर देश की राजनीति ने अचावक करवट ली थी। 1991 में तत्कालीन सीएम लालू यादव नेे गांधी मैदान में मंडल रैली की। इस रैली की सफलता के बाद लालू पिछड़ों के हीरो कहलाए जाने लगे। 

 

इन चीजों का भी बना गवाह

जानकर हैरानी होगी लेकिन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, चंपारण आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन सहित कई आंदोलन इसी मैदान से बिहार में शुरू किए गए थे। 1938 में मुस्लिम लीग को इसी ऐतिहासिक मैदान पर पुनर्जीवित किया गया था। लीग के तत्कालीन अध्यक्ष मोहम्मद अली जिन्ना ने इसी मंच से कांग्रेस के खिलाफ तीखा भाषण दिया था। गांधी मैदान कई राजनीतिक दिग्गजों के उग्र भाषणों का गवाह रहा है, जिनमें राजेंद्र प्रसाद, पंडित नेहरू, जेबी कृपलानी, ईएमएस नंबूदरीपाद, मधु लिमये, इंदिरा गांधी, एस ए डांगे, राम मनोहर लोहिया, ए एन सिन्हा, अटल बिहारी, वाजपेयी, जॉर्ज फर्नांडिस, लालकृष्ण आडवाणी, सोनिया गांधी, विनोद मिश्रा, मायावती, मुलायम सिंह यादव, लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार का नाम शामिल हैं।

 

इसकी भी दिलाता है याद

गांधी मैदान, राजनीतिक आंदोलनों के अलावा कई अन्य चीजों का भी गवाह रहा। भव्य सांस्कृतिक समारोह की यादों से लेकर सर्दियों के दौरान, कई मेले और प्रदर्शनियों को आयोजित किया जाता हैं। इसमें तिब्बती ल्हासा बाजार, हस्तशिल्प मेला और पुस्तक मेला आम हैं। गांधी मैदान साल भर चलने वाले थिएटर और नुक्कड़ नाटकों का भी गवाह है। 

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