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बिहार: न चेहरा, न नीतीश-तेजस्वी जैसा फेम, कैसे टिकी है लेफ्ट पार्टी?

बिहार विधानसभा चुनावों के लिए महागठबंधन की पार्टियों के बीच मंथन चल रहा है। 243 विधानसभा सीटों में लेफ्ट का दबदबा कितनी सीटों पर है, कितनी सीटों की मांग की जा रही है, दावे क्या हैं, क्यों लेफ्ट अब भी वहां प्रासंगिक है, पूरी कहानी।

Deepankar Bhattacharya

CPI (ML) के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य।

बिहार विधानसभा चुनाव अब नजदीक आ रहे हैं। चुनाव से कुछ महीने पहले ही सियासी पार्टियां, गठबंधन धर्म में सीट शेयरिंग पर मंथन कर रही हैं। बिहार में इंडिया ब्लॉक से जुड़ी पार्टियों में एक-एक सीटों के लिए संघर्ष है। वजह यह है कि राष्ट्रीय जनता दल, वहां की सबसे बड़ी पार्टी है और इंडिया ब्लॉक का नेतृत्व कर रही है। 

तेजस्वी यादव सीएम फेस हैं लेकिन कांग्रेस का प्रदर्शन लचर रहा है। कांग्रेस से बेहतर सफलता की दर वामपंथी पार्टियों की है, जिसकी वजह से अब आरजेडी पर ज्यादा सीटें देने का दबाव बढ़ रहा है। कांग्रेस ने बीते चुनाव में 70 सीटों पर चुनाव लड़कर 19 सीटें हासिल की थीं, जबकि महज 29 सीटों पर लड़कर लेफ्ट के पास 15 सीटें आ गई थीं। बिहार में अब वामपंथी पार्टियां, 60 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती हैं। 


अब कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्ससिस्ट - लेनिनिस्ट) (लिबरेशन) बिहार में अकेले 40 से 45 सीटें मांग रही है। 5 साल पहले CPI (M-L) (L) ने जीत का स्वाद चखा था, अब एक बार फिर वही तैयारी है। पार्टी किसान, महिला, दलित, युवा और जेएनयू के पूर्व छात्र नेताओं को उतारने की तैयारी में है। 

पार्टी पहले ही यह इशारा कर चुकी है कि 40 से 45 सीटों पर चुनाव लड़ना है। CPI (M-L) महागठबंधन की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी भी है। साल 2020 के चुनाव में जहां कांग्रेस की सफलता दर 27.14 प्रतिशत था, CPI (ML) का स्ट्राइक रेट 63.15 प्रतिशत रहा। राजनितिक विश्लेषकों का कहना है कि अगर यह पार्टी ज्यादा सीटें मांग रही है तो यह उसका हक है। 

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2015 की कमजोर पार्टी, 2020 में मजबूत हो गई 

साल 2015 में, CPI (ML) (L) ने अकेले चुनाव लड़ा था।  सफलता दर सिर्फ 3.06 प्रतिशत थी। 98 सीटों पर पार्टी ने अपने उम्मीदवार उतारे थे, जीत सिर्फ 3 सीटों पर मिली। 

साल 2010 में वामपंथी पार्टियों का हाल क्या था?

साल 2010 के विधानसभा चुनाव में जेडीयू सबसे बड़ी पार्टी थी। जनता दल यूनाइटेड ने 110, बीजेपी ने 89, आरजेडी ने 20, लोक जनशक्ति पार्टी ने 3, कांग्रेस ने 4, झारखंड मुक्ति मोर्चा ने 1, कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया ने 1, अन्य दलों ने 6 सीटें जीतीं थीं। लेफ्ट का प्रदर्शन बेहद लचर था। 

 

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बिहार में लेफ्ट पार्टियों के शिल्पकार कौन हैं?

बिहार में लेफ्ट पार्टी का कोई बड़ा चेहरा नहीं था लेकिन दबे पांव, दीपंकर भट्टाचार्य ने लेफ्ट की तकदीर बदली है। वह बिहार में CPI (माले) के राष्ट्रीय महासचिव हैं, पार्टी के अहम चेहरा बने हुए हैं। बिहार में लेफ्ट पार्टियों का संयुक्त रूप से प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।

  • CPI (माले): तरारी विधानसभा सीट से विधायक सुदामा प्रसाद भी अब लोकप्रिय हो रहे हैं। वह भी सीपीआई (माले) के नेता हैं। अजित सिंह भी युवा विधायक हैं, डुमरांव विधानसभा में सक्रिय हैं। अरुण सिंह पर भी पार्टी भरोसा जता रही है। 
  • CPI: राम नरेश पांडेय चर्चित नेता हैं, मजदूर और किसानों के बीच लोकप्रिय हैं। सत्येंद्र प्रसाद यादव मांझी से विधायक हैं। 
  • CPI (M): केदारनाथ सिंह पार्टी के चर्चित नेता हैं। वह बनियापुर से विधायक हैं। अवधेश कुमार बिहार के राज्य सचिव हैं, जमीनी स्तर पर पार्टी की रणनीति तैयार करते हैं। 

खास क्या है इस चुनाव में?

महागठबंधन की पार्टियां, बीजेपी पर ओबीसी और दलित विरोधी होने का आरोप लगा रही हैं। जातिगत जनगणना के मुद्दे को अपनी सफलता बनाकर एनडीए गठबंधन को घेरा जा रहा है। लेफ्ट के नेताओं का कहना है कि उनका जोर महिला और दलित उम्मीदवारों पर रहेगा। वामपंथी पार्टियां युवाओं पर भी भरोसा जता सकती है। 

बिहार में वाम दलों की ताकत क्या है?

बिहार में लेफ्ट की 3 प्रमुख पार्टियां हैं। कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) (लिबरेशन), कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी)। बिहार की 243 विधानसभा सीटों में से लेफ्ट की पार्टियों को कुल 29 सीटें गठबंधन के तहत मिली थीं। CPI (माले), सीपीआई (एम) और सीपीआई की संयुक्त रूप से कुल 15 सीटें हैं। 

  • CPI (M-L) 12 सीट
  • CPI (M)- 2
  • CPI- 2 

किसके सहारे जिंदा हैं लेफ्ट की पार्टियां?

बिहार में लेफ्ट की पार्टियां, किसान, दलित, पिछड़ा और अल्पसंख्यक की राजनीति करते हैं। अपनी आक्रामक शैली की वजबह से वाम दल ग्रामीण इलाकों में ज्यादा असरदार हैं। जिन क्षेत्रों में नक्सलवाद अब भी प्रभावी है, वहां इन पार्टियों की सियासत सामाजिक न्याय, जमीन सुधार आंदोलनों और मजदूरों के हक जैसे मुद्दों के इर्द-गिर्द घूम रही है। 

किन मुद्दों पर लड़ रही हैं लेफ्ट की पार्टियां?

बिहार में लेफ्ट पार्टियों की राजनीति सामाजिक न्याय, भूमि सुधार, गरीब और वंचित वर्गों के अधिकारों, और सामंती व्यवस्था के खिलाफ संघर्ष पर आधारित है। लेफ्ट की पार्टियां, बिहार के सामाजिक और आर्थिक ढांचे में फैली असामनता को दूर करने की वकालत करती हैं। 

सामाजिक-आर्थिक और जातिगत जनगणना (SECC) 2011, के अनुसार, दलित समुदायों में भूमिहीनता का स्तर सबसे ज्यादा है। मुसहर समुदाय के ही 90 प्रतिशत के करीब लोग भूमिहीन हैं। बिहार में वर्चस्वशाली समुदायों के पास बेहिसाब जमीनें हैं। आर्थिक असमानता के खिलाफ ही लेफ्ट की पार्टियां लड़ रही हैं।  

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बिहार में वामपंथी दल भूमिहीन किसानों, दलितों, और छोटे किसानों के लिए भूमि सुधार की मांग कर रहे हैं। दशकों से सामंती जमींदारी व्यवस्था के खिलाफ इनके मुखर आंदोलन का इतिहास रहा है। 1960 से 80 के दशक में बिहार में जगदीश महतो और चंद्रशेखर सिंह जैसे कम्युनिस्ट नेताओं ने किसानों के हक के लिए आंदोलन किए, कमोबेश आज के नेता भी इन्हीं मुद्दों को उठा रहे हैं। 

साल 2020 में कैसे अचानक बढ़ गई सीटें?

2020 के विधानसभा चुनाव में लेफ्ट की पार्टियों ने महागठबंधन के बैनर तले चुनाव लड़ा। यह लॉकडाउन का साल था। देश ने अचानक पलायन देखा था, प्रवासी मजदूरों की दुर्गति देखी थी, रोजगार संकट देखा था। युवा सरकारी नौकरियों के लिए डंडे खा रहे थे, स्वास्थ्य और शिक्षा की लचर व्यवस्थाएं विपक्ष के लिए मुद्दा बन गई थीं। जमीन सुधार और सामाजिक न्याय के मुद्दों ने जनता को प्रभावित किया, लेफ्ट ने कमालदिखाया। लेफ्ट ने किसानों आय, रोजगार, भूमिहीनों के लिए इंसाफ जैसे मुद्दे उठाए तो उन्हें बढ़त मिली। यह चुनाव बेशक एनडीए के खाते में गया लेकिन लेफ्ट के प्रदर्शन से सबको चौंका दिया।

महागठबंधन के सबसे बड़े दल राष्ट्रीय जनता दल (RJD) ने 144 सीटों पर चुनाव लड़ा, जीत 75 पर मिली। कांग्रेस ने 70 सीटों पर उम्मीदवार उतारे, जीत सिर्फ 19 सीटों पर मिली। CPI (माले) ने 19 सीटों पर चुनाव लड़कर 12 सीटें हासिल कीं। CPI ने 6 सीटों पर उम्मीदवार उतारे 2 सीटें खाते में गईं। CPI (M) को 4 सीटें मिली थीं, 2 पर जीत मिल गई। लेफ्ट का स्ट्राइक रेट करीब 80 फीसदी रहा।

अब किस उम्मीद में हैं लेफ्ट की पार्टियां?

बिहार में कांग्रेस, आरजेडी और हिंदुस्तान आवाम मोर्चा से जुड़े नेताओं ने दबी जुबान में कहा है कि 9 जुलाई से पहले सीटों पर फैसला कर लिया जाएगा। राष्ट्रीय जनता दल सीटों से समझौता करने को तैयार नहीं है कि क्योंकि कांग्रेस का स्ट्राइक रेट, साल 2020 के विधानसभा चुनाव में बेहद लचर था, 2024 के लोकसभा चुनाव में बिहार ने 9 सीटों पर दावा ठोका था, जीत सिर्फ 3 पर मिली थी। कांग्रेस और वाम दल, सीटों के दिए जा रहे प्रस्तावों से थोड़े असंतुष्ट हैं। 

विकासशील इंसान पार्टी (VIP) के नेता मुकेश सहनी, बिहार में 14 प्रतिशत वोट बैंक का दावा करते हैं, वह डिप्टी सीएम का पद भी हर बार मांगते हैं, गठबंधन में उन्हें सीटें भी 50 से ज्यादा चाहिए। ऐसे में चौतरफा अनबन की वजह से अभी यह तय ही नहीं हो पाया है कि कौन, कितनी सीटों पर चुनाव लड़ेगा। अगर स्ट्राइक रेट देखें तो वाम दलों का सबसे बेहतर रहा है, ऐसे में इस बार लेफ्ट को ज्यादा सीटें मिल सकती हैं।

 

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