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हरियाणा के शहरी निकायों में कोई नहीं है पार्षद, वजह क्या है समझ लीजिए

हरियाणा में हाल ही में निकाय चुनाव हुए हैं। इस बीच एक रोचक बात यह भी सामने आई है कि निकाय के वार्ड स्तर के प्रतिनिधियों को हरियाणा में पार्षद कहा ही नहीं जाता है।

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हरियाणा निकाय चुनाव में जीत का जश्न मनाते BJP नेता, Photo Credit: PTI

हरियाणा में पिछले हफ्ते के बुधवार यानी 12 मार्च को तीन दर्जन शहरी निकायों के चुनाव हुए। इनमें नगर निगम, नगर पालिका परिषद और नगर पालिका समितियों के चुनाव हुए। शहरी नगर निकायों में वार्ड स्तर पर चुने जाने वाले पार्षद ही मिलकर अपने मुखिया का चुनाव करते हैं। नगर निगम में इसी मुखिया को महापौर यानी मेयर कहा जाता है। ज्यादातर राज्यों में वार्ड स्तर पर चुने जाने वाले व्यक्ति को पार्षद कहकर संबोधित किया जाता है। हालांकि, हरियाणा में ऐसा नहीं है। हरियाणा में वार्ड स्तर पर चुने गए प्रतिनिधियों को सदस्य कहा जा रहा है। हाल ही में चुने गए प्रतिनिधियों को राज्य निर्वाचन आयोग की ओर से जो सर्टिफिकेट दिए गए हैं, उन पर भी 'सदस्य' लिखा गया है।

 

पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के एडवोकेट और म्युनिसिपल कानून जानकार हेमंत कुमार ने इस संबंध में रोचक और बेहद अहम जानकारी देते हुए बताया कि मतगणना संपन्न होने के बाद हर नगर निगम/नगरपालिका परिषद और नगरपालिका समिति के अंतर्गत पड़ने वाले प्रत्येक शहरी निकाय वार्ड से चुनाव जीतकर निर्वाचित होने वाले विजयी उम्मीदवार को संबंधित रिटर्निंग ऑफिसर (आरओ) से जो निर्वाचन प्रमाण-पत्र (इलेक्शन सर्टिफिकेट) प्राप्त हुआ है, उस पर उसे संबंधित निकाय अर्थात नगर निगम/नगरपालिका परिषद/नगरपालिका समिति के संबंधित वार्ड का पार्षद नहीं बल्कि सदस्य (मेंबर) बताया गया है। 

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क्या कहते हैं नियम?

 

उन्होंने आगे बताया कि यह हैरानी की बात है कि न केवल  चुनाव जीते उम्मीदवारों बल्कि उनके समर्थकों आदि द्वारा, यहां तक कि प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक/डिजिटल मीडिया द्वारा उन्हें निर्वाचित वार्ड पार्षद (काउंसलर) कहकर ही संबोधित किया जाता है जिससे निकाय क्षेत्र के मतदाताओं और स्थानीय  निवासियों में यही आम धारणा बन गई है कि उनके संबंधित वार्ड क्षेत्र से चुनाव जीतने वाला उम्मीदवार संबंधित नगर निकाय का पार्षद (काउंसलर)ही है जो कि कानूनन गलत है। इसकी वजह है कि हरियाणा म्युनिसिपल (नगरपालिका) कानून, 1973 जो प्रदेश की सभी नगरपालिका समितियों और नगरपालिका परिषदों पर लागू होता है और उसके अंतर्गत बनाए गए हरियाणा नगरपालिका  निर्वाचन नियम, 1978  और हरियाणा नगर निगम कानून, 1994 के आधार पर हरियाणा  निर्वाचन आयोग द्वारा प्रदेश के सभी नगर निकायों में चुनाव करवाए जाते हैं। इन सभी में कहीं भी पार्षद (काउंसलर ) शब्द  नहीं है। इसकी बजाय नगरपालिका कानून की धारा 2 (14 ए) और 1994  नगर निगम कानून की धारा 2 (24)  में वार्डो से निर्वाचित होने वालों के लिए  सदस्य (मेंबर) शब्द का उल्लेख किया गया है।

 

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इसी कारण मतगणना और उसके बाद राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा सभी निर्वाचित सदस्यों को जो शपथ दिलाई जाएगी, वह भी सदस्य के तौर पर दिलाई जाएगी, पार्षद के तौर पर नहीं। हेमंत ने बताया कि बेशक देश के सभी राज्यों जैसे पंजाब, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली, चंडीगढ़ आदि में स्थापित नगर निकायों  के निर्वाचित सदस्यों द्वारा पार्षद (काउंसलर) शब्द का प्रयोग किया जाता है लेकिन वहां ऐसा करना  कानूनन वैध है क्योंकि उन सभी प्रदेशों के संबंधित म्युनिसिपल कानूनों में पार्षद शब्द का उल्लेख किया गया है लेकिन हरियाणा के दोनों नगर निकाय कानूनों में  ऐसा नहीं  है। यहां तक कि भारत के संविधान में म्युनिसिपैलिटी से संबंधित अनुच्छेद 243 में भी कहीं पार्षद (म्युनिसिपल काउंसलर) शब्द का उल्लेख नहीं किया गया है।   

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