बिहार के मधुबनी जिले में 67 साल के एक शख्स को 20 बंदरों ने मिलकर मार डाला है। शख्स अपने पशुओं के लिए चारा काट रहा था, तभी झुंड बनाकर उस पर बंदरों ने धावा बोल दिया। आसपास के लोगों ने बंदरों को भगाने की कोशिश की लेकिन वे संख्या में ज्यादा थे। जैसे ही कोई शख्स के करीब पहुंचता, बंदर झुंझलाकर बचाने वाले लोगों पर ही धावा बोल देते।
मृतक का नाम रामनाथ चौधरी है। रामनाथ ने अपनी जान बचाने की भरपूर कोशिश की लेकिन बंदरों के हमले में वह संभल नहीं पाए। जब तक लोग बंदरों भगाने में कामयाब हुए, शख्स के शरीर से काफी खून बह चुका था। मधुबनी के सदर अस्पताल पहुंचने से पहले ही उन्होंने दम तोड़ दिया।
यह भी पढ़ें: कुत्तों पर फैसला SC का, दिल्ली सरकार के खिलाफ WB में नारेबाजी क्यों?
अस्पताल पहुंचने से पहले तोड़ दिया दम
रामनाथ चौधरी, लोहट चीनी मिल के रिटार्यड क्लर्क थे। जब लोग गंभीर हालत में लेकर उन्हें अस्पातल पहुंचे, डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया। घटना से पूरे इलाके में दहशत फैल गई है। गांव के मुखिया राम कुमार यादव ने वन विभाग से अपील की है कि जल्द से जल्द गांव को बंदर मुक्त कराया जाए।
भारत में हर साल बंदरों के हमले में कितनी मौतें?
लोकसभा में साल 2023 में पर्यावरण मंत्रालय ने एक सवाल के जवाब में संसद को बताया था कि सरकार के बंदरों के काटने से घायल होने वाले या मरने वालों का रिकॉर्ड नहीं है। बीजेपी सांसद राज कुमार चहार ने राज्यों में बंदरों के उत्पात की बढ़ती घटनाओं पर चिंता जाहिर की थी और सहायता राशि के बारे में सवाल किया था।
यह भी पढ़ें: कुत्तों की धरपकड़ से दिल्ली में तूफान, आक्रोश से आंदोलन तक आए लोग
बंदरों के काटने के आंकड़े क्या हैं?
पर्यावरण मंत्रालय ने कहा कि केंद्र प्रायोजित योजनाओं के तहत राज्यों को सहायता राशि दी जाती है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 2015 में बंदरों के काटने के 1,900 से अधिक मामले दर्ज हुए। दिल्ली में 2015 में हर दिन औसतन पांच बंदरों के काटने की घटनाएं सामने आई थीं।
जानवर काटे तो जिम्मेदारी किसकी?
2018 में पर्यावरण मंत्रालय ने कहा था कि जंगली जानवरों के हमलों से अगर किसी की मौत होती है, नुकसान होता है तो उसे केंद्र प्रायोजित योजना के तहत मदद दी जाती है। मंत्रालय ने यह भी कहा था कि यह राशि, राज्य सरकार अपने यहां उपलब्ध फंड के आधार पर करती है।