मद्रास हाईकोर्ट ने प्रेस की स्वतंत्रता का बचाव करते हुए लोकतंत्र के चौथे स्तंभ मीडिया पर अहम टिप्पणी की। जस्टिस जी के इलांथिरयन ने कहा कि पत्रकारों को उनके निजी डेटा तक पहुंच प्रदान करने के लिए मजबूर करना और उनसे गोपनीय जानकारी निकलवाना एक तरह से प्रेस पर हमला करने और अत्याचार करने के अलावा और कुछ नहीं है। उन्होंने कहा कि प्रेस की स्वतंत्रता और गोपनीयता मूल रूप से एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं।
जस्टिस इलांथिरयन ने अन्ना विश्वविद्यालय यौन उत्पीड़न मामले की जांच कर रहे पत्रकारों के मोबाइल फोन जब्त करने के मामले में यह अहम टिप्पणी की है। दरअसल, एक महिला विशेष जांच जल (SIT) ने 4 पत्रकारों के स्मार्टफोन जब्त कर लिए थे और उनके निजी और पेशेवर जीवन के बारे में कई तरह के सवाल पूछे थे। इसी को देखते हुए चारों पत्रकार ने एसआईटी की कार्रवाई को चुनौती देते हुए मद्रास हाईकोर्ट में याचिका दायर की। कोर्ट ने इस मामले में SIT को दोषी पाया है।
पत्रकारों को दी गई धमकी
न्यायालय ने इस बात की पुष्टि की कि पत्रकारों को प्रेस काउंसिल एक्ट के तहत इस तरह के हस्तक्षेप से सुरक्षा प्राप्त है। इसके बावजूद, जांच एजेंसी ने याचिकाकर्ताओं को अपने डिवाइस दिखाने के लिए मजबूर किया और उन्हें जब्त कर लिया गया। दरअसल, उन डिवाइस में एफआईआर दर्ज करने और एफआईआर को सार्वजनिक डोमेन में अपलोड करने से संबंधित कोई जानकारी नहीं थी। आदेश में याचिका का हवाला देते हुए कहा गया कि पत्रकारों को धमकी दी गई थी कि अगर वे किसी क्राइम रिपोर्टर द्वारा पब्लिश आर्टिकल का स्क्रीनशॉट नहीं देते हैं तो उनका मोबाइल फोन जब्त कर लिया जाएगा।
यह भी पढ़ें: UGC के नए नियमों के बहाने RSS पर बरसे राहुल गांधी, पूरा मामला समझिए
50 पत्रकारों से पूछे गए सवाल
बता दें कि अन्ना विश्वविद्यालय में एक इंजीनियरिंग छात्रा के उत्पीड़न के मामले को लेकर एसआईटी जांच कर रही थी। जांच के हिस्से के रूप में एसआईटी ने पत्रकारों से लगभग 50 सवाल किए, जो मामले से संबधित बिल्कुल नहीं थे। पत्रकारों से उनकी विदेश यात्राओं, उनके परिवार के सदस्यों के बारे में पूछा गया और कई व्यक्तिगत सवाल भी किए गए। इस पर जस्टिस इलांथिरयन ने कहा, 'अधिकत्तर सवाल जो याचिकाकर्ताओं से पूछे गए वो भारत के संविधान के तहत गोपनीयता के अधिकार का स्पष्ट उल्लंघन है।
कोर्ट ने बताया कानूनी अधिकार का उल्लंघन
अदालत ने कहा कि एसआईटी की कार्रवाई असंगत और अनुचित थी और जांचकर्ताओं ने अपने कानूनी अधिकार का उल्लंघन किया था। दरअसल, एसआईटी ने दावा किया था कि मामले से संबधित FIR कॉपी पत्रकारों के डिवाइस से लीक हुई थी जिसको देखते हुए उनके डिवाइस जब्त किए गए।
इस पर अदालत ने कहा कि SIT ने उन लोगों के बारे में भी पूछताछ नहीं की जिन्होंने आधिकारिक पोर्टल पर एफआईआर अपलोड की थी। इसके अलावा, उन्हें कोई समन भी जारी नहीं किया गया था… यह कहना बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि पुलिस वाले ने बस इतना कहा कि एफआईआर दर्ज करते समय तकनीकी गड़बड़ियों के कारण, एफआईआर पुलिस के आधिकारिक वेब पोर्टल पर अपलोड हो गई थी। आधिकारिक वेबसाइट पर एफआईआर अपलोड करने वाले व्यक्ति और एफआईआर लिखने वाले व्यक्ति की जांच किए बिना ही उन्होंने याचिकाकर्ताओं से पूछताछ की।
आदेश में क्या सुनाया फैसला?
आदेश में कहा गया कि एसआईटी को 10 फरवरी तक पत्रकारों से अपनी जांच पूरी करने, उनके फोन और जब्त किए गए अन्य डिवाइस लौटाने और उनसे उनके व्यक्तिगत विवरण के बारे में सवाल न करने का निर्देश दिया है।