केरल के त्रिशूर में कुडलमानिक्यम मंदिर में जातिगत भेदभाव के बीच एक ओबीसी व्यक्ति ने अपनी नौकरी छोड़ दी है। पिछले महीने, एझावा हिंदू बी ए बालू को मंदिर में 'कझाकम' के पद पर चुना गया था। मंदिर के इतिहास में यह पहली बार था कि एक पिछड़े समुदाय के किसी व्यक्ति को इस पद पर नियुक्त किया गया था। मंदिर के पुजारी ने उनकी नियुक्ति का विरोध किया, जिसके बाद मंदिर के अधिकारियों ने उन्हें कझाकम की जगह ऑफिस में काम करने का आदेश दिया।
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शख्स ने सौंपा इस्तीफा
बुधवार को कूडलमानिक्यम देवस्वोम बोर्ड के अध्यक्ष सी के गोपी ने कहा कि बालू ने मंगलवार को अपना इस्तीफा सौंप दिया। गोपी ने कहा, 'बालू 2 हफ्ते की छुट्टी पर थे और 2 अप्रैल को उन्हें फिर से ड्यूटी पर आना था। उन्होंने स्वास्थ्य और व्यक्तिगत मुद्दों को इस्तीफे का कारण बताया है। इस मामले की जानकारी सरकार और देवस्वोम भर्ती बोर्ड को दी जाएगी।'
पिछले महीने, जब मंदिर के पुजारियों ने उनकी नियुक्ति का विरोध किया था, तो उन्होंने कहा था कि वह न तो मंदिर में नौकरी रखने के इच्छुक हैं और न ही वह पुजारियों के खिलाफ विरोध करेंगे। बालू ने कहा कि वह मंदिर उत्सव से पहले मुद्दे नहीं खड़ा करना चाहते जो जल्द ही आयोजित किया जाएगा।
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राज्य सरकार ने किया पुजारियों का विरोध
राज्य सरकार ने पुजारियों के रुख का विरोध किया था। मंदिर बोर्ड ने कानूनी मुद्दों को भी उठाया था, क्योंकि बालू को उस पद पर बने रहने के बजाय एक कार्यालय क्लर्क के रूप में काम करने के लिए कहा गया था।
'कझाकम' का मतलब क्या?
'कझाकम' (Kazhakham) शब्द का इस्तेमाल ज्यादातर दक्षिण भारत, विशेषकर केरल में किया जाता है। कझाकम एक धार्मिक या अनुष्ठानिक समूह है, जो मंदिरों और पारंपरिक अनुष्ठानों से जुड़ा होता है। यह केरल के मंदिरों में पूजा-पाठ, अनुष्ठान को संपन्न करते है। इन्हें मंदिरों में विशेष अनुष्ठान करने की अनुमति होती है और वह परंपरागत नियमों का पालन करते हैं। ऐतिहासिक रूप से, 'कझाकम' शब्द प्राचीन गुरुकुल या शिक्षा व्यवस्था से भी जुड़ा है।