भारत के उत्तर-पूर्वी राज्य मणिपुर के उखरुल जिले में पाया जाने वाला ‘हाओफा ब्रीड’ एक खास कुत्ते की नस्ल है। यह नस्ल खासतौर पर तंगखुल जनजाति की परंपराओं और जीवनशैली से जुड़ी हुई है। यह सिर्फ एक पालतू जानवर नहीं, बल्कि स्थानीय संस्कृति, परंपरा और पहचान का प्रतीक माना जाता है।
हाओफा की खासियत को इस बात से समझा जा सकता है कि पहले यह हर शिकारी का खास साथी हुआ करता था। इसकी पहचान इसकी तेज सूंघने की क्षमता, वफादारी और न डरने की क्षमता से होती है। तंगखुल समुदाय के लोग हाओफा को बेहद सम्मान से देखते हैं और हर कुत्ते को एक खास नाम देकर अलग-अलग तरीकों से ट्रेनिंग देते हैं।
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दो तरह की है हाओफा नस्ल
हाओफा नस्ल के दो प्रकार माने जाते हैं – एक छोटा आकार जो छोटे जानवरों के शिकार के लिए मददगार होता है और दूसरा बड़ा आकार, जिसका शरीर मजबूत होता है, रंग काले-नीले जैसा होता है और चेहरा भालू जैसा लगता है। बड़े हाओफा को खासतौर पर सुरक्षा और बड़े शिकार के लिए ट्रेनिंग दी जाती है।
हालांकि समय के साथ इस नस्ल के कुत्तों की संख्या में तेजी से गिरावट आई है। प्योर ब्रीड यानि शुद्ध रक्त के नस्ल के कुत्ते आज सिर्फ उखरुल जिले के फुंगचम गांव में सीमित रह गए हैं। यहां कुछ पशु प्रेमी और पालक इस नस्ल की शुद्धता को बनाए रखने का काम कर रहे हैं। वह न सिर्फ इसे बचा रहे हैं, बल्कि अगली पीढ़ियों तक इसकी खासियत को पहुंचाने में लगे हुए हैं।
हाओफा की खासियत यह है कि यह सिर्फ सुरक्षा या शिकार तक सीमित नहीं है, बल्कि यह घरों की रक्षा, बच्चों और बुजुर्गों की सुरक्षा के लिए भी मददगार माना जाता है। यह नस्ल अपने मालिक के प्रति बहुत वफादार होती है और अजनबियों पर तुरंत प्रतिक्रिया देती है।
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सेना में भी किया जा रहा है शामिल
इसकी क्षमताओं को देखकर असम राइफल्स जैसे सुरक्षा बलों ने भी हाओफा को अपनी डॉग ट्रेनिंग यूनिट में शामिल करना शुरू कर दिया है। यह नस्ल अब केवल गांवों तक सीमित नहीं रही, बल्कि शहरी सुरक्षा और सेवा के क्षेत्र में भी अपनी पहचान बना रही है।
हाओफा के महत्व को पहचानते हुए इंफाल कृषि कॉलेज के पशु विज्ञान विभाग की एक टीम ने फुंगचम गांव जाकर इस नस्ल का आकलन और दस्तावेजों में कुछ जरूरी बातों को दर्ज किया है। इसके बाद इस नस्ल को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने के लिए राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो (NBAGR), हरियाणा को आवेदन भेजा गया है।