मध्य प्रदेश में शनिवार को कांग्रेस के 71 जिला अध्यक्षों की बहुप्रतीक्षित सूची जारी होने के बाद हंगामा मच गया है। यह संगठनात्मक बदलाव पार्टी को मजबूत करने के लिए था, लेकिन इसके बजाय भोपाल, इंदौर, उज्जैन और बुरहानपुर जैसे कई जिलों में विरोध, इस्तीफे और असंतोष की लहर दौड़ पड़ी है।
सबसे ज्यादा हंगामा राघोगढ़ में हुआ, जहां पूर्व मंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के बेटे जयवर्धन सिंह के समर्थकों ने देर रात तक विरोध प्रदर्शन किया। जयवर्धन को गुना जिला अध्यक्ष बनाया गया है, लेकिन उनके समर्थकों का मानना है कि उनकी राजनीतिक हैसियत को कम किया गया है। गुस्साए समर्थकों ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी का पुतला जलाया और नारेबाजी की।
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भोपाल में भी नाराजगी
भोपाल में प्रवीण सक्सेना को फिर से जिला अध्यक्ष बनाने से असंतोष फैल गया। इस पद की दौड़ में पूर्व जिला अध्यक्ष मोनू सक्सेना ने सोशल मीडिया पर इसकी आलोचना की। उन्होंने कहा कि पार्टी ने राहुल गांधी के नए संगठन निर्माण की बात को नजरअंदाज किया।
इंदौर और उज्जैन में विरोध
इंदौर में नए शहर अध्यक्ष चिंटू चौकसे और जिला अध्यक्ष विपिन वानखेड़े के खिलाफ विरोध शुरू हो गया है। पूर्व महिला विंग प्रमुख साक्षी शुक्ला डागा ने सोशल मीडिया पर अपनी नाराजगी जाहिर की। उज्जैन (ग्रामीण) में महेश परमार की नियुक्ति का विरोध हो रहा है, जबकि सतना में सिद्धार्थ कुशवाहा की नियुक्ति से कार्यकर्ता नाखुश हैं।
इस्तीफा दिया
विरोध के बीच इस्तीफे भी शुरू हो गए हैं। जिला प्रवक्ता और राजीव गांधी पंचायत सेल के अध्यक्ष हेमंत पाटिल ने विरोध में इस्तीफा दे दिया। बुरहानपुर में वरिष्ठ नेता अरुण यादव के समर्थकों ने कथित तौर पर बंद कमरे में बैठक की, क्योंकि उन्हें प्रतिनिधित्व नहीं मिला।
क्यों हो रहा ऐसा?
सूची के मुताबिक, 21 पुराने अध्यक्षों को फिर से मौका दिया गया है। 71 में से 37 नियुक्तियां आरक्षित वर्गों से हैं। इनमें 35 सामान्य, 12 ओबीसी, 10 एसटी, 8 एससी, 4 महिलाएं और 3 अल्पसंख्यक समुदाय से हैं। छह विधायक, आठ पूर्व विधायक और तीन पूर्व मंत्रियों को जिला स्तर की जिम्मेदारी दी गई है। इससे जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं में नाराजगी है, जो मानते हैं कि उनकी अनदेखी हुई।
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कमलनाथ का दबदबा
हालांकि नियुक्तियां राहुल गांधी की देखरेख में हुईं, लेकिन पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ का प्रभाव अब भी मजबूत है। उनकी करीबी कम से कम 10 लोगों को सूची में जगह मिली है। ओंकार सिंह मार्कम, जयवर्धन सिंह, नीलय डागा और प्रियव्रत सिंह जैसे बड़े नामों की नियुक्ति से पार्टी में एकता के बजाय गुटबाजी बढ़ गई है।