कभी जंगलराज, कभी गुंडाराज, लालू से नीतीश तक, बिहार की अपराध कथा
राज्य
• PATNA 10 Jul 2025, (अपडेटेड 12 Jul 2025, 7:08 AM IST)
बिहार में लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी की सरकार को जंगलराज बताती रही है। यह वह दौर था, जब बिहार में भ्रष्टाचार, अपहरण और अपराध चरम पर था। JDU, नीतीश सरकार को गुंडाराज बता रही है। किस दौर में, कैसा अपराध था, आइए जानते हैं।

नीतीश कुमार, राबड़ी देवी और लालू यादव। (Photo Credit: PTI)
साल 2003 में प्रकाश झा के निर्देशन में अजय देवगन की एक फिल्म आई थी 'गंगाजल'। यह एक एक्शन-क्राइम और ड्रामा फिल्म थी, जिसमें एक ईमानदार पुलिस अधिकारी अमित कुमार बिहार के भ्रष्ट राजनीतिक तंत्र में पिस रहा होता है। राजनीति, पुलिस और अपराधियों के गठजोड़ की बनी इस फिल्म में बिहार के आपराधिक इतिहास की सच्चाई दिखाई गई थी। कमोबेश हालात ऐसे ही थे। उनसे पहले ईश्वर निवास के निर्देशन में मनोज वाजपेयी की एक फिल्म 'शूल' आई थी। फिल्म में मनोज ने इंस्पेक्टर समर प्रताप सिंह का किरदार निभाया था फिल्म सुर्खियों में रही थी। फिल्म का नायक आपराधिक चक्रव्यूह में ऐसे फंसता है कि उसे मौत जिंदगी से बेहतर लगती है। 1997 में मृत्युदंड, साल 2012 में गैंग्स ऑफ वासेपुर, 2022 में खाकी द बिहार चैप्टर जैसी फिल्में बनीं। ये सारी फिल्में बिहार के 'अपराध' के इर्दगिर्द घूम रही थीं, जिन्हें कभी सियासी पार्टियों ने 'जंगलराज का नाम दिया, कभी 'गुंडाराज' का।
बिहार के जिस मगध साम्राज्य की कीर्ति दुनियाभर में फैली, जहां बिम्बिसार, अजातशत्रु, चंद्रगुप्त और अशोक जैसे महान राजा हुए, उसी बिहार में जब लोकतंत्र की बहाली हुई तो अपराधियों के हौसले भी बढ़े, सरकारों की चुनौतियां भी बढ़ीं और भ्रष्ट राजनेताओं का रसूख भी। एक वक्त ऐसा भी आया जब, बाहुबली सियासत में पूजे जाने लगे, उन्हें 'जनप्रतिनिधि' का टैग मिला, वे विधायक और सांसद बनने लगे। बिहार में 1970 के 1980 के दशक तक, अराजकता खूब रही। 70 के दशक में भूमि सुधार आंदोलनों के नाम पर हिंसा हुई तो वर्ग संघर्ष भी शुरू हुआ। आलम यह कि भोजपुर और औरंगबादा जैसे क्षेत्रों में नक्सलवादी आंदोलनों ने समाज को हिलाकर रख दिया। यह लड़ाई सवर्ण बनाम दलित और पिछड़ी की होने लगी। 1977 के बेलछी या 2000 के मियांपुर नरसंहार को कौन भूल सकता है।
बिहार की अपराध कथा का जिक्र क्यों?
बिहार की राजनीति में इन दिनों गोपाल खेमका हत्याकांड पर हंगामा बरपा है। गोपा खेमका की 4 जुलाई देर रात 11.30 पर हत्या कर दी गई थी। वह खेमका बांकीपुर क्लब से लौट रहे थे, गेट के पास मौजूद एक अपराधी ने गोली मार दी। यह सब, बिहार की राजधानी पटना में हुआ। हत्याकांड पर केंद्रीय मंत्री और लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) के मुखिया चिराग पासवान ने कहा कि सुशासन सरकार में, राजधानी पटना में यह हत्याकांड हुआ है, गांव-देहात में जाने क्या हो रहा होगा। नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने कहा कि बिहार में अब 'गुंडा राज', उन्होंने गुंडा भी अलग तरीके से बताया, 'गुंNDA' राज। उनके कहने का मतलब साथ है कि भारतीय जनता पार्टी और जनता दल यूनाइटेड की अगुवाई वाली एनडीए सरकार अब गुंडाराज के हवाले है।
यह भी पढ़ें: CPI (M), ML और CPI एक-दूसरे से कितनी अलग? कहानी लेफ्ट के बिखराव की
अब सवाल यह उठता है कि बिहार में जिस जंगलराज और गुंडाराज की बात हो रही है, उसके काले अध्याय कौन-कौन से हैं, जिन्हें याद कर लोग आज भी सिहर जाते हैं-
किस्सा 'जंगलराज' का
लालू यादव और उनकी पत्नी राबड़ी देवी की सरकार को अक्सर, एनडीए के नेता जंगलराज के तौर पर याद करते हैं। बिहार में इस दौरान अपराध, जातीय हिंसाएं, कानून-व्यवस्था की बदहाली और भ्रष्टाचार के कई मामले उजागर हुए जिनकी चर्चा आज भी होती है। साल 1990 से लेकर 1997 तक लालू यादव बिहार के मुख्यमंत्री रहे। अस्सी-नब्बे के दशक में बिहार के पशुपालन विभाग ने फर्जी बिलों से 900 करोड़ रुपये की अवैध निकासी की। 1996 में चाईबासा के उपायुक्त अमित खरे ने इस घोटाले का पर्दाफाश किया। लालू यादव का नाम घोटाले के केंद्र में रहा। वह तत्कालीन मुख्यमंत्री थे। उन्हें अभियुक्त बनाया गया। साल 1997 में उन्हें इस्तीफा देना पड़ा।
यह भी पढ़ें: बिहार: न चेहरा, न नीतीश-तेजस्वी जैसा फेम, कैसे टिकी है लेफ्ट पार्टी?

लालू यादव सरकार के चर्चित अपराध
- चारा घोटाला: यह घोटाला लालू प्रसाद यादव के राजनीतिक करियर का सबसे बड़ा घोटाला था। वह सजायाफ्ता हैं। साल 1990 से 1996 के बीच इस घोटाले का पर्दाफाश हुआ। वह इस घोटाले में शामिल रहे, साल 1997 में CBI की जांच शुरू हुई तो लालू यादव को इस्तीफा तक देना पड़ा।
- चम्पा विश्वास रेप केस: यह केस साल 1995 में सामने आया था। लालू यादव बिहार के मुख्यमंत्री थे। RJD नेता और लालू के करीबी मृत्युंजय यादव पर एक IAS अधिकारी की पत्नी, उनकी मां, दो नौकरानियों, और एक भांजी के साथ दो वर्षों तक बलात्कार का आरोप लगा। लंबा कोर्ट केस चला। मृत्युंजय की मां हेमलता यादव भी विधायक थीं और वह बिहार समाज कल्याण सलाहकार बोर्ड की अध्यक्ष थीं। इस केस से प्रभावित कई फिल्में भी बनीं।
- जी कृष्णय्या हत्याकांड: 5 दिसंबर 1994 को गोपालगंज के जिलाधिकारी जी कृष्णैया कहीं से लौट रहे थे। वह अपने आधिकारिक वाहन में सवार थे। एक दिन पहले मुजफ्फपुर में गैंगस्टर छोटन शुक्ला की हत्या हुई थी। लोग उसकी लाश के साथ प्रदर्शन कर रहे थे। भीड़ ने लालबत्ती वाली कार पर पथराव शुरू कर दिया। पुलिस ने उन्हें बचाने की कोशिश की, वह मारे गए। उनकी कनपटी में गोली मारी गई। कहते हैं कि उनकी हत्या में पूर्व सांसद आनंद मोहन शामिल थे। उन्होंने ही भीड़ को उकसाया था। साल 2007 में आनंद मोहन दोषी करार हुए, फांसी की सजा मिली। 2008 में यह सजा उम्रकैद में बदली। वह सुप्रीम कोर्ट सजा कम कराने गए लेकिन सजा कम नहीं हुई। 27 अप्रैल 2023 को बिहार सरकार ने जेन मॉड्यूल में कुछ बदलाव किए और वह जेल से बाहर आ गए। जी कृष्णैया की पत्नी उमा 3 दशक से इंसाफ के लिए तरस रही हैं।
- बथानी टोला नरसंहार: बिहार के भोजपुर में 11 मई 1996 को जो हुआ, उसे लोग आज भी याद करके कांप जाते हैं। 11 मई 1996 को रणवीर सेना ने बथानी टोला में हमला किया। 21 दलित और मजदूरों को मौत के घाट उतार दिया गया। वारदात उनके मुख्यमंत्री बनने से ठीक पहले की है। कई आरोपी बरी कर दिए गए और सवाल राबड़ी सरकार पर उठे।
- चंद्रशेखर हत्याकांड: 31 मार्च 1997। छात्र नेता चंद्रशेखर की जेपी चौराहा के पास सीवान में हत्या कर दी गई थी। चंद्रशेखऱ भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन की ओर से एक जनसभा को संबोधित कर रहे थे। उन पर हत्यारों ने गोलियां दागीं। मौके पर ही उन्होंने दम तोड़ दिया। यह हत्या सीवान के बाहुबली सांसद शहाबुद्दीन के इशारे पर हुई थी। एक तथ्य यह भी है कि केस की जांच सीबीआई ने की लेकिन शहाबुद्दीन का नाम मुख्य अभियुक्त के तौर पर नहीं आया।
जंगलराज का टैग क्यों लगा?
बिहार में अपराध का बोलबाला हो गया था। कुछ नेताओं और उन पर लगे आरोपों की गूंज देशभर में सुनाई दे रही थी। कुछ नाम उभरे थे, जिनका कनेक्शन अपराध जगत से भी था, राजनीति से भी। कुछ के आरोप साबित हुए, कुछ के नहीं लेकिन यह कहा गया कि यह सब कुछ राष्ट्रीय जनता दल के राजनीतिक संरक्षण की वजह से हो रहा है। कुछ नाम उभरे, आइए जानते हैं उनके बारे में-
- मोहम्मद शहाबुद्दीन: मोहम्मद शहाबुद्दीन गैंगस्टर थे। हत्या, अपहरण, रंगदारी और फिरौती के दर्जनों केस चले। हैरान करने वाली बात यह थी कि वह राष्ट्रीय जनता दल का प्रभावशाली नेता भी था। लालू यादव पर उसे संरक्षण देने का आरोप लगा।
- साधु यादव: साधु यादव, लालू यादव की पत्नी राबड़ी देवी के भाई थे। कई गंभीर और कुख्यात हत्याकांडों में उनका नाम सामने आया। उन पर अपराधियों को संरक्षण देने के आरोप लगे।
- तस्लीमुद्दीन: आरेजडी के दिग्गज नेता थे। उन पर रेप और हत्या के संगीन आरोप लगे लेकिन कभी सजायाफ्ता नहीं हुए।
- सूरजभान सिंह: यह नाम 1990 से 2000 के दशक तक बिहार के अपराध जगत में गूंजता रहा। हत्या और रंगदारी के कई आरोप लगे। पूर्व मंत्री बृजबिहारी हत्याकांड में भी इनका नाम सामने आया था। कुख्यात गैंगस्टर श्रीप्रकाश शुक्ला से भी सूरजभान का कनेक्शन जोड़ा गया।
-
अनंत सिंह: मोकामा के बाहुबली नेता। कभी जेडीयू में रहे कभी आरजेडी में। पूर्व विधायक हैं। अजित सरकार हत्याकांड में नाम लेकिन बरी हो गए। मोकामा में फायरिंग और गैंगवार केस में नाम। लोग छोटे सरकार के नाम से जानते हैं। सरकार किसी की भी हो, तूती बोलती रही।
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव। (Photo Credit: PTI)
राबड़ी देवी सरकार में हुए चर्चित अपराध
- शिल्पी जैन मर्डर केस: 3 जुलाई 1999। शिल्पी जैन और उनके दोस्त गौतम की हत्या हुई थी। लिफ्ट के बहाने उसे वाल्मी गेस्ट हाउस ले जाया गया लेकिन मौत हो गई। शिल्पी की लाश कार में न्यूज हालत में मिली। शिल्पी के बगल में उसके दोस्त गौतम की भी लाश मिली। शिल्पी के बॉयफ्रैंड गौतम के साथ गैंगरेप हुआ था। वाल्मी गेस्ट हाउस अय्याशियों के लिए बदनाम था। शिल्पी की लाश गांधी मैदान के फ्रेजर रोड स्थित गैराज में मिली। घटना की सूचना के बाद आरजेडी विधायक साधु यादव के समर्थक वहां पहुंचे, हंगामा करने लगे। पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पहले सुसाइड बता दिया गया। सीबीआई ने 1999 से लेकर 2004 तक केस की जांच की। सीबीआई ने कहा कि शिल्पी गौतम की हत्या नहीं हुई थी, खुदकुशी थी। अंतिम रिपोर्ट तब आई जब देश में मनमोहन सिंह की सरकार थी और उसे लालू यादव समर्थन दे रहे थे।
- लक्ष्मणपुर बाथे नरसंहार: 1 दिसंबर 1997। रणवीर सेना ने लक्ष्मणपुर बाथे गांव में 58 दलितों की हत्या की। महिला, बच्चों और बुजुर्गों तक को मार डाला गया। बिहार में यह दौर जातिगत सिंहा का दौर था। रणवीर सेना के कई आरोपी बरी हो गए। बिहार के जहानाबाद में हुई इस घटना को लोग आज भी नहीं भूल पाए हैं।
- शंकर बिगहा नरसंहार: 25 जनवरी 1999 को रणवीर सेना ने शंकर बिगहा गांव में 23 दलितों की हत्या कर दी थी। यह हमला जातिगत आधार पर हुई थी। नक्सली और रणवीर सेना के टकराव का नतीजा था। यह घटना राबड़ी देवी के दूसरे कार्यकाल के दौरान हुई थी।
कहां से आया 'जंगलराज' का टर्म?
लालू यादव ने 1997 में इस्तीफा दिया। कुछ दिनों बाद उनकी पत्नी राबड़ी देवी के हाथों में सत्ता आ गई। बिहार के एक सामाजिक कार्यकर्ता कृष्णा सहाय ने पटना हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की। उन्होंने बिहार के खराब होते हालात का जिक्र पटना हाई कोर्ट में किया। 5 अगस्त 1997 को जस्टिस वीपी आनंद और जस्टिस धर्मपाल सिंह की बेच ने कहा कि बिहार में सरकार नहीं, जंगलराज चल रहा है। यहीं से लालू यादव और राबड़ी देवी की सरकार को जंगलराज बताने का मौका विपक्ष को मिल गया।
यह भी पढ़ें: महाराष्ट्र से तमिलनाडु तक, मुद्दे नहीं, 'हिंदी' बढ़ा रही BJP की टेंशन
राबड़ी देवी के राज में चर्चित बाहुबली
- मोहम्मद शहाबुद्दीन, राष्ट्रीय जनता दल
आरोप: हत्या, अपहरण, रंगदारी - सूरजभान सिंह, बाहुबली, पूर्व विधायक और सांसद, अब राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के नेता
आरोप: हत्या, रंगदारी, आपराधिक साजिश के कई संगीन मुकदमे लेकिन बरी हुए। - अशोक सम्राट, 1990 के दशक में बिहार के बाहुबली
आरोप: हत्या, अवैध हथियार तस्करी। - दिलीप सिंह, राष्ट्रीय जनता दल, बिहार सरकार में मंत्री भी रहे
आरोप: बूथ कैप्चरिंग, चुनावी धांधली। - पप्पू यादव, बाहुबली, पूर्णिया से सांसद
आरोप: अजित सरकार हत्याकांड में आरोपी - राजन तिवारी, पूर्व विधायक
आरोप: हत्या, अपहरण - मुन्ना शुक्ला
आरोप: बृज बिहारी प्रसाद की हत्या के आरोपी 1998 - आनंद मोहन सिंह, बाहुबली, पूर्व लोकसभा सदस्य
आरोप: हत्या, डीएम जी. कृष्णैया की हत्या, 1994
अनंत सिंह विधायक हैं और अभी जेल में हैं। (Photo Credit: PTI)
बिहार में कैसे आए 'सुशासन बाबू', जंगलराज खत्म होने के दावे क्यों?
3 मार्च 2000 से 10 मार्च 2000 तक, बिहार में नीतीश कुमार मुख्यमत्री रहे। 7 दिनों के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से उम्मीद भी नहीं की जा सकती थी कि वह बिहार की सत्ता व्यवस्था बदल देंगे। पहली बार पूर्ण कालिक सत्ता में नीतीश कुमार 24 नवंबर 2005 से लेकर 25 नवंबर 2010 तक रहे। तब से लेकर अब तक बिहार में वही मुख्यमंत्री रहे। 9 बार सीएम पद की शपथ ले चुके हैं।
जब पहली बार नीतीश कुमार सीएम बने तो उन्होंने कानू व्यवस्था को दुरुस्त किया। भ्रष्टाचार पर लगाम लगाई। बुनियादी सुविधाओं पर ध्यान दिया। सड़क, बिजली और स्कूलों का विकास किया। उन्होंने शराबबंदी लागू की, अवैध तस्करी पर रोक लगाने की कोशिश की। माफियाओं पर अंकुश लगाने की कोशिश की। उनके शासन को लोग सुशासन कहने लगे।
पर क्या नीतीश कुमार सरकार दो दशकों की सत्ता में बिहार में अपराध थमा? कहानी जानते हैं-
क्यों विपक्ष ने नीतीश सरकार को 'गुंडाराज' और 'गुंडNDA' राज कहा?
नीतीश कुमार सरकार में साल 2018 के बाद हालात बदले। कई ऐसी घटनाएं हुईं, जिनकी वजह से सरकार की किरकिरी हुई। कभी अवैध शराब तस्कर पकड़े गए, कभी गुनाह करने वाले आजाद घूमने लगे, कभी पेपर लीक हुआ। 2 दशक से नीतीश कुमार सरकार की छवि जो बनी थी, उस पर आंच आने लगी।
- मुजफ्फरपुर शेल्टर होम केस, 2018
26 मई 2018 को यह केस सामने आया। टाटा इंस्टीट्यूस ऑफ सोशल साइसेंज (TISS) ने बिहार सरकार को एक रिपोर्ट सौंपी। रिपोर्ट में मुजफ्फरपुर के बालिकागृह में नाबालिग लड़कियों के यौन शोषण बात सामने आई। करीब 30 से ज्यादा लड़कियों के साथ रेप हुआ था। ब्रजेश ठाकुर पर आरोप लगे। - रूपेश सिंह हत्याकांड: 2021
पटना में इंडिगो एयरलाइंस के मैनेजर रूपेश सिंह की दिनदहाड़े हत्या हुई। नीतीश कुमार सरकार पर सवाल उठे। आरोपी अब भी पुलिस की गिरफ्त से बाहर हैं। - 2025 के चर्चित आपराधिक मामले
2025 की कुछ घटनाओं के बाद नीतीश कुमार सरकार पर अब एनडीए के सहयोगी दल ही सवाल उठा रहे हैं। पटना में गोपाल खेमका हत्याकांड पर केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने कहा है कि वह एनडीए के सहयोगी हैं लेकिन सुशासन सरकार अपराध रोकने में असफल रही है। हिमांशु पासवान और अनु कुमार हत्याकांड ने भी सरकार की कानून व्यवस्था पर सवाल उठाए। लखीसराय हत्याकांड और पूर्णिया में दलित परिवार की हत्या पर राज्य सरकार खराब होती कानून व्यवस्था पर बुरी तरह से घिर गई। बिहार में हुई इन वारदातों ने नीतीश कुमार सरकार में लचर कानून व्यवस्था को लेकर विपक्ष को बोलने का मौका दिया।
'गुंडNDA' राज का टर्म कहां से आया?
- कांग्रेस का आरोप
बिहार में बीपीसीसी चीफ और कांग्रेस सांसद अखिलेश प्रसाद सिंह ने 5 जुलाई 2025 को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस किया। उन्होंने कहा, 'बीते साल पुलिस मुख्यालय की ओर से जारी आंकड़े में कहा गया कि 151 दिनों में पुलिस पर 1,297 बार हमले हुए हैं। NCRB के अनुसार- जहां 2005 में बिहार में कुल अपराध की संख्या 1,60,664 थी, वहीं 2022 में यह संख्या बढ़कर 3,47,835 हो गई। यानी इस संख्या में 323% की वृद्धि हुई है। हत्याओं के मामले में उत्तर प्रदेश के बाद बिहार का नंबर आता है।'
'बिहार में 226 प्रतिशत बढ़ा क्राइम'
कांग्रेस राज्यसभा सांसद अखिलेश प्रसाद सिंह ने कहा, 'NDA के शासन में 17 साल में 53,000 हजार से ज्यादा हत्या के मामले दर्ज किये गए, हत्या के प्रयास के मामले में भी बिहार देश में दूसरे नंबर पर है और कुल 98,169 घटनाएं दर्ज हुईं, जो 262% की वृद्धि है। बिहार में जघन्य अपराध के मामलों में भी 226% की वृद्धि हुई है। 17 साल में 5,59,413 मामले दर्ज हुए हैं। बिहार में 2,21,729 महिलाएं अपराध का शिकार बनीं और महिला अपराध के मामलों में 336% की वृद्धि हुई है। महिलाओं के अपहरण मामलों में 1097% और बच्चों के खिलाफ अपराध में 7062% की भयावह वृद्धि हुई है। दलित अपराध के मामले में बिहार, उत्तर प्रदेश के बाद दूसरे नंबर पर हैं।' - RJD का आरोप
तेजस्वी यादव भी बिहार सरकार में लचर कानून व्यवस्था का जिक्र कर रहे हैं। उन्होंने 7 जुलाई 2024 को लिखा, 'पूर्णिया में एक ही परिवार के 5 लोगों को जिंदा जलाकर मार दिया। बिहार में अराजतकता चरम पर है। डीजीपी, सीएस बेबस हैं, कानून व्यवस्था ध्वस्त है। परसों सिवान में 3 लोगों की नरसंहार में मौत। विगत दिनों बक्सर में नरसंहार में 3 की मौत। भोजपुर में नरसंहार में 3 की मौत। अपराधी सतर्क, मुख्यमंत्री अचेत। भ्रष्ट भूंजा पार्टी मस्त, पुलिस पस्त।'
तेजस्वी यादव, बिहार में होने वाले हर अपराध के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को अचेत बताते हैं। वह इशारा करते हैं सम्राट चौधरी और डिप्टी सीएम विजय कुमार सिन्हा के बीच नीतीश कुमार फंस गए हैं और बिहार की सत्ता अब वह नहीं संभाल रहे हैं। नीतीश कुमार से समर्थकों का भी कहना है कि जिस अराजक दौर से नीतीश कुमार बिहार को बाहर लेकर आए थे, अब उसी दौर में बिहार लौटता नजर आ रहा है।
और पढ़ें
Copyright ©️ TIF MULTIMEDIA PRIVATE LIMITED | All Rights Reserved | Developed By TIF Technologies
CONTACT US | PRIVACY POLICY | TERMS OF USE | Sitemap