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उमर अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती; J&K में क्यों 'हाउस अरेस्ट' हुए नेता?

जम्मू-कश्मीर के सीएम उमर अब्दुल्ला और पूर्व सीएम महबूबा मुफ्ती समेत कई नेताओं ने हाउस अरेस्ट किए जाने का आरोप लगाया है।

Omar Abdullah

उमर अब्दुल्ला के घर के बाहर तैनात पुलिस। (Photo Credit: X@OmarAbdullah)

जम्मू-कश्मीर में एक बार फिर सियासी पारा चढ़ गया है। मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और पूर्व सीएम महबूबा मुफ्ती समेत कई नेताओं ने हाउस अरेस्ट किए जाने का आरोप लगाया है। उमर अब्दुल्ला ने X पर कुछ तस्वीरें पोस्ट की हैं, जिनमें उनके घर के बाहर पुलिस खड़ी दिख रही है। सत्तारूढ़ और विपक्षी नेताओं को कथित तौर पर हाउस अरेस्ट तब किया गया है, जब 13 जुलाई को जम्मू-कश्मीर में 'शहीद दिवस' मनाया जाना था। इससे पहले सीएम उमर अब्दुल्ला ने शहीद दिवस को जलियांवाला बाग के नरसंहार से की थी।

 

रविवार को सीएम अब्दुल्ला ने कथित रूप से हाउस अरेस्ट की तस्वीरें साझा करते हुए आरोप लगाया कि दिल्ली से लौटने के बाद उन्हें उनके घर में 'बंद' कर दिया गया है। उन्होंने इसे 'अनिर्वाचित' लोगों का अत्याचार बताया है। उन्होंने लिखा, 'अनिर्वाचित सरकार ने निर्वाचित सरकार को बंद कर दिया है।'

अरुण जेटली के बयान का किया जिक्र

उमर अब्दुल्ला ने कई तस्वीरें साझा की हैं, जिनमें उनके घर के बाहर पुलिस और बख्तरबंद गाड़ियां खड़ी दिख रही हैं।

 

उन्होंने पोस्ट करते हुए बीजेपी के दिवंगत नेता अरुण जेटली के बयान का भी जिक्र किया। उन्होंने लिखा, 'अरुण जेटली के शब्दों में कहें तो जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र अनिर्वाचित लोगों का अत्याचार है। इसे आज आप सभी समझ जाएंगे। नई दिल्ली के अनिर्वाचित प्रतिनिधियों ने जम्मू-कश्मीर की जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों को बंद कर दिया है।'

 

 

नेशनल कॉन्फ्रेंस के विधायक तनवीर सादिक ने भी कुछ तस्वीरें शेयर कर नजरबंद किए जाने का आरोप लगाया। उनकी पोस्ट को शेयर करते हुए अब्दुल्ला ने लिखा, 'घोर अलोकतांत्रिक कदम उठाते हुए घरों को बाहर से बंद कर दिया गया है। पुलिस और केंद्रीय बलों को जेलर के रूप में तैनात किया गया है। श्रीनगर के अहम पुलों को ब्लॉक कर दिया गया है। यह सब लोगों को उस ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण कब्रिस्तान में जाने से रोकने के लिए किया गया है, जहां उन लोगों की कब्रें हैं, जिन्होंने कश्मीरियों को आवाज देने और उन्हें सशक्त बनाने के लिए अपनी कुर्बानी दे दी। मैं कभी नहीं समझ पाउंगा कि कानून-व्यवस्था की सरकार को इतना डर किस बात का है।'

 

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'13 जुलाई हमारा जलियांवाला बाग है'

इससे पहले उमर अब्दुल्ला ने 13 जुलाई की तुलना जलियांवाला बाग से की थी। उन्होंने कहा, '13 जुलाई क का नरसंहार हमारा जलियांवाला बाग है। जिन लोगों ने अंग्रेजों के खिलाफ अपनी कुर्बानी दी। कश्मीर पर ब्रिटिश हुकूमत का शासन था। यह कितनी शर्म की बात है कि ब्रिटिश हुकूमत के खलिाफ लड़ने वाले सच्चे नायकों को आज सिर्फ इसलिए खलनायक के रूप में पेश किया जा रहा है, क्योंकि वे मुसलमान थे। आज भले ही हमें उनकी कब्रों पर जाने का मौका न मिले, लेकिन हम उनके बलिदान को नहीं भूलेंगे।'

 

महबूबा मुफ्ती ने क्या कहा?

13 जुलाई के दिन जम्मू-कश्मीर के कई नेताओं ने खुद को नजरबंद किए जाने का आरोप लगाया है। इनमें पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) प्रमुख और पूर्व सीएम महबूबा मुफ्ती भी हैं। 

महबूबा मुफ्ती ने X पर लिखा, 'जिस दिन आप हमारे नायकों को अपना लेंगे, ठीक वैसे ही जैसे कश्मीरियों ने महात्मा गांधी से लेकर भगत सिंह तक को अपनाया है, उस दिन, जैसा कि प्रधानमंत्री मोदी ने एक बार कहा था कि 'दिलों की दूरी' सचमुच खत्म हो जाएगी।'

 

 

उन्होंने कहा, 'जब आप शहीदों के कब्रिस्तान की घेराबंदी करते हैं। लोगों को मजार-ए-शुहादा जाने से रोकने के लिए उन्हें उनके घरों में बंद कर देते हैं तो यह बहुत कुछ कहता है। 13 जुलाई हमारे उन शहीदों को याद करता है, जो देश के अनगिनत लोगों की तरह अत्याचार के खिलाफ उठ खड़े हुए थे। वे हमेशा हमारे हीरो रहेंगे।'

 

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13 जुलाई को ऐसा क्या था?

13 जुलाई की तारीख जम्मू-कश्मीर की तारीख में एक महत्वपूर्ण दिन है। 1931 में इसी दिन कुछ कश्मीरियों ने श्रीनगर जेल के बाहर विरोध प्रदर्शन किया था। वे अब्दुल कादिर के समर्थक थे, जिन्होंने डोगरा शासक हरि सिंह के खिलाफ आवाज उठाई थी। 

 

अब्दुल कादिर को श्रीनगर जेल में ही रखा गया था। इसके बाहर ही कश्मीरियों ने विरोध प्रदर्शन किया था। विरोध को दबाने के लिए महाराजा हरि सिंह की सेना ने प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चला दी थीं, जिसमें 22 लोग मारे गए थे। 

अब क्या है पूरा मामला?

2019 से पहले तक 13 जुलाई को जम्मू-कश्मीर में जगह-जगह बड़े कार्यक्रम होते थे। मगर 2019 में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के बाद काफी कुछ बदल गया है। प्रशासन ने शहीदों के कब्रिस्तान जाने पर भी रोक लगा दी है। 

 

पहले 5 दिसंबर को जम्मू-कश्मीर के पूर्व प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री शेख अब्दुल्ला की जयंती पर छुट्टी होती थी, जिसे 2020 में खत्म कर दिया गया। इसके अलावा, अब महाराजा हरि सिंह की जयंती पर सार्वजनिक छुट्टी होती है।

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